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मन से भी हो गण की जय! 

Published: Dec 02, 2015 02:05:00 am

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afjal

जहां संविधान की बात आती है, वहां नागरिकों के मूल कर्तव्य की बात आती है। संविधान के मूल कर्तव्यों में भारत के नागरिकों के सबसे पहले कर्तव्य के तौर पर यह बात दर्ज है कि संविधान का अनुसरण करना और दूसरी बात यह है कि राष्ट्र ध्वज और राष्ट्र गान का आदर करना। 

जहां संविधान की बात आती है, वहां नागरिकों के मूल कर्तव्य की बात आती है। संविधान के मूल कर्तव्यों में भारत के नागरिकों के सबसे पहले कर्तव्य के तौर पर यह बात दर्ज है कि संविधान का अनुसरण करना और दूसरी बात यह है कि राष्ट्र ध्वज और राष्ट्र गान का आदर करना। 

लेकिन यह भी सच है कि देश के संविधान में मूल कर्तव्य के तौर पर क्या दर्ज हैं, इसके बारे में अधिकांश लोगों को पता ही नहीं है। मेरा मानना है कि भारत में भयंकर संवैधानिक निरक्षरता है। यह सही है कि एक ओर तो संविधान में यह दर्ज है कि संविधान का अनुसरण करना है। मूल दायित्व के बारे में बताया गया है। 

लेकिन सवाल यह है कि अगर किसी को ऐसी बुनियादी बातों के बारे में जानकारी नहीं है तो उसकी पालना की उम्मीद कैसे कर सकता है? देश में नीति और कानून कैसे बनाए जाते हैं? संवैधानिक संस्थाएं कैसे काम करती हैं? उन नीतियों का पालन कैसे किया जाए जैसी बातों के बारे में पता ही नहीं है। मेरा अनुमान है कि देश के 99 प्रतिशत लोग संवैधानिक तौर पर साक्षर नहीं हैं। 

मूल कत्र्तव्य का हो पता
संविधान के बारे में लोगों को जानकारियां हासिल हों। देश की ज्यादा से ज्यादा जनता संवैधानिक तौर पर साक्षर हो सकें, ऐसी कोशिश की जानी चाहिए। महत्वपूर्ण बात यह है कि देशभर में संवैधानिक साक्षरता फैलाई जाए। 

देश के सभी नागरिकों को अपने संविधान सम्मत मूल दायित्वों के बारे जानकारी हो। वर्तमान सरकार ने 26 नवंबर को संविधान दिवस घोषित किया। इस कार्य के लिए सरकार बधाई की पात्र है। शरदकालीन चालू सत्र का पहले दो दिन सरकार ने संविधान को समर्पित किए, इसके लिए सरकार साधूवाद का पात्र है।

निश्चित तौर ये अच्छी बातें हैं, लेकिन इन बातों से आम जनता में संविधान के प्रति जागरूकता नहीं बढ़ेगी। सरकार को संवैधानिक साक्षरता को बढ़ावा देने के लिए दूसरे कार्यों पर जोर देना होगा। 

प्रतीकों पर संविधान
संविधान के प्रति जागरूकता से इतर राष्ट्रीयता के प्रतीकों मसलन राष्ट्रगान, राष्ट्रीय झंडा आदि के बारे में 1971 में एक अधिनियम बना था। उस अधिनियम के अनुसार अगर कोई झंडा फहराने या राष्ट्रगान के गाने के दौरान कोई बाधा पहुंचाता है तो उसे दोषी माना जाएगा। ऐसे मामलों में दोषी पाए जाने वाले व्यक्ति को सजा भी हो सकती है और उसपर जुर्माना भी लगाया जा सकता है।

राष्ट्रगान जब गाया जा रहा हो तो उसमें खड़े होकर गाए जाने की परंपरा है। खड़ा होना राष्ट्रगान के प्रति आदर अभिव्यक्त करने की एक परंपरा प्रकट करने की सूचक जैसा है। लेकिन ऐसा यदि कोई व्यक्ति करता है तो फिर उसे कोई व्यक्ति ऐसा करने की सलाह दे सकता है। उसे यह मानकर जानकारी दे सकता है कि शायद उस व्यक्ति को ऐसा करने की परंपरा के बारे में पता नहीं है। 

उस व्यक्ति को ऐसा करने के लिए कोई बाध्य करे या कोई उसे सजा दे, ऐसा कोई कानून नहीं है। राष्ट्रगान कहीं किसी सभा, किसी थियेटर या किसी कार्यक्रम में गाया जा रहा हो तो अमूमन लोग समवेत स्वर में उसे गाते हैं। यह भी हमारे आदर प्रकट करने की परंपरा है। 

