दुनिया के बढ़ते तापमान के बीच यह सवाल एक बार फिर चर्चा में है कि अगर धरती की पूरी बर्फ पिघल गई तो क्या होगा।
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नई दिल्ली। दुनिया के बढ़ते तापमान के बीच यह सवाल एक बार फिर चर्चा में है कि अगर धरती की पूरी बर्फ पिघल गई तो क्या होगा। हालांकि वैज्ञानिकों का अनुमान है कि इसे पिघलने में करीब पांच हजार साल का वक्त लगेगा, लेकिन यह समय और कम भी हो सकता है।
चेतावनी
वैज्ञानिकों ने चेताया है कि लगातार जीवश्म ईंधन के बेतहाशा इस्तेमाल से ग्लोबल वार्मिंग के कारण दुनिया की पूरी बर्फ पिघल जाएगी और समुद्र का जलस्तर 216 फीट तक बढ़ जाएगा। पृथ्वी का बड़ा भू-भाग इसमें डूब जाएगा।
आर्कटिक क्षेत्र में ग्लोबल वॉर्मिंग का सबसे ज्यादा असर दिख रहा है। उत्तरी ध्रुव के तापमान में
20 डिग्री सेल्सियस से ज्यादा की बढ़ोतरी दर्ज की जा चुकी है। बीते साल अक्टूबर में जमी बर्फ अब तक के सबसे कम स्तर पर रिकॉर्ड की गई।
प्राकृतिक आपदाएं
बर्फ पिघलने का सिलसिला जारी रहा तो पूरी दुनिया में बड़े पैमाने पर प्राकृतिक आपदाएं भी आएंगी और मौसम का गणित भी बिगड़ जाएगा। इसका नतीजा क्या होगा, अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं है।
असर
-जलवायु इंसान के रहने लायक नहीं होगी
-आबादी में बड़ी गिरावट दर्ज होगी
गर्मी के अलावा एक खतरा और भी
बर्फ पिघलने से समुद्री सतह में बढ़ोतरी होगी, लेकिन यही हाल तब भी होगा, जब कोई बर्फीला धूमकेतु पृथ्वी से टकरा जाए। हालांकि कई किलोमीटर व्यास का कोई बर्फीला धूमकेतु धरती से टकराया तो असर का कोई खास महत्व नहीं होगा, क्योंकि तब पूरे जीवन का खात्मा हो जाएगा।