करीब तीन साल पहले इंडस्ट्री को ‘अग्निपथ” जैसी एक्शन और हिट फिल्म दे चुके करण मल्होत्रा ने इस बार ‘ब्रदर्स” के निर्देशन की कमान संभाली है। इस बार वे दो भाईयों की कहानी लेकर ऑडियंस के सामने आए हैं और उन्हें भरोसा है कि यह फिल्म भी उनकी पिछली फिल्म की तरह सुपर हिट साबित होगी। बहरहाल, उन्होंने ‘ब्रदर्स” के जरिए ऑडियंस को एक्शन से रिझाने की दमदार कोशिश की है। इस फिल्म से उन्होंने यह भी साबित कर दिखाया है कि दो भाईयों के बीच चाहें कितना भी आपसी मन-मुटाव क्यों न हो, लेकिन अंत में वे साथ ही नजर आते हैं।
कहानी: इस 1 घंटे 58 मिनट की फिल्म में महाभारत की तरह दो भाईयों के बीच अहंकार की लड़ाई को बड़े ही रोमांचक तरीके से दर्शाया गया है। इस की कहानी गैरी फर्नांडीज (जैकी श्रॉफ) से शुरू होती है। गैरी जेल में होता है और वह अपनी सजा पूरी करके जेल से बाहर आता है तो वहां उसका छोटा बेटा मोंटी फर्नांडीज (सिद्धार्थ मल्होत्रा) रिसीव करने के लिए आता है।
फिर जब गैरी घर पहुंचता है तो अपनी स्वर्गवासी पत्नी मारिया (शेफाली शाह) की याद करता हुआ फूट-फूट कर रोता है और घर की व्यवस्था को ठीक करता है। वहीं दूसरी तरफ गैरी का बड़ा बेटा डेविड फर्नांडीज (अक्षय कुमार) अपनी बीवी जैनी (जैक्वेलीन फर्नांडीज) और बेटी के साथ अलग आशियाना बना लेता है। मोंटी को अपने पापा गैरी की तरह फाइट का शौक तो होता है, लेकिन मुंबई की गलियों में वह फाइट सही से नहीं कर पाता।
वहीं दूसरी ओर डेविड एक स्कूल में फिजिक्स टीचर होता है और अपनी बेटी की किडनी प्रॉब्लम की वजह से मजबूरन मुंबई की कोलाबा फाइट में हिस्सा लेता है। फिर जब दूसरी दिन वह मलहम-पट्टी के साथ स्कूल में पढ़ाने जाता है तो वहां का प्रिंसिपल उसे बच्चों का भविष्य का हवाला देते हुए निकाल देता है। फिर एक दिन गैरी अपने छोटे बेटे मोंटी के साथ डेविड से मिलने उसके घर पहुंचता है तो वह गैरी को उस काली रात का हवाला देते हुए धक्के देकर वहां से जाने को कहता है। इसी दौरान अपने पिता के बचाव में मोंटी भी आ जाता है तो डेविड उसे भी मार बैठता है और वहां से चले जाने की हिदायत देता है।
फिर कहानी फ्लैशबैक में जाती है और पता चलता है कि गैरी मुंबई की गलियों में होने वाली में होने वाली फाइट का मास्टर होता है और साथ ही वह जमकर मदिरा-पान भी करता है। यहीं पर पता चलता है कि दोनों भाईयों मोंटी और डेविड में गजब का प्यार होता है। आए दिन गैरी शराब पीकर रात को घर आता है तो उसका बड़ा बेटा डेविड भी तंग आ जाता है। फिर एक रात जब गैरी शराब के नशे में चूर घर लौटता है तो देखता है कि उसकी पत्नी और डेविड दोनों मिलकर मोंटी का बर्थ-डे सेलिब्रेट कर रहे हैं।
यह देखकर गैरी मारिया को गले लगाकर कई बार सॉरी बोलता है और साथ ही नशे में चूर किसी दूसरी महिला का नाम लेने लगता है तो मारिया आगबबुला हो उठती है और उससे कहासुनी शुरू कर देती है। फिर गैरी तैश में आकर धोखे से उसे जोरदार धक्का दे देता है तो मारिया का सिर दीवार में जोर से टकराता है और उसकी मौत हो जाती है। बस यहीं से असल कहानी की शुरुआत होती है।