लेकिन कोई व्यक्ति यदि राष्ट्रगान नहीं गाना चाहे तो उसे कोई ऐसा करने के लिए बाध्य नहीं कर सकता है। उसे कोई इसके लिए सजा नहीं दे सकता है। कोई एफआईआर नहीं दर्ज करा सकता है। कोई मुकदमा दायर नहीं करा सकता। 

किसी सभा, किसी थियेटर या किसी कार्यक्रम में राष्ट्रगान गाया जा रहा हो तो लोग समवेत स्वर में उसे गाते हैं। यह हमारे आदर प्रकट करने का एक तरीका है। लेकिन कोई व्यक्तिऐसा न करे तो उसे बाध्य नहीं किया जा सकता है। 

 कोई बाध्यता नहीं
राष्ट्रीय सम्मान के अपमान को रोकने के लिए बने 1971 के कानून के मुताबिक अगर कोई राष्ट्रगान के दौरान जानबूझकर व्यवधान डालता है तो उसे तीन साल तक की सजा या जुर्माना अथवा दोनों हो सकते हैं। 

शारीरिक रूप से अक्षम लोगों द्वारा खड़े न हो पाना अपमान नहीं माना जाएगा। हालांकि कानून में यह नहीं लिखा हुआ है कि राष्ट्रगान गाते समय खड़े होना जरूरी है। करण जौहर बनाम भारतीय सरकार के मामले में सुप्रीम कोर्ट (2004) ने कहा था कि राष्ट्रगान के दौरान खड़े रहना बाध्यकारी नहीं है।

कुछ चर्चित विवादास्पद मामले थिएटर से भगाया
29 नवंबर 2015, कुर्ला के सिनेमा घर में फिल्म शुरू होने से पहले राष्ट्रगान बजाया गया तो एक अल्पसंख्यक परिवार खड़ा नहीं हुआ। वहां मौजूद लोग भड़क गए और परिवार को भागना पड़ा। महाराष्ट्र सरकार ने 2003 में सभी सिनेमाघरों के लिए राष्ट्रगान बजाना जरूरी किया था।

राम नाईक ने रुकवाया
31 अक्टूबर 2015। उत्तर प्रदेश के राजभवन में पिछले माह कुछ मंत्रियों के शपथ ग्रहण समारोह के अंत में जब राष्ट्रगान बजाया गया तो राज्यपाल रामनाईक ने हाथ से इशारा कर उसे रुकवा दिया। इस पर काफी विवाद खड़ा हो गया था। इसे राष्ट्रगान के अपमान के तौर पर देखा गया।

…और चल दिए सांसद 
मई 2013। लोकसभा में सदन स्थगित होने से पहले वंदे मातरम बजाया गया। ज्योंही यह शुरू हुआ बसपा सांसद शफि$कुर रहमान बकऱ् सदन से चल दिए। इसे राष्ट्रगीत के अपनाम के तौर पर देखा गया। ब$र्क से जब जवाब मांगा गया तो उन्होंने कहा कि उन्होंने कुछ गलत नहीं किया और मांफी नहीं मांगेंगे।

यह टैगोर की भावना तो न थी
भा वनात्मक स्तर राष्ट्रगान, राष्ट्रगीत और तिरंगे का आदर होना चाहिए। पर कानून का सवाल है तो जब कोई सम्मान में खड़ा नहीं होता या गाता नहीं है तो उसके लिए कोई सजा नहीं है। सजा तब है, जब आप राष्ट्रगान गाने से रोकते हो या अपमान करते हैं। राष्ट्रगान के दौरान शांत बैठे रहने पर कोई गुनहगार नहीं बन जाता। 

पिछले 15-20 साल में राष्ट्रवाद के नाम पर उन्माद खड़ा किया गया है। समाज में बांटने वाले लोग हावी हुए हैं। यह विचारधारा राष्ट्रवाद से जुड़ गई है। एक तबका इन मुद्दों को बहुत उग्र तौर पर इस्तेमाल करता है। 

महाराष्ट्र में थिएटर से मुस्लिम परिवार को भगाया गया, वह इसका द्योतक है। कुछ लोग अपनी उग्र राष्ट्रवाद की अभिव्यक्ति के खिलाफ किसी को बर्दाश्त नहीं कर सकते। यह उग्र राष्ट्रवाद जानबूझकर बढ़ाया गया है। युद्ध का शौर्यगान, अपने राजाओं का यशोगाण आदि लोकतंत्र के लिए सही नहीं हैं। 

