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फ्लू की माया

Published: Mar 03, 2015 10:39:00 pm

इसके पीछे का
अर्थशास्त्र जानेंगे तो पता चलेगा कि सिर्फ स्वाइन फ्लू से जनता के अरबों रूपए किसी
और

कसम से। साठ साल की जिन्दगी में हमने कभी जुकाम-खांसी को तवज्जो ही नहीं दी। उस वक्त भी नहीं जब हमारी नाक बहती रहती थी और उस पानी को सोखने के लिए रूमाल की जगह हमें पूरा गमछा इस्तेमाल करना पड़ता था। जब किसी को जुकाम हो जाता तो उसे हंसते हुए यही मशविरा देते- भाई।

जुकाम एक ऎसी बीमारी है जिसमें दवा ली जाए तो वह सिर्फ “एक हफ्ते” में ठीक हो जाती है और दवा न ली जाए तो ठीक होने के लिए पूरे सात दिन लेती है। तेज जुकाम होने पर ज्यादा से ज्यादा तुलसी, काली मिर्च का काढ़ा पी लिया या फिर दो चम्मच सोमरस गरम पानी में घोल कर गिटक लिया लेकिन कसम से।

अब ये हाल हो गया कि एक छींक आते ही लगता है जैसे इमरजेंसी का मैसेज आ गया। यह हाल हमारा ही नहीं पूरे समाज का हो रहा है। उस दिन एक सभा में भाष्ाण देने गए और माइक पर खड़े होते ही दो बार जोर से छींक लिए। दो मिनट बाद ही गजब हो गया। हमने सुनने आए सारे श्रोता एक-एक करके गायब हो गए। जब आयोजक भी हमें छोड़कर बाहर जाने लगा, तब हमने उसका हाथ पकड़ते हुए कहा- महोदय।

क्या आज हम इतना उबाऊ भाष्ाण दे रहे हैं जो विद्वान श्रोता उठ-उठ कर जा रहे हैं। वे शर्माशर्मी में बोले- नहीं ऎसी तो कोई बात नहीं। बोल तो आप ठीक ही रहे हैं। हमने पूछा- हमारा बहिष्कार तो ऎसे किया जा रहा है जैसे हमने सजातीय गोत्र में विवाह कर लिया हो। वे बोले- नहीं जी। दरअसल लोग आपकी छींक से घबरा गए। उन्होंने सोचा कि कहीं आपको “स्वाइन फ्लू” न हो।

इतना सुनते ही हम ठहाका मार कर हंसे और हंसते ही जोर की खांसी आ गई। अब तो आयोजक महोदय ने हाथ छुड़ाया और रूमाल नाक पर लगा कर ऎसे भागे जैसे हम हड़के हुए पागल कुत्ते हों जिसके काट लेने से “हाइड्रोफोबिया” नामक बीमारी हो जाती हो। अब साहब चढ़ती-उतरती सर्दी में जुकाम- खांसी होना स्वाभाविक है। प्रतिदिन कैंसर, टीबी, हार्ट अटैक, लीवर सिरोसिस जैसी बीमारियों से हजारों लोग मरते हैं लेकिन आदमी इनसे नहीं डरता पर स्वाइन फ्लू से ऎसा घबराता है जैसे साक्षात् यमराज का “एसएमएस” आ गया हो।

नेता, अभिनेता, हीरोइन के स्वाइन फ्लू होने की खबरें ऎसे प्रसारित की जाती हैं मानो कहर टूट पड़ा हो। अब हम ज्यादा तो नहीं जानते पर जरा इसके पीछे का अर्थशास्त्र आप जानेंगे तो पता चलेगा कि सिर्फ स्वाइन फ्लू से इस देश की जनता के अरबों रूपए किसी और की जेब में खिसक गए।

राजधानी के अस्पतालों में जांच के नाम पर ही हजारों रूपए वसूले गए। टीवी पर स्वाइन फ्लू की खबरें ऎसे चलाई गई जैसे यह बीमारी दो सौ साल पहले “प्लेग” की मानिंद फैल रही हो। अगर आप थोड़े से भी जागरूक हैं तो भैया किसी सरकारी अस्पताल से तीन दिन की मुफ्त दवा लेकर भी स्वाइन फ्लू से बच सकते हैं। पर आपको बचने कौन देगा? जब तक दस-पांच मरेंगे नहीं तब तक मुआं “टेमी फ्लू” खरीदेगा कौन? खेल तो खरीदने-बेचने से होने वाले मोटे मुनाफे का है। – राही


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