निर्देशक: अश्विनी अय्यर तिवारी, कलाकार: स्वरा भास्कर, रिया शुक्ला, पंकज त्रिपाठी, रत्ना पाठक शाह, रेटिंग: 4/5
व्यक्ति को यदि आगे बढऩा है…कुछ कर गुजरना है, तो उसके जीवन में प्रतिद्वंद्विता जरूरी है। हार-जीत बिना प्रतिद्वंद्विता के संभव नहीं है…और यह हर क्षेत्र में निहित है। अच्छी प्रतिद्वंद्विता हमें आगे बढऩे की सीख देती है। प्रतिद्वंद्विता तो हर जगह है, लेकिन इसे सकारात्मक रूप से बहुत कम लेते हैं। जो ऐसा नहीं करते, वह घृणा के पात्र बन जाते हैं। यहां प्रतिद्वंद्विता मां-बेटी के बीच है। फिल्म निल बटे सन्नाटा में मां को जिस तरह पेश किया गया है, वह बेमिसाल है…फिल्म को एक अलग ही नजरिए से दर्शाया गया है। बेटी पढ़ाई में कमजोर है…वह होशियार कैसे बने? गणित में वह अव्वल कैसे हो? इन सब सवालों के जवाब मां की सोच में छिपे होते हैं। किस तरह एक मां अपनी बेटी के मन में प्रतिद्वंद्विता के बीज बोती है, इसे बहुत ही खूबसूरती के साथ दर्शाया गया है। आइए, इसकी कहानी से समझने की कोशिश करते हैं।
कहानी
फिल्म ‘निल बटे सन्नाटा’ की कहानी बेहद साधारण है, लेकिन इसका विषय इसकी यूएसपी है। कह सकते हैं कि एक गरीब परिवार के सपनों और महत्वाकांक्षाओं को पूरा करने की चाह, उनके आपसी झगड़ों, स्कूल में बर्ताव और निजी जिंदगी की झलकियों को कैमरे में बहुत ही प्रभावी ढंग से पेश किया है। कहानी उत्तर प्रदेश के ‘आगरा ‘ शहर की है, जहां एक कामवाली बाई चंदा सहाय (स्वरा भास्कर) अपनी बेटी अपेक्षा सहाय (रिया शुक्ला) के साथ रहती है। जब अपेक्षा दसवीं कक्षा में पहुंचती है, तो चंदा को उसकी फिक्र होने लगती है, क्योंकि अपेक्षा पढ़ाई में कमजोर है, खासकर गणित में काफी कमजोर है। फिर चंदा जिनके घर काम करती है, उनकी सलाह लेकर उसी स्कूल में दाखिला लेती है, जहां अपेक्षा पढ़ती है। फिर एक ही क्लास में पढ़ते हुए मां और बेटी के बीच कॉम्पिटीशन शुरू हो जाता है, जिसका अंजाम काफी दिलचस्प होता है। जी हां, आप समझ ही गए होंगे कि बेटी के सामने मां एक प्रतिद्वंद्वी के रूप में खड़ी होती है… और बेटी इस कॉम्पिटीशन को स्वीकार करती है… आगे बेहद ही दिलचस्प ढंग से दर्शाया गया है। बता दें कि 1 घंटा 40 मिनट की यह फिल्म कहीं भी बोर नहीं करती। शुरू से लेकर आखिर तक बांध के रखती है।
कमाल का निर्देशन….
इस फिल्म के निर्देश हैं अश्विनी अय्यर तिवारी। यह उनकी पहली फिल्म है। इससे पहले उन्होंने ढेरों एड फिल्में बनाई हैं। लेकिन उनका निर्दशन कमाल का है। उनके विजन की जितनी तारीफ की जाए कम है। फिल्म देखने के बाद लगता ही नहीं कि बतौर निर्देशन यह उनकी पहली फिल्म है।
अभिनय
मुख्य भूमिका में स्वरा भास्कर और उनकी बेटी बनी रिया शुक्ला ने बेहतरीन अभिनय किया है। मालकिन के किरदार में रत्ना पाठक शाह का अच्छा रोल है। स्कूल के प्रिंसिपल का किरदार अभिनेता पंकज त्रिपाठी ने बड़ी ही सहजता के साथ निभाया है।
गीत-संगीत
फिल्म का गाना ‘डब्बा गुल’ अच्छा है, साथ ही फिल्म का बैकग्राउंड स्कोर भी कहानी के साथ सटीक चलता है।
क्यों देखें…
यदि दर्शकों को मसाला फिल्म के इतर कुछ अच्छी व हॉफ-बीट फिल्में देखने में दिलचस्पी रखते हैं, तो उन्हें यह फिल्म बोर नहीं करेगी। यह फिल्म सपरिवार देखने जाएंगे, तो ज्यादा मजा आएगा। मां-बेटी इस फिल्म को जरूर देखें।