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धोनी-कोहली को है ”तलाश”, भारत के पास है दुनिया का सबसे तेज गेंदबाज

क्रिकेट का नाम आते ही भारतीयों की जुबां पर पुरुष खिलाड़ी का नाम आता है, महिला खिलाड़ियों की अनदेखी कर दी जाती है। लेकिन अब तक जो कारनामा भारतीय पुरुष खिलाड़ी नहीं कर सके है वो काम भारत की एक महिला क्रिकेटर ने कर दुनिया को स्तब्ध कर दिया है।

Nov 06, 2015 / 01:36 pm

satyabrat tripathi

नई दिल्ली। भारत में क्रिकेट को धर्म की तरह पूजा जाता है, बावजूद इसके भारतीयों में इस खेल के प्रति दोहरा रवैया साफ तौर पर देखा जा सकता है। अब आप यह सोचने के लिए विवश हो गए होंगे कि आखिर कैसे, लेकिन यही हकीकत है। 

दरअसल, क्रिकेट का नाम आते ही सबसे पहले भारतीयों की जुबां पर पुरुष खिलाड़ी का नाम आता है, महिला खिलाड़ियों की अनदेखी कर दी जाती है। लेकिन मजे की बात तो यह है कि अब तक जो कारनामा भारतीय पुरुष खिलाड़ी नहीं कर सके है वो काम भारत की एक महिला क्रिकेटर ने कर दुनिया को स्तब्ध कर दिया। यह महिला क्रिकेटर कोई और नहीं बल्कि झूलन गोस्वामी है। 

jhulan goswami

एक तरफ भारतीय पुरुष क्रिकेट टीम हमेशा से ही एक अदद तेज गेंदबाज के लिए जूझती रही है। भारतीय पुरुष क्रिकेट टीम ब्रेट ली, शोएब अख्तर, वसीम अकरम, वकार यूनुस और एलेन डोनाल्ड जैसे गेंदबाजों के लिए तरसता रहा, लेकिन वह अब तक ऐसे गेंदबाजों को खोज नहीं सका। 

लेकिन बहुत कम ही लोगों को यह पता होगा कि महिला टीम की स्टार गेंदबाज झूलन गोस्वामी दुनिया की सबसे तेज गेंदबाजों में शुमार हैं। 

झूलन गोस्वामी 120 किमी/घंटे की रफ्तार से गेंद फेंकने की काबिलियत रखती है। वैसे ओवर ऑल देखा जाए तो ऑस्ट्रेलिया की कैथरीन फिट्ज़पैट्रिक को सबसे तेज महिला बॉलर माना जाता है, लेकिन वे संन्यास ले चुकी है। महिला गेंदबाज झूलन के यहा तक पहुंचने की कहानी बड़ी ही प्रेरणास्पद है। 

क्यों बनीं तेज गेंदबाजः

jhulan goswami



बंगाल के नदिया जिले में 25 नवम्बर 1982 जन्म झूलन का बचपन घर के आसपास के लड़कों के साथ टेनिस बॉल खेलते हुए बीता। लेकिन झूलन की गेंद की रफ्तार इतनी नहीं थी कि लड़के उनकी गेंदबाजी से डरते, बल्कि उनकी गेंदों को बाउंड्री पार भेज देते। इतना ही नहीं लड़के उनकी धीमी गेंदबाजी के लिए चिढ़ाते भी थे। 

यही बात झूलन के दिल को लग गई और उन्होंने तेज गेंदबाज बनने की ठान ली। इसके बाद उन्होंने 15 साल की उम्र में तेज गेंदबाज बनने के लिए क्रिकेट एकडमी ज्वाइन किया, जो 80 किमी दूर था। एकेडमी के लिए वे सुबह 4.30 बजे उठ जाती थी और 5 बजे चाकदाह से सियालदाह के लिए ट्रेन पकड़ती थी और वहां से बस से विवेकानंद पार्क पहुंचती थी। 

उनकी प्रैक्टिस सुबह 7.30 से शुरू होती थी जो 9.30 बजे समाप्त होती थी। प्रैक्टिस समाप्त होने के बाद वे उसी रास्ते से वापस लौटती थी और फिर स्कूल जाती थी। झूलन के मुताबिक 1997 महिला विश्व कप का फाइनल मैच टीवी पर देखने के बाद उनके मन में पहली बार भारत के लिए खेलने की इच्छा जागी थी। 

jhulan goswami

अवार्डः 

*2007 में झूलन गोस्वामी को आईसीसी विमेंस क्रिकेटर ऑफ़ द ईयर अवार्ड से नवाजा गया। 

*2010 में झूलन को अर्जुन अवार्ड से सम्मानित किया गया

*2012 में भारत सरकार ने इन्हें पद्मश्री से भी सम्मानित किया है। 

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