scriptमूवी रिव्यू: दो युगों में उलझी मिर्जिया की कहानी | Movie Review: The story of two eras complicating Mirjia | Patrika News

मूवी रिव्यू: दो युगों में उलझी मिर्जिया की कहानी

Published: Oct 07, 2016 01:34:00 pm

Submitted by:

dilip chaturvedi

स्टारकास्ट : हर्षवर्धन कपूर, सयामी खेर, अनुज चौधरी, कला मलिक, केके रैना, ओम पुरी, रेटिंग : डेढ़ स्टार

movie review

movie review

बैनर : सिनेस्तान फिल्म कंपनी, राकेश ओमप्रकाश मेहरा पिक्चर्स
निर्देशक : राकेश ओमप्रकाश मेहरा
जोनर : ड्रामा
संगीतकार : शंकर एहसान लॉय

रोहित के. तिवारी/ मुंबई ब्यूरो। अपने निराले अंदाज में और बहुत ही सोची-समझी रणनीति के तहत बॉलीवुड को ‘भाग मिल्खा भाग’, ‘रंग दे बसंती’ जैसी हिट फिल्में परोसने में महारत हासिल निर्देशक ओमप्रकाश मेहरा इस बार खुद के जेहन में सदियों से उमड़ रहे सवाल का हल निकालने के लिए ‘मिर्जिया’ लेकर आए है। उन्होंने इसमें अपने निर्देशन के जरिए दो यगों को दिखाने का दम-खम उठाया है। इसके अलावा उन्हें इस फिल्म से काफी उम्मीदें भी हैं कि वाकई में वे इस बार लोगों को कुछ अलग व हटकर सिनेमा दे रहे हैं। लेकिन यह कहने में जरा भी गुरेज नहीं होगा कि वो उनसे चूक हो गई…। फिल्म देखने के बाद ऐसा लगता है, मानो जानबूझकर ओमप्रकाश मेहरा ने जोखिम लिया है…इस फिल्म में न रंग दे बसंती की छाप दिखाई पड़ती है, ना ही भाग मिल्खा भाग की…। उम्मीदों में पर खरा नहीं उतरते ओमप्रकाश।


कहानी… 
कहानी मुनीश और सूची के बचपने से शुरू होती है, जहां सूची के पापा पुलिस में एक बड़े अधिकारी होते हैं। लेकिन उनकी बेटी सूची हमेशा ही मुनीश के साथ ही स्कूल जाती-आती है और मुनीश को हमेशा टीचर की मार खाने से बचा लेती है, क्योंकि सूची अपने होमवर्क की कॉपी मुनीश को दे देती थी। फिर एक दिन सूची को मारने वाले टीचर की मुनीश गोली मारकर हत्या कर देती है। वहीं से उसकी पढ़ाई-लिखाई चौपट हो जाती है और सूची जोधपुर से विदेश चली जाती है। उधर, दूसरी तरफ दूसरे युग में जी रही साहिबा और मिज्र्या की कहानी चलती है, जहां प्यार के विरोधियों से लड़ता हुआ, मिज्र्या अपनी साहिबा के पास पहुंचाता है। फिर कहानी पहले युग में आती है और अब दोनों के बड़े होते ही कहानी भी जवां होती है, तो पता चलता है कि सुचित्रा (सयामी खेर) राजस्थान के एक राजवाड़े खानदान के राजकुमार की बाहों में होती है और मुनीश (हर्षवर्धन कपूर) मन ही मन साहिबा को याद करता रहता है। राजकुमार के कहने पर मुनीश सुचित्रा को घुड़सवारी सिखाता है, पर वह हमेशा ही बचपन के यार मुनीश की बातें ही उसी से करती है। 

एक दिन पता चल जाता है कि वो घुड़सवारी सिखाने वाला ही उसके बचपन का दोस्त है, जो खुद से ज्यादा सूची का खयाल रखता था। इधर सूची की राजकुमार से सगाई होती है, तो गम में मुनीश अपनी पीठ को आग से दागता है। उधर, दूसरे युग की कहानी में मिज़्र्या अपने साहिबा को घोड़े से भगा लाता है। फिर इधर भी सगाई होने के बावजूद सूची महल छोड़कर रात के अंधेरे में अपने मुनीश के पास भाग आती है, जिस पर मुनीश उसे महल लौट जाने को कहता है, लेकिन सूची अपने दोस्त मुनीश के प्यार में ही मशगूल रहती है। साथ ही राजकुमार को सूची और मुनीश की कहानी पता नहीं होती है और राजकुमार उसे आदिल ही समझता रहता है। इसी तरह से कहानी एक युग से दूसरे युग और दूसरे से पहले युग में आती-जाती रहती है। इसी के साथ कहानी में तरह-तरह के ट्विस्ट आते जाते हैं और फिल्म आगे बढ़ती है। 


