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बलूचिस्तान पर बांग्लादेश के बाद मोदी को मिला अफगान का साथ

अफगानिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति ने पाकिस्तान से अनुरोध किया कि वह बलूचिस्तान की स्थिति की गंभीरता को स्वीकार करें

Aug 20, 2016 / 09:55 am

Rakesh Mishra

Afghan-ex-President-Hamid-Karzai

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नई दिल्ली। अफगानिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति हामिद करजई ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा बलूचिस्तान में मानवाधिकारों के हनन का मुद्दा उठाए जाने का स्वागत करते हुए कहा कि वहां के लोगों को भारी उत्पीडऩ का सामना करना पड़ रहा है। करजई ने कहा कि भारत की परंपरा शांतिपूर्ण सह अस्तित्व की रही है और उन्हें नहीं लगता कि वह इस क्षेत्र में परोक्ष युद्ध की मंशा रखता है।

उन्होंने कहा कि इस क्षेत्र में परोक्ष युद्ध नहीं होना चाहिए। पाकिस्तान के अधिकारी अफगानिस्तान तथा भारत के मामलों में खुले तौर पर बोलते रहे है, लेकिन यह पहला मौका है कि भारत के प्रधानमंत्री ने बलूचिस्तान के बारे में कहा है। करजई ने इंस्टीट्यूट ऑफ पीस एंड कान्फ्लिक्ट स्टडीज द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम में पत्रकारों से यह बात कहीं। अफगानिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति ने पाकिस्तान से अनुरोध किया कि वह बलूचिस्तान की स्थिति की गंभीरता को स्वीकार करें। उन्होंने कहा कि बलूचिस्तान में पख्तूनों को भारी उत्पीडऩ झेलना पड़ रहा है। बलूचिस्तान में अफगानिस्तान की बड़ी हिस्सेदारी है क्योंकि वहां से ही अफगानिस्तान में चरमपंथ पहुंचता है।

एक सवाल के जवाब में करजई ने भारत से आग्रह किया कि उसे अफगानिस्तान के रक्षा बलों की मदद करने से हिचकना नहीं चाहिए। उन्होंने कहा कि उनके देश को भारत से अफगानिस्तान की रक्षा जरुरतों की आपूर्ति में निडर होने की उम्मीद है। करजई ने एक सवाल के जवाब में कहा कि इस्लामिक स्टेट का अफगानिस्तान या तालिबान से कोई संबंध नहीं है और वह पूरी तरह विदेशी संगठन है। साथ ही उन्होंने पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई को लेकर भारत को चेताया।





बता दें, बांग्लादेश भी बलूचिस्तान के मुद्दे पर मोदी की टिप्पणी का समर्थन कर चुका है। भारत दौरे पर आए बांग्लादेश के सूचना मंत्री हसन उल-हक-इनू ने भी बलूचिस्तान में पाकिस्तान की ओर से हो रहे मानवाधिकारों के हनन पर चिंता जाहिर की थी। हसन उल-हक-इनू ने कहा था कि पाकिस्तान आतंकवाद को संरक्षण देता है और इसके पर्याप्त सबूत हैं। भारत और बांग्लादेश दोनों इस बात पर सहमत हैं कि आतंकवाद का मुकाबला करने के लिए सूचना का आदान-प्रदान महत्वपूर्ण है। दरअसल, 15 अगस्त को प्रधानमंत्री ने राष्ट्र के नाम अपने संबोधन में बलूचिस्तान और पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर का मुद्दा उठाते हुए वहां के लोगों को धन्यवाद दिया था। प्रधानमंत्री के इस बयान का बलूचिस्तान के नेताओं ने स्वागत किया है।

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