शिवमणि त्यागी, सहारनपुर। अभी तक आप भले ही सड़काें में आने वाले गड्ढाें आैर समय से पहले टूट जाने वाली सड़काें के लिए लाेक निर्माण विभाग यानि पीडब्ल्यूडी काे काैसते रहें हाें लेकिन अब समय बदल गया है। सबकुछ याेजना के तहत हुआ ताे पीडब्ल्यूडी की सड़काें पर अब ना ताे गड्ढे मिलेंगे आैर यह सड़कें भी सालाें साल चलेंगी। यही नहीं, सड़काें पर हाेने वाले भारी-भरकम खर्च में भी कटाैती आएगी आैर सड़क बनाते समय हाेने वाले प्रदूषण आैर उड़ने वाली धूल में भी भारी कमी हाेगी।
नई तकनीक वालों को ही मिलेगा टेंडर
लाेक निर्माण विभाग सड़क बनाने की एक एेसी तकनीक काे आत्मासात करने जा रहा है जाे किफायती आैर मजबूत हाेने के साथ ही पर्यावरण फ्रेंडली भी है। इससे भी अच्छी खबर यह है कि नई तकनीक काे उत्तर प्रदेश में लागू करने के लिए विभागीय स्तर पर काम शुरु हाे गया है। उम्मीद जताई जा रही है कि फरवरी माह के बाद जाे भी टेंडर पीडब्ल्यूडी के निकलेंगे उनमें नई तकनीक से निर्मित सड़काें काे बनाने में सक्षम एजेंसियां ही हिस्सा ले पाएंगी। इससे साफ है कि मार्च से अप्रैल माह में आप उत्तर प्रदेश में इस नई तकनीक से सड़कें बनते हुए देख सकेंगे आैर इन सड़काें पर फर्राटे भरने का अवसर भी आपकाे इन्हीं माह में मिल जाएगा।
शुरु हुआ ट्रायल
अधिशासी अभियंता प्रंतीय लाेक निर्माण खंड सहारनपुर, केके त्यागी ने इस नई तकनीक पर विभाग में काम शुरु हाे जाने की इसकी पुष्टि की है। उन्हाेंने बताया कि अभी तक यूपी में इस नई तकनीक से एक भी सड़क नहीं बनी है। सहारनपुर-मेरठ राेड पर इस तकनीक काे एक ट्रायल के रूप में इस्तेमाल करके देखा गया है। अब पूरे प्रदेश में इस तकनीक काे लागू किए जाने की याेजना काे हरी झंडी दे गई है। इसके लिए विभागीय अफसराें काे निर्देश पहुंच गए हैं। नए निर्देशाें के आधार पर विभाग में इस नई तकनीक से सड़कें बनाने के लिए अपडेटेशन का काम भी शुरु हाे गया है।
अभी तक इस तकनीक से बन रही थी सड़कें
अभी तक सड़कें बनाने के लिए एजेंसियां पुरानी सड़क पर नए सिरे से एक के बाद एक परत बिछाते हुए अंतिम सरफेस तैयार करती हैं। सड़क के टूटने पर हर बार यही प्रक्रिया अपनाई जाती है। इस तरह सड़क काे तैयार करने में काफी समय लगता है। पत्थर मिट्टी, बजरी आैर मैटिरियल की बार-बार परत बिछाए जाने से समय आैर लागत ताे बढ़ती ही है सड़क ऊंची हाेती जाती है आैर इससे सड़क के किनारे की इमारतें आैर सड़क के नीचे सीवेज, टेलीफाेन आैर अन्य तरह की लाईनें भी गहराई में चली जाती हैं।
अब एेसे बनेंगी सड़कें
अधीक्षण अभियंता केके त्यागी के मुताबिक, अभी तक नई तकनीक के बारे में यह जानकारी मिली है कि अब सबसे पहले पुरानी सड़क की परत काे उखाड़ा जाएगा। इस उखड़े हुए मैटीरियल काे चलित प्लांट में डालकर नए मैटीरियल के साथ मिक्स किया जाएगा आैर साथ ही साथ इसकी तैयार लेयर काे सड़क पर बिछा दिया जाएगा। यानि आगे एक मशीन सड़क की पुरानी हाे चुकी परत काे उखाड़ती हुई चलेगी आैर इसके पीछे दूसरी मशीन उखड़ी हुई लेयर काे नए मैटीरियल के साथ मिक्स करती रहेगी आैर इनके पीछे चल रही तीसरी मशीन इसी सड़क पर नई लेयर काे बिछाते हुए आगे बढ़ती रहेगी।
ये हाेंगे फायदें
— नई तकनीक से सड़क काे बनाने में समय बेहद कम लगेगा।
— नई तकनीक से बनने वाली सड़क पर खर्च भी कम आएगा।
— इस तरह तैयार सड़क की आयु भी सामान्य सड़क से अधिक हाेगी।
— सड़क की उंचाई नहीं बढ़ेगी, इससे घर, प्रतिष्ठान आैर सड़क के नीचे डाली गई लाईनाें पर काेई असर नहीं पड़ेगा।
— यह तकनीक पयार्वरण के हिसाब से भी अच्छी है आैर पुरानी तकनीक से कम प्रदूषण कम हाेगा।