आप ब्रेन से ट्यूमर निकाल सकते हो, मेरा ह्यूमर नहींः सुधीर तैलंग
तैलंग ने ऑपरेशन से पहले डॉक्टर से कहा था, आप ब्रेन से ट्यूमर निकाल सकते हो, मेरा ह्यूमर नहीं…
जयपुर। अंतत: सुधीर तैलंग को कैंसर ने हमसे छीन ही लिया। राजस्थान के बीकानेर में जन्मे सुधीर तैलंग भारत के कार्टूनिंग जगत में नि:संदेह ‘सुपर स्टार’ का दर्जा रखते थे। आरके लक्ष्मण के बाद सही मायनों में सुधीर तैलंग ही देश के सर्वाधिक लोकप्रिय कार्टूनिस्ट थे। उनके ब्रश की धार से शायद ही कोई राजनेता बच पाया हो। उनके कार्टूनों का लोहा हर राजनेता मानता था।
सुधीर तैलंग अक्सर कहा करते थे ‘जब मैं छोटा था तो मेरा सबसे बड़ा ख्वाब सिनेमा का गेटकीपर बनना था, लेकिन किस्मत ने मुझे कार्टूनिस्ट बना दिया।’ सुधीर तैलंग के पास जबरदस्त ह्यूमर था। सुधीरजी ने हर दिन कार्टून बनाया। जब उनके ब्रेन ट्यूमर का ऑपरेशन होना था तो वे वहां भी डॉक्टर से कहना नहीं चूके कि ‘आप मेरे ब्रेन से ट्यूमर तो निकाल सकते हो, ह्यूमर नहीं।’
कार्टून तब से, जब 10 साल के थे
अपने चुटीले व्यंग्यात्मक कार्टूनों से सारे देश में छा जाने वाले सुधीर तैलंग का पहला कार्टून मात्र दस वर्ष की उम्र में प्रकाशित हुआ। तैलंग के शुरुआती कार्टून राजस्थान पत्रिका में भी प्रकाशित हुए। मुम्बई के ‘इलस्ट्रेट वीकली’ के बाद दिल्ली के ‘नवभारत टाइम्स’ में उनके कार्टून नियमित प्रकाशित होने लगे। नभाटा में वे हिन्दी में कार्टून बनाते थे। मगर बाद में उन्होंने सिर्फ अंग्रेजी में ही कार्टून बनाए। आलोचकों ने उन्हें शुरुआत में अंग्रेजी का कमजोर कार्टूनिस्ट माना। अक्सर लोग भी उनसे कहते कि आप हिन्दी में ज्यादा सशक्त हैं। आप अंग्रेजी में क्यों चले गए? बाद में सुधीर तैलंग ने लोगों की इस बात को गलत साबित करके दिखाया।
सुधीर तैलंग के कार्टून इस बात के गवाह हैं कि व्यंग्य किसी भी भाषा में किया जाए उसकी धार कम नहीं होती। फिर सुधीर तैलंग को जो ख्याति मिली सारे देश ने देखी। वर्ष 2004 में उन्हें भारत सरकार ने पद्म पुरस्कार से सम्मानित किया। सुधीर तैलंग अच्छे कार्टूनिस्ट होने के साथ-साथ अच्छे गायक भी थे।
सुधीर तैलंग अच्छे इंसान भी थे। अपने से जूनियर कार्टूनिस्टों के लिए उनके पास सदैव समय होता था। वे कहते थे आप हमें कभी भी फोन कर सकते हैं। वे हमेशा कॉल बैक करते। यह उनकी महानता थी। सुधीर तैलंग बेमिसाल थे। लंबी बीमारी के चलते भारत का यह महान कार्टूनिस्ट अपने अंत समय में महंगे इलाज के चलते काफी आर्थिक मुश्किलों से जूझता रहा।
अफसोस की बात है जिस कार्टूनिस्ट ने हर सुबह अपने कार्टूनों से सबके चेहरे पर मुस्कराहट बिखेरी हो उसके इस दर्द में कोई सरकार कोई संस्था, कोई घराना इलाज में सहयोग के लिए आगे नहीं आया। अंतत: मात्र 55 साल की उम्र में हमने भारत के इस बेहतरीन कार्टूनिस्ट को सदैव के लिए खो दिया।
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