राष्ट्रगान खुद रविन्द्रनाथ टैगोर ने लिखा था और वे खुद मानते थे कि राष्ट्रवाद एक सीमा तक ही जायज है। वे पूरी मानवता में विश्वास रखने वाले व्यक्ति थे। विडंबना है कि जिस कवि ने राष्ट्रगान लिखा वह खुद उग्र राष्ट्रवाद के खिलाफ था पर जो पालन करवाना चाह रहे हैं वे उग्र राष्ट्रवादी हैं।

गांधी भी तो राष्ट्रवादी थे 
हमारे देश में बाध्य करना, प्रतिबंध लगाना एक तरह से लोगों में भय का ही कारण बनता है। लोकतंत्र के लिहाज से तो यह कतई ठीक नहीं है पर एक बिरादरी को उसके उद्देश्यों की पूर्ति के लिए यह सुहाता है। हमारे समाज में यह चलन बहुत तेजी से बढ़ा है। धर्म को राष्ट्रवाद से जोड़ दिया गया है और यह खतरनाक स्वरूप लेता जा रहा है। 

गहराई में जाएं तो यह सोचने वाली बात है कि महात्मा गांधी, जो राष्ट्रवाद के शिखर पुरुष हैं, खुद जीवन में बहुत उदार थे। उनकी राष्ट्रीयता सबको एक साथ ले आई। गांधी का जो राष्ट्रवाद था, उसका मकसद था ब्रिटिश का विरोध। यह समावेशी था, यह किसी सीमा को नहीं मानता था। 

हमारे देश में बाध्य करना, प्रतिबंध लगाना एक तरह से लोगों में भय का ही कारण बनता है। लोकतंत्र के लिहाज से तो यह कतई ठीक नहीं है पर एक बिरादरी को उसके उद्देश्यों की पूर्ति के लिए यह सुहाता है।

शिकायत करें, सजा न दें
मुंबई के एक सिनेमा हॉल में राष्ट्रगान बजाया गया और एक परिवार के उस दौरान नहीं खड़े होने पर उससे अनाप-शनाप कहा गया और बाहर चले जाने को कहा गया। एक तो यह समझना होगा कि क्या महाराष्ट्र में किसी सरकारी आदेश के तहत ऐसा हो रहा है तो यह दोनों ही ओर से ठीक नहीं हुआ। 

मतलब पहले जिस व्यक्ति ने इस नियम की पालना नहीं की और दूसरा जिन लोगों ने उस व्यक्ति से बदतमीजी की और उसे हॉल से बाहर खदेड़ दिया। कोई व्यक्ति किसी परंपरा का पालन नहीं करता है तो उसकी शिकायत सिनेमा प्रबंधन या पुलिस प्रबंधन से की जा सकती थी।

देश में एक समय ऐसा कानून था, जिसके अनुसार देश के हर सिनेमा हॉल में सिनेमा शुरू होने से पहले राष्ट्रगान की प्रस्तुति होती थी। इंदिरा गांधी ने इस कानून को इमरजेंसी के दौरान लागू करवाया था। 

लेकिन उस समय भी कुछ लोग बैठे होते थे और कुछ खड़ होते थे और कुछ लोग थियेटर में राष्ट्रगान की प्रस्तुति के बाद प्रवेश करते थे या फिर उस दौरान हॉल से बाहर निकल आते थे। इस नियम का बहुत मजाक उड़ाया जाता था तब इसे रद्द किया गया था। 

दायरा बड़ा हो
इस तरह के नियम का कोई तुक भी नहीं है कि आप राष्ट्रगान के दौरान खड़े न हों तो उसपर सजा सुनाई जाए। देशभक्ति का पैमाना हमेशा बड़ा होना चाहिए। ऐसी छोटी-छोटी बातों पर देशभक्ति हमारे आड़े नहीं आना चाहिए। यह हमारे खोखलेपन को दर्शाता है। 

अगर आप राष्ट्रगान की प्रस्तुति का नियम ही बनाते हैं तो सिर्फ सिनेमा हॉल ही क्यों? फिर तो आपको अस्पताल, रेलगाड़ी, किसी भी कार्यक्रम के दौरान लागू करवाना चाहिए। उस व्यक्ति को खदेडऩे वाले व्यक्ति के देशभक्ति की पहचान हो। 

