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प्रेम क्लीनिक

जब भी घुस कर तमाशा देखने का कीड़ा कुलबुलाने लगता है हम बेचैन हो उठते हैं और इसी  की बदौलत राह चलते अचानक प्रेम क्लीनिक में घुस गए। दरअसल यह क्लीनिक नई-नई खुली थी। पहले यहां अरहर के दाल की दुकान थी लेकिन पिछले दिनों छापे के बाद बंद हो गई और यहां प्रेम क्लीनिक […]

Oct 29, 2015 / 03:16 am

afjal

जब भी घुस कर तमाशा देखने का कीड़ा कुलबुलाने लगता है हम बेचैन हो उठते हैं और इसी की बदौलत राह चलते अचानक प्रेम क्लीनिक में घुस गए। दरअसल यह क्लीनिक नई-नई खुली थी। पहले यहां अरहर के दाल की दुकान थी लेकिन पिछले दिनों छापे के बाद बंद हो गई और यहां प्रेम क्लीनिक खुल गई। 

जैसे ही दुकान के भीतर पहुंचे तो देख कर दंग रह गए कि परिचित मित्र प्रेम कुमार वहां बैठा है जो ‘प्रेमीÓ उपनाम से कविता लिखता था। प्रेम के चक्कर में वह कई बार पिट भी चुका था। प्रेम हमें पहचान गया। बोला- अरे वाह। आज तो सूरज पश्चिम से निकला है जो दर्शन हो गए। हमने पूछा- यार बीच में तुम कहां गायब हो गए और यह क्लीनिक क्या बला है। 

प्रेमी बोला- जैसे-जैसे जमाना बदल रहा है प्रेम के रंग भी बदल रहे हैं। अपने जमाने में प्रेमी पार्ट टाइमर नहीं होल टाइमर होते थे। प्रेमी सुबह उठते ही प्रेम सागर में डूब जाता और जब तक सोता नहीं था प्रेमिका के सपने देखता था। 

हमने कहा- तेरी बात समझ आ गई। इसीलिए डिवीजन बिगड़ गई और कॉलेज में एडमिशन ही नहीं मिला। प्रेम कुमार बोला- लेकिन प्रेम आज पार्ट टाइम में तब्दील हो चुका है। बेचारे बच्चे करें भी क्या। पढ़ाई-लिखाई और प्रोजेक्ट से ही फुरसत नहीं मिलती। सुबह से शाम तक किताबों और कम्प्यूटर में ही खपे रहते हैं। 

थोड़ा बहुत वक्त मिला तो फेसबुक और व्हाट्सएप। उस जमाने में प्रेम पत्र लिखने का चलन था आजकल शॉर्ट मैसेज भेजे जाते हैं। वह भी ऐसी भाषा में कि चार दिन बाद न भेजने वाले के पल्ले पड़े और न मिलने वाले के। तब प्रेम बागों में, उपवनों में, मन्दिरों में परवान चढ़ता था। आजकल कॉफी हाउस और रेस्तरां हैंं। 

वहां भी वेटर सिर पर खड़ा रहता है। ऐसे में दोनों बेचारे कुंठित हो जाते हैं तब मैं उनको राह दिखाता हूं। इधर इकतरफा प्रेम का चलन बढ़ गया है। जब से खान नामक हीरो की फिल्में आई हैं, इकतरफा प्रेम की बाढ़ सी आ गई है। सच्ची बात तो यह है कि अब ढंग से प्रेम करने को समय ही नहीं बचा। पहले प्रेमी हाय-हाय करते थे। 

रातों को तारे गिनते थे। दिन में भरी धूप में छत पर टहलते थे। घंटों तक प्रेम निवेदन करते थे। अब तो प्रेम करना मानो मैगी पकाना हो गया। हमने पूछा- यह सब तो ठीक है पर तुम्हारा धंधा कैसा चल रहा है। प्रेमी बोला- मैं तो प्रेमियों को सुरक्षा के फंडे सुझाता हूं। 

प्रेम करते वक्त क्या-क्या सावधानियां बरतनी चाहिए। सच्चे और कच्चे प्रेम में क्या अंतर है। एक प्रेम में विफल हो गए तो कोई पहाड़ नहीं टूट पड़ेगा। तू नहीं और सही। ज्यादा तो नहीं हां अरहर की दाल और प्याज खरीदने लायक तो कमा ही लेता हूं। हमने कहा- अरे वाह। ये मुंह और अरहर की दाल।
 – राही

सच्ची बात तो यह है कि अब ढंग से प्रेम करने को समय ही नहीं बचा। पहले प्रेमी हाय-हाय करते थे। रातों को तारे गिनते थे।

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