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नोएडा

विवादित ढांचा : आज भी दर्जनभर शव ढांचे के नीचे दबे होंगे 

छह दिसंबर की कहानी एक कारसेवक की जुबानी

नोएडाDec 06, 2016 / 02:55 pm

sharad asthana

babri masjid

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नोएडा। ‘छह दिसंबर, आज का दिन मैं कभी नहीं भूल सकता। मैं भी वहींं उस दिन कारसेवक के तौर पर मौजूद था। देश के कोन-कोने से लोग आए हुए थे। अयोध्या ऐसा लग रहा था कि पूरा देश ही इसी में बस गया हो। मैं जब वहां से लौटा तो वहां से कुछ ईंटेंं लेकर आ गया था। उन ईंटों पर 1932 की तिथि की डेट लिखी हुई थी। जिनपर मदनानी लिखा था। क्या बताऊं एक ईट का वजन करीब 10 किलो था।’ आज भी देश के वो चश्मदीद इस घटना को भूलने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन 6 दिसंबर का दिन आते ही सारी बातें जहन में तरोताजा हो जाती हैं। ये बातेें उस समय समय के कारसेवक सहारनपुर निवासी राजेंद्र अटल ने पत्रिका से कही। 

आम जनता ने भरा था जोश 

उन्होंने बताया, उस समय हमारे ठहरने की व्यवस्था पीएसी के कैंप के पास थी। जैसे ही हम आयोध्या में पहुंचे। वहां से हम कारसेवा पुरम की ओर जा रहे थे। लोग हमारा गर्मजोशी से स्वागत कर रहे थे। लोग सडक़ों पर उतर आए थे। हमारा उत्साह बढ़ाने के लिए नारे लगाए जा रहे थे। सभी जय श्रीराम का नारा लगा रहे थे और हमें भोजन के लिए बुला रहे थे। उन्होंने बताया कि हमें आशंका थी कि लाठी गोली भी चल सकती है लेकिन आम लोगों के उत्साह और स्वागत ने हमारे अंदर नई ऊर्जा का संचार कर दिया था। पूरे देश से कारसेवक पहुंचे थे। मुख्य मुद्दा था कि अयोध्या से बाबरी ढांचा हटे और राम मंदिर बने, लेकिन यहां पर संघ की योजना थी कि शांतिपूर्ण तरीके से सांकेतिक कार सेवा की जाए। 

कारसेवकों में थी बेचैनी 

उन्होंने बताया, सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर इसकी अनुमति थी। एक जज भी देखरेख कर रहे थे। होना ये था कि सभी कारसेवक जाएंगे। थोड़ी मिट्टी या रेत लेकर कारसेवा करेंगे, लेकिन कारसेवकों में बड़ी बेचैनी थी। सभी चाहते थे कि ढांचा गिरे। इस उत्तेजना में और उस माहौल में सभी कारसेवक ढांचे को गिराने को आमादा थे लेकिन खुलकर कोई नहीं बोल रहा था। उन्होंने बताया, मस्जिद के बाहर बने कमरों के सामने के मैदान में लगे मंच से केंद्रीय नेता भाषण दे रहे थे और सभी को समझा रहे थे। समूचे परिसर में आदमी ही आदमी थे, जरा सी भी जगह नहीं बची थी। 

रोकने के बाद भी गिरा ढांचा 

उन्होंने बताया, ऐसे माहौल में कुछ लोग बैरिकेडिंग तोड़कर मस्जिद की तरफ बढ़े। कुछ बल्ली तोडकर बल्लियों को सहारे आगे बढ़े। कुछ एक-दूसरे के कंधों के ऊपर से होते हुए ढांचे के ऊपर चढ़ गए। ऐसे में उन्हें रोकना बहुत मुश्किल हो रहा था। सभी बड़े नेता उन्हें रोकने का प्रयास कर रहे थे। कुछ लोग कहीं से हथौड़े ले आए, जिसको जो मिला, वह उसीसे ढांचा गिराने में लग गया। राजेंद्र अटल ने बताया, साढ़े ग्यारह बजे पहला ढांचा गिरा। इस ढांचे में कई कारसेवक भी मारे गए। आज भी दर्जनभर शव उसी के नीचे दबे होंगे। दूसरा ढांचा करीब ढाई बजे तक गिर गया। अब बारी थी बीच के मुख्य ढांचे की। सभी कारसेवक इसकी और बढे। इसी ढांचे में रामलला का एक पालना और मूर्ति थी। 

मैं भागा और रामलला का पालना और मूर्ति ले आया

उन्होंने बताया, जैसे ही मुझे लगा कि ये ढांचा गिरने वाला है तो मैं बदहवास हालत में भागते हुए अंदर गया और उस पालने और मूर्ति को लेकर बाहर भाग आया। जैसे ही मैं बाहर आया ढांचा भरभराकर नीचे गिर पड़ा। हमने कई दिनों से कुछ नहीं खाया था, लेकिन रामलला को स्पर्श करते हुए ही मुझमें उर्जा का नया संचार हुआ। इस मुख्य गुंबद के काले पत्थरों पर वरहा की मूर्ति बनी हुई थी, जिससे साबित होता है कि ये मस्जिद के पिल्लर नहीं थे।

पीएसी ने कहा, यहां से निकल जाओ

इसके बाद के माहौल पर बात करते हुए उन्होंने बताया कि मस्जिद के ढांचे गिर चुके थे। पूरे अयोध्या में हडक़ंप मचा हुआ था। हमें आदेश दिया गया कि आर्मी इस इलाके को टेकओवर कर सकती है। पीएसी के जवानों ने भी हमें कहा, यहां से निकल जाओ। अगर आर्मी आ गई तो हम भी आपकी मदद नहीं कर पाएंगे। ऐसे में हमें इस बात की संभावना भी थी कि मौजूदा नरसिम्हाराव सरकार मलबे के तीनों टीले साफ कराकर यहां पर फिर से मस्जिद बनवा सकती है। 

रात में निर्माण का काम 

हमें फिर से एक आदेश दिया गया कि 11 तारीख तक कोई कहीं नहीं जाएगा। इसके बाद मैंने और मेरे साथियों ने मिलकर राम मंदिर बनाने का काम शुरू किया। हम रात को 9 बजे मुख्य गुंबद के टीले पर पहुंचे। इसका मलबा हटाकर उसे प्लेन किया और दो फुट का एक चबूतरा बनाया। यहां पर हमने रामलला का पालना और मूर्ति स्थापित की। सुबह चार बजे पुजारी को बुलाया गया और पूजा शुरू की गई। ये पालना आज भी अयोध्या में मौजूद है।

एक तस्वीर खींची गई थी

कोई फोटो के बारे में पूछने पर उन्होंने बताया, जब हम ये सब कर रहे थे तो कई फोटोग्राफर हमारी तस्वीरें लेने आए, जिनके कैमरे हम लोगों ने तोड़ दिए। इनमें लंदन के फोटोग्राफर मार्क टुली का कैमरा भी शामिल था। सुबह पांच बजे हमारे पास एक महिला फोटोग्राफर आई, उसने हमसे केवल एक तस्वीर खींचने की गुजरिश की। हम सभी ने विचार करके केवल एक तस्वीर की इजाजत दे दी। वह अकेली तस्वीर थी, जो उस समय खींची गई थी, जिसे बाद में एक पत्रिका ऑर्गेनाइजर के कवर पेज पर छापा गया था।
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