दंड बिना होता है उल्लंघन
सा रा मसला भावना और श्रद्धा से जुड़ा हुआ है। अगर कोई राष्ट्रगान नहीं गा रहा है तो उस पर कानूनी कार्रवाई तो की नहीं जा सकती। अगर कोई सम्मान में खड़ा भी नहीं हुआ तो उसे जेल नहीं भेज सकते। 

पर जो लोग राष्ट्रगान, राष्ट्रध्वज या राष्ट्रगीत का सम्मान नहीं करते वह संविधान के मूल कत्र्तव्र्यों का उल्लंघन कर रहे होते हैं। दुर्भाग्य से यह उल्लंघन सजा के दायरे में नहीं आता। अगर ऐसा होता तो ऐसे अपमान करने वाले लोग नहीं होते। 

बगैर भय लोग कत्र्तव्यों का पालन नहीं करते। हालांकि कुछ लोगों में सम्मान और आदर नहीं है तो उन्हें कानूनन बाध्य नहीं किया जा सकता। तकनीकी तौर पर राष्ट्रगान के लिए यह प्रावधान बताया जाता है कि अगर आप खुले आसमां तले हैं तो आपको खड़ा होना जरूरी है। अब घर, थिएटर में कोई खुले आसमां तले नहीं होता तो वे बाध्य नहीं है। 

कोई व्यक्ति अपने घर में बैठा है और राष्ट्रगान की आवाज आ रही है तो यह जरूरी नहीं है कि वह खड़ा हो जाए। पर यह भी उम्मीद की जाती है कि अगर राष्ट्रगान गाया जा रहा है तो उसमें कोई व्यक्ति बाधा नहीं पहुंचाएगा और हुड़दंग नहीं करेगा। 

मैं फिर दोहराना चाहूंगा कि उल्लंघन करने वालों के खिलाफ दंड का प्रावधान किया जाना चाहिए। एक आदर्श नागरिक का कत्र्तव्य है कि वह उनका पालन करे। राष्ट्रगान जब भी गाया जाए तो एक सुर, लय और अवधि में गाया जाए।

उल्लंघन करने वालों के खिलाफ दंड का प्रावधान किया जाना चाहिए। एक नागरिक का कत्र्तव्य है कि वह राष्ट्रगान का पालन करे। जब भी गाया जाए तो एक सुर, लय, अवधि में गाया जाए।

आतंकवाद के भस्मासुर से मध्य एशिया भयभीत
कटï्टरपंथ और आतंकवाद पूरे विश्व की ज्वलंत समस्या है। शायद ही कोई देश इस अभिशाप से अछूता रहा हो। इतना जरूर है कि दृढ़ इच्छाशक्ति और अदम्य साहस के बलबूते अमरीका जैसे सर्वशक्तिमान राष्ट्र ने आतंकी घटनाओं की पुनरावृत्ति नहीं होने दी लेकिन आसन्न खतरों से वे भी आश्वस्त नहीं हैं।

मध्य ऐशिया के मुस्लिम बहुसंख्यक देश आतंकियों के लिए सुरक्षित पनाहगाह बने हुए है। खुद आतंकवाद का दंश झेल रहा पाकिस्तान पड़ोसी देश भारत के लिए भी सिरदर्द बना हुआ है। सेना समर्थित कमजोर सरकारों की शह मिलने से आतंकवाद को फलने-फूलने का भरपूर मौका मिला । अकूत तेल भंडारों से लवरेज देशों की बेहिसाबी धन-संपत्ति और भटकी हुई युवाशक्ति ने उनके लिए खाद-पानी का काम किया है। 

फिर भी सियासतदां ऐसे भस्मासुरों को वरदान देने से बाज नहीं आ रहे। इस संदर्भ में ईरान की संसद (मजलिस) के अध्यक्ष अली लैरिजानी ने कहा है कि कुछ देश आतंकवाद से निपटने की बजाय उसे प्रश्रय दे रहे हैं। 

ह विश्व के सभ्य समुदाय के लिए बड़ी विडंबना है। ग्रीक विदेश मंत्री निकोस कोटजियास के साथ तेहरान में बैठक के दौरान उन्होंने यह तल्ख टिप्पणी की। उन्होंने आशा व्यक्त की कि मध्य पूर्व में शांति और स्थायित्व कायम रखने के लिए सभी देश साझा कदम उठाएंगे। 

ग्रीक विदेश मंत्री ने यूरोपीय समुदाय की ओर से ईरान पर लगाए गए प्रतिबंधों को अनुचित ठहराते हुए राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक क्षेत्र में परस्पर संबंध सुदृढ़ बनाने और प्रतिबंध शीघ्र हटा लेने की उम्मीद जताई। 
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