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फेसबुक के भंवरजाल में युवाओं को फंसा रहा आईएस

तोरोक ने कहा कि ये लोग खास कर किशोरों को निशाना बनाते हैं, क्योंकि वे
अपनी पहचान की तलाश में होते हैं और उन्हें आसानी से बरगलाया जा सकता है

Dec 01, 2015 / 11:22 am

जमील खान

IS FB

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मेलबर्न। आतंकी संगठन इस्लामिक स्टेट (आईएस) की नजर आस्ट्रेलिया के किशोरों पर है। संगठन में लोगों को भर्ती करने वाले (रिक्रूटर) इन किशोरों और युवाओं तक सोशल मीडिया के जरिए पहुंच रहे हैं। यह नतीजा फेसबुक पोस्ट के अध्ययन से निकला है। निगरानी विशेषज्ञ रॉबिन तोरोक ने यह अध्ययन किया है। वह 2010 से सोशल मीडिया पर आईएस के भर्ती करने वालों की कारगुजारियों पर निगाह रखे हुए हैं। उन्होंने बताया है कि किस तरह भर्ती करने वाले ये लोग युवाओं में समाज में अलग-थलग होने के अहसास का दोहन करते हैं।

सबसे पहले आईएस आतंकी फेसबुक पर पोस्ट की जाने वाली सामग्री पर ध्यान देते हैं। तोरोक ने कहा कि ये लोग खास कर किशोरों को निशाना बनाते हैं, क्योंकि वे अपनी पहचान की तलाश में होते हैं और उन्हें आसानी से बरगलाया जा सकता है।

आईएस आतंकी अपने निशाने के ऑनलाइन व्यवहार पर नजर रखते हैं। देखते हैं कि कितने अंतराल पर फेसबुक पोस्ट डाली जा रही है और इनमें भू-राजनैतिक मुद्दों पर कौन-सा रुख अख्तियार किया जा रहा है। जिसे भर्ती के लिए निशाने पर लिया गया है, उसके शौक क्या हैं।

फिर, ये आईएस आतंकी समान संबंधों की मदद से ऐसे किशोरों-युवाओं से फेसबुक संवाद शुरू करते हैं। आतंकी इनसे उस वक्त हमदर्दी जताते हैं, जब वे अपनी भावनात्मक समस्या को साझा करते हैं। उन्हें उकसाते हैं, उनकी समस्याओं को जायज बताते हैं।

इसके बाद आईएस के लोग ऐसे किशोरों-युवाओं को फेसबुक फ्रेंड बनाते हैं। राजनैतिक मुद्दों पर बात शुरू करते हैं और इस तरह की टिप्पणियां करते हैं कि सरकार हमेशा मुसलमानों के मामले में अपनी नाक घुसेड़ती है। अपनी बात को विश्वसनीय बनाने के लिए आईएस के लोग कई फेसबुक पहचान बना लेते हैं। ये सभी अलग-अलग नामों से होते हैं और सभी में आईएस में भर्ती के लिए निशाने पर लिए गए युवाओं की शिकायतों को सही बताया जाता है।

तोरोक ने कहा, मैंने देखा है कि एक आदमी 52 फेसबुक अकाउंट बना सकता है। फिर, वह वक्त आता है जब आईएस में भर्ती कराने वाले लोग इस्लाम के नाम पर किशोरों-युवाओं का आह्वान करते हैं, उन्हें मुसलमान बनने को कहते हैं। इसके बाद ऐसे किशोर या युवा अपनी आस्था का ऐलान करते हैं।

इसके बाद आईएस आतंकी आस्था जताने वाले कट्टरपंथी युवाओं से कथित अन्याय के खिलाफ संघर्ष का आह्वान करते हैं। तोरोक ने एक अन्य लेख में कहा है, लेकिन, हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि सभी कट्टरपंथी आतंकवादी नहीं बनते हैं और न ही सभी आतंकवादियों की भर्ती ऑनलाइन होती है। तोरोक के अध्ययन के नतीजों को हाल ही में पर्थ के एडिथ कोवन विश्वविद्यालयमें सुरक्षा पर हुए एक सम्मेलन में पेश किया गया।

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