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मुफ्त का माल

कभी-कभी लगता है कि इस देश के नेता बातें तो सड़क छाप आदमी की करते हैं
लेकिन “काम” अमीरों का करते

Feb 27, 2015 / 06:21 pm

मुकेश शर्मा

हमें पहली बार पता चला कि बिजली और पानी का सम्बन्ध राजनीति से भी है। अब तक तो हम सोचते थे कि इन दोनों का रिश्ता सिर्फ बादलों से है। जब बिजली चमकती है तो पानी बरसता है। लेकिन अपने दिल्ली वाले “केजी 67” ने बिजली-पानी के दम पर न केवल अमित भाई की टीम को चित कर दिया, साथ ही अपने चुनावी वादों को अमली जामा पहनाते हुए बिजली की दर आधी और पानी फोकट में कर दिया। कसम से मजा आ गया।

हालांकि हम दिल्ली में नहीं रहते लेकिन वहां हमारे जैसे लोग तो रहते ही हैं जो हर महीने पांच-सात सौ की राहत पा लें तो बड़े खुश हो जाते हैं क्योंकि हमारी दादी कहा करती थी कि बचत में बरकत है और बूंद-बूंद से घड़ा भर जाता है।

अपने केजरीवाल का यह कदम हमें देश की राजनीति पर भारी पड़ता नजर आ रहा है। चलिए थोड़ी देर के लिए सोचिए कि आप का भाई दिल्ली में रहता है और आप जयपुर या भोपाल में। अब ऎसा भी क्या कि आपका भाई तो सस्ती बिजली प्रयोग में लाए और आप बिजली के महंगे दाम चुका कर अपना घरेलू बजट और दिल दोनों जलाएं।

अभी पिछले दिनों रिश्तेदार बेटे के ब्याह में हरियाणा गए। वहां से चलने लगे तो वह बोला- आप अपनी गाड़ी का टैंक फुल करा लेना। यहां पेट्रोल सस्ता है। आधा किलोमीटर पहले तेल सस्ता और आधे किलोमीटर बाद महंगा। ऎसा लगा जैसे हम एक देश में नहीं रहते बल्कि भांति-भांति नामधारी (प्र)देशों में रहते हैं। यह विसंगति क्यों? यह भी क्या तमाशा है।

दिल्ली में अब बिजली सस्ती, पानी फ्री, पेट्रोल सस्ता तो सारी गाज हम जयपुर, भोपाल व छग वालों पर ही क्यों पड़ रही है? क्या केजरीवाल के पास कोई जादू का चिराग है। और अगर है तो फिर हम काहे ऎसे लोगों को ही वोट ना दें जो हमें सस्ती बिजली और मुफ्त पानी मुहैया करा सकें। आप बाजार में चने-मसूर की दाल खरीदने जाते हैं तो उसी दुकान से ही तो खरीदते हैं जहां दो पैसे सस्ती मिल रही हो।

इसलिए अरे राजनीति करने वालो। अब जरा सावधान हो जाओ। केजरीवाल ने रास्ता दिखा दिया है। हो सकता है कि अब राजस्थान जैसे शांत प्रदेश की जनता भी अपनी सरकार से पूछने लग जाए कि जब दिल्ली में “आप” बिजली के दाम आधे कर रही है तो फिर आप (भाजपा) काहे को बिजली की दरें बढ़ाने पर आमादा हो रही है।



कभी-कभी तो लगता है कि इस लोकतांत्रिक देश के नेता बातें सड़क छाप आदमी की करते हैं लेकिन “काम” अमीरों का करते हैं। नेताओं को यह नहीं भूलना चाहिए कि “नई पीढ़ी” बड़ी सयानी हो गई है। वह हमारी तरह पांच साल लंबा इंतजार नहीं कर सकती। उस जमाने में भी राममनोहर लोहिया ने कहा था कि जिन्दा कौमें पांच साल इंतजार नहीं करती। इसलिए बिजली-पानी के दामों में इजाफा करने वालो एक बार और सोच लेना।

कहीं ऎसा न हो कि जल्दी ही बढ़ाया हुआ कदम वापस लेना पड़े। बहरहाल यह तो मानना पड़ेगा कि “आप” की राजनीति इस देश में अंधेरे कमरे के रोशनदान की मानिंद दिखाई देने लगी है। – राही


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