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मां-बाप ने दी अपने लाड़ले बेटे को मौत की नींद सुलाने की रजामंदी! दिल पर पत्थर रख कर जानें मां-बाप और बेटे की यह दर्दनाक कहानी!

Published: Jul 26, 2017 01:55:00 pm

Submitted by:

राहुल

मां-बाप और बच्चे से जुड़ा एक ऐसा मार्मिक मामला सामने आया है जिसने हर उस इंसान की आँखों में आंसू ला दिए हैं जो मानवता पर विश्वास रखता है। लंदन में रहने वाले एक माता-पिता ने थक-हार कर अपने 11 माह के लाड़ले बेटे चार्ली गार्ड मौत की नींद सुलाने की रजामंदी दे दी…

Parents allows euthanasia for their loved child

Parents allows euthanasia for their loved child

लंदन: मां-बाप और बच्चे से जुड़ा एक ऐसा मार्मिक मामला सामने आया है जिसने हर उस इंसान की आँखों में आंसू ला दिए हैं जो मानवता पर विश्वास रखता है। लंदन में रहने वाले एक माता-पिता ने थक-हार कर अपने 11 माह के लाड़ले बेटे चार्ली गार्ड मौत की नींद सुलाने की रजामंदी दे दी। इस मामले की गमगीनता का अंदाजा आप इस बात से ही लगा सकते हैं कि अब ये मां-बाप लंदन के अस्पताल प्रशासन के साथ मिलकर खुद यह तय करेंगे कि उनके लाड़ले चार्ली की सांसें कैसे थमे।

कहानी जान रो देंगे आप-
चार्ली के मां-बाप ने उसके इलाज के लिए अमेरिका में कराने की कानूनी जंग लड़ी, लेकिन जब उन्हें यह अंदाजा हुआ कि वहां भी उन्हें कोई फायदा नहीं होगा तब जाकर उन्होंने भारी मन से यह फैसला किया। दरअसल चार्ली को ऐसी दुर्लभ बीमारी है, जिसकी वजह से उसकी मांसपेशियां लगातार कमजोर व दिमाग क्षतिग्रस्त हो रहा है।
 
माता-पिता ने किया पूरा प्रयास-
चार्ली की मां कोनी येट्स ने अपने बेटे की जान बचाने के लिए सामाजिक और कानूनी लड़ाई लड़ी, जिसके लिए उन्होंने सोशल मीडिया और लंदन की सड़कों पर सामाजिक अभियान भी चलाया। उनके अभियान को अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप व ईसाई धर्मगुरु पोप फ्रांसिस का समर्थन मिला था। येट्स का कहना है “यदि उसे जल्दी इलाज मिल गया होता तो वह सामान्य जीवन जी पाता।”

बेटे को अमरीका में इलाज़ कराने को लेकर मां-बाप द्वारा लंदन की अदालत में दायर की गई याचिका की सुनवाई में पीठ के जज निकालस फ्रांसीस ने कहा, अपने बच्चे की जान बचाने के लिए किसी माता-पिता ने इतना संघर्ष नहीं किया होगा। लेकिन यह तय करना बेहद मुश्किल है कि वह बगैर वेंटिलेटर के सांस नहीं ले पाता है और थैरेपी से उसे लाभ होगा, इसकी बहुत कम संभावना है।

हालांकि बच्चे को अगर समय से प्रयोगात्मक थैरेपी के लिए अमरीका भेज दिया गया होता तब शायद उसकी जान बच सकती थी। लेकिन अब बहुत देर हो गई है और वक्त हाथ से निकल चुका है। वह लंबे समय से इलाज की बाट जोह रहा था, लेकिन कानूनी विलंब के कारण अवसर हाथ से फिसल गया है।
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