मोंटी जहां मुंबई की स्ट्रीट फाइट में काफी हद तक खुद को सुधार लेता है तो वहीं डेविड अपनी बेटी की जान बचाने की जद्दोजहद में मजबूर होकर मुंबई स्थित कोलाबा फाइट में उतर जाता है, जिससे उसकी बीवी जैनी भी नाराज हो जाती है। फिर एक दिन इंटरनेशनल गेम आरटूएफ (राइट टू फाइट)का इंडिया में आगाज होता है। बता दें कि इस फाइट में देश-विदेश की नामचीन फाइटर हिस्सा लेते हैं। उसी फाइट में हिस्सा लेने के लिए जहां गैरी अपने छोटे बेटे मोंटी को ट्रेंड करता है तो वहीं दूसरी ओर डेविड को पाशा (आशुतोष राणा) ट्रेंड करने में जुट जाता है। इसी के साथ फिल्म में गजब का ट्विस्ट आता है और कहानी तरह-तरह के मोड़ लेते हुए आगे बढ़ती है।
अभिनय: इंडस्ट्री में एक्शन हीरो की पहचान बनाने में सफल रह चुके अक्षय कुमार ने इस फिल्म से एक बार फिर साबित कर दिखाया है कि वाकई में उनके चाहने वाले उन्हें ऐसे ही एक्शन हीरो नहीं बोलते हैं। सिद्धार्थ मल्होत्रा भी गजब का अभिनय करते नजर आए और अक्षय का भरपूर साथ देते दिखाई दिए। जैकी श्रॉफ भी अपने अभिनय की दम पर काफी हद तक ऑडियंस का दिल जीतने में सफल रहे। जैक्वेलीन फर्नांडीस अपने किरदार की तह तक जाती दिखीं, लेकिन कुछ हद तक असफल सी नजर आईं। आशुतोष राणा और शेफाली शाह ने अपने रोल को बखूबी निभाया है। साथ ही फिल्म में नाइशा खन्ना ने भी गजब का काम किया है। इसके अलावा करीना कपूर खान का आइटम नंबर वाकई में काबिल-ए-तारीफ रहा और वे कुछ देर की फुटेज में ही बाजी मारती नजर आईं।
निर्देशन: करण मल्होत्रा इस फिल्म से ऑडियंस को दो भाईयों की अहमियत समझाने में सफल रहे। यानी उन्होंने यह प्रूव कर दिखाया है कि जब इंडस्ट्री में मां और बाप पर अनगिनत फिल्में बन सकती हैं तो भाईयों पर निर्धारित फिल्में भी जरूर बननी चाहिए। खैर, उन्होंने इसमें एक्शन का दबर्दस्त तड़का तो जरूर लगाया है, लेकिन कहीं-कहीं पर थोड़ा असफल रहे। करण ने एक्शन में वाकई में कुछ अलग करने की दमदार कोशिश की है, इसीलिए वे ऑडियंस की वाहवाही बटोरने में सफल रहे। भले ही कहीं-कहीं पर इसकी स्क्रिप्ट थोड़ी डगमगाती नजर आई, लेकिन इसकी कहानी ऑडियंस को आखिरी तक बांधे रखने में काफी हद तक सफल भी रही। बहरहाल, ‘हर बेटा बाप नहीं होता…”, ‘दुनिया बड़ी जालिम है, दर्द पर हंसती है…” आदि जैसे कई डायलॉग्स तारीफ बटोरते नजर आए, लेकिन अगर कॉमर्शियल और टेक्नोलॉजी को छोड़ दिया जाए तो इस फिल्म की सिनेमेटाग्राफी कहीं-कहीं पर थोड़ी कमजोर सी दिखी। संगीत (अजय और अतुल गोगावले) तो ऑडियंस को भाता भी है, लेकिन गाने की तुलना में थोड़ा सा कमजोर रहा।
क्यों देखें: धुआंधार एक्शन के लिहाज से और एंटरटेंमेंट के मकसद से आप सिनेमा घरों का रुख कर सकते हैं। साथ ही आपको जेब हल्की करने में भी निराश नहीं होना पड़ेगा… आगे इच्छा आपकी…!
रोहित तिवारी
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