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यहां आज भी केसर और चंदन की होती है बारिश, जानें क्यों

locationबेतुलPublished: Jun 30, 2016 05:25:00 pm

Submitted by:

Manish Gite

सतपुड़ा पर्वत श्रृंखला के बीच हरे-भरे जंगलों में बसा है यह स्थल। बताया जाता है कि यहीं से साढ़े तीन करोड़ मुनिराज मोक्ष को प्राप्त कर चुके हैं।

Muktagiri, multai

Muktagiri, multai


भोपाल/बैतूल। सौंदर्य और धार्मिक स्थल मुक्तागिरी ऐसा स्थल है जहां माना जाता है कि केसर और चंदन की आज भी बारिश होती है। इस पवित्र स्थल पर दिगम्बर जैन संप्रदाय के 52 मंदिर हैं। एक से बढ़कर एक शिल्पकला का नमूना यहां की मूर्तियों में देखने को मिलता है। मन को सुख और शांति देने वाले इस स्थल पर सैकड़ों श्रद्धालु और पर्यटक आते हैं। यह स्थान MP के बैतूल जिले की भैंसदेही में मुक्तागिरी। थपोड़ा गांव में स्थित यह पवित्र स्थल धार्मिक प्रभाव के कारण लोगों को अपनी ओर खींचता है। यही कारण है कि देश के कोने-कोने से जैन धर्मावलंबी यहां आते हैं ही हैं, साथ ही दूसरे धर्मों को मानने वाले भी इस मनोहारी दृश्यों को देखकर भावविभोर हो जाते हैं।


सतपुड़ा पर्वत श्रृंखला के बीच हरे-भरे जंगलों में बसा है यह स्थल। बताया जाता है कि यहीं से साढ़े तीन करोड़ मुनिराज मोक्ष को प्राप्त कर चुके हैं। इसीलिए कहा गया है कि…


अचलापूर की दिशा ईशान तहां मेंढागिरी नाम प्रधान
साढ़े तीन कोटी मुनीराय तिनके चरण नमु चितलाय


शास्त्रों में इसका अर्थ बताया गया है कि साढ़े तीन करोड़ संतों को नमन करों, जिन्हें पवित्र नगरी अचलपुर के उत्तर-पूर्व मेढ़ागिरी के शिखर पर निर्वाण प्राप्त किया हो।


यहां अक्सर होती है केशर की बारिश
मुक्तागिरी के मेढ़ागिरी नाम के पीछे किंवदंती है कि यहां अक्सर केशर की बारिश होती है। करी एक हजार वर्ष पहले आसमान से एक मेढ़ा ध्यानमग्न एक मुनिराज के सामने आकर गिरा था। ध्यान के बाद मुनिराज ने जब उस मरणासन्न मेढ़े के कान में नमोकार मंत्र पढ़ा, तो वह मेढ़ा मरने के बाद देव बन गया। अपने मोक्ष के बाद देव बने मेढ़ा को मोक्षदाता मुनिराज का ध्यान आया। तभी से निर्वाण स्थल पर हर साल कार्तिक पूर्णिमा की रात में देव प्रतिमाओं पर केशर के छींटों का दर्शन होता है। यह कुदरती होने के कारण यह आज भी आश्चर्य का विषय बना हुआ है। केशर की यह बारिश 52 मंदिरों में से 10वें मंदिर में साफ देखी जा सकती है।


मुक्तागिरी का दूसरा नाम है मेंढ़ागिरी
मुक्तागिरी का दूसरा नाम मेंढ़ागिरी भी है। निर्वाण कांड में इसका उल्लेख भी है। कहा जाता है कि इस क्षेत्र के 10वें तीर्थंकर भगवान शीतलनाथ का समवशरण आया था। ऐसा मोतियों की बारिश मानने से इसे मुक्तागिरी कहा जाने लगा। बताया जाता है कि भगवान पार्श्वनाथ के दर्शन करने के लिए रोज अनेक श्रद्धालु आते हैं, जो बीमारी, भूत-पिशाच आदि सांसारिक परेशानियों को दूर करने की मंशा से आते हैं। लोगों की मनोकामना भी इस स्थान से पूरी हो जाती है।


झरना भी है खास
सतपुड़ा पर्वत की 250 फीट ऊंचा झरना भी है, जो प्राकृतिक सौंदर्य को और भी बढ़ा देता है। यहां दूर-दूर तक फैली हरियाली, पेड़-पौधे, पूरे क्षेत्र को और भी आकर्षक बना देते हैं। यहां आने वाले लोग एक अलग ही प्रकार का शांत वातावरण महसूस करते हैं। 52 मंदिरों के दर्शन करने के लिए श्रद्धालुओं को 250 सीढ़ियां चढ़कर 350 सीढ़ियां उतरना पड़ती है। मान्यता है कि यहां 600 सीढ़ियां चढ़ने-उतरने से एक मनोकामना परी हो जाती है।


पवित्रता को बचाने खरीदा था पहाड़
अचलपुर का पहले नाम एलिच‍पूर था। यहां स्थित मुक्त‍ागिरी सिद्धक्षेत्र को दानवीर नत्थुसा पासुसा,स्व. रायसाहेब रूखबसंगई और स्व. गेंदालाल हीरालाल बड़जात्या ने मिलकर खरीदा था। अंग्रेजों के कार्यकाल में खापर्डे के मालगुजारी में 1928 में इसे खरीदा गया था। बताया जाता है कि उस दौरान शिकार के लिए पहाड़ पर जूते-चप्पल पहन कर जाते थे और जानवरों का शिकार करते थे। इसी वजह से इस सिद्ध क्षेत्र की पवित्रता को बनाए रखने के लिए उन्होंने यह पहाड़ ही खरीद लिया था।
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