अभिनय…
हर्षवर्धन कपूर और सयामी खेर दोनों ने ही बॉलीवुड में अपनी पहली फिल्म से कदम रखा है। हर्षवर्धन जहां खुद को साबित करने के लिहाज से कुछ अलग करते दिखाई दिए, वहीं सयामी ने भी अपने किरदार को शत-प्रतिशत देने का पूरा प्रयास किया है। शायद पहली बार बड़े पर्दे पर आने को लेकर दोनों में कहीं न कहीं थोड़ा असहजता दिखाई दी, लेकिन दोनों ने साबित कर दिया है कि कहानी में दम हो, तो वाकई में कुछ अलग करके दिखाया जा सकता है। साथ ही दोनों निर्देशक के दिशा-निदेर्शों पर ही खुद को साबित करते नजर आए। अनुज चौधरी व कला मलिक की बात की जाए, तो उन्होंने ने भी जरूरत के हिसाब से अच्छा प्रदर्शन किया है। केके रैना, ओम पुरी, अंजलि पाटिल ने अपने-अपने किरदारों को बखूबी निभाया है, जिसमें सभी कई मायनों में सफल भी रहे। 
 
निर्देशन… 
इंडस्ट्री में बड़े आराम परस्त और सोच-समझकर कदम बढ़ाने की चाहत रखने वाले निर्देशक ओमप्रकाश मेहरा ने अपनी पिछली फिल्मों की तरह ही इस बार भी दर्शकों को सिनेमा के माध्यम से कुछ अलग दिखाने और समझाने का भरसक प्रयास किया है। इस बार उन्होंने अपने निर्देशन में सदियों पुरानी मिज्र्या साहिबा की कहानी में दो सदियों की कहानी को दिखाने का बीड़ा उठाया है। साथ ही फिल्म की ओर लोगों को आकर्षित करने के लिए उन्होंने हर संभव प्रयास किया है। उन्होंने फिल्म के लिए जबर्दस्त होमवर्क किया है, जिसमें वे कई मायनों में सफल होते भी दिखाई दिए, लेकिन कहीं-कहीं पर वे अपने वर्क में थोड़ा इधर-उधर जाते दिखाई दिए। सदियों पुरानी साहिबा की प्रेम कहानी को कुछ अलग अंदाज में दिखाने की कोशिश तो की है, लेकिन ऑडियंस की वाहवाही बटोरने में वे पूरी तरह असफल रहे। कहानी में उलझन है…कभी इस युग में, तो कभी दूसरे युग में…ऐसे में कितना भी अच्छा निर्देशन क्यों न हो…दर्शकों को नींद तो आएगी ही…। 

कमजोर पहलू
फिल्म की कमजोर कड़ी इसकी कहानी है। ‘रंग दे बसंती’ में राकेश ने दो कहानियों को एक ही समय पर दिखाया था, जो कि एकदम सटीक बैठी थी। लेकिन इस बार फिल्मांकन में वो बात नजर नहीं आती। विजुअल ट्रीट तो है, लेकिन कहानी एक वक्त के बाद बोर करने लगती है। स्क्रीनप्ले और बेहतर हो सकता था। फिल्म के मिजाज के हिसाब से एक खास तरह की ऑडिएंस ही इसे पसंद कर पाएगी। राकेश मेहरा दिशा से एक बार फिर भटके हुए नजर आते हैं। 

गीत-संगीत…
फिल्म गीत-संगीत औसत है। शंकर एहसान लॉय ने अपने संगीत से पूरी फिल्म में पकड़ बनाई है। फिल्म का बैकग्राउंड अच्छा है।

क्यों देखें?
सालों पुरानी और यादगार साहिबा की प्रेम कहानी को आप सिनेमाघरों में देखने जा सकते हैं, लेकिन शायद आपको थोड़ी निराशा उठानी पड़े। इसके अलावा शायद आपको कुछ एंटरटेनमेंट की कमी भी महसूस हो सकती है। 

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