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बेचारा मध्यवर्ग

आपने कौन सा इन्हें वोट दिया था। ऎरे-गैरे भी जीत गए पर ये हार गए। हराया
मध्यवर्ग ने। अब खुन्नस

Mar 02, 2015 / 06:50 pm

शंकर शर्मा

लीजिए देश के खजाना मंत्री ने साफ-साफ कह दिया कि मध्यवर्ग को अपना ध्यान खुद रखना होगा। एकदम सही कहा जनाब। मध्यवर्ग कोई दूध पीता बच्चा थोड़ी है जो बेचारी सरकार उसका ख्याल रखती रहे। सरकार के पास ऑलरेडी बहुत सारे जरूरी काम हैं। उन्हें अगले दस साल में देश में “रामराज्य” लाना है। गरीबी मिटानी है।

भारत को दुनिया का सिरमौर बनाना है। इस मध्य वर्ग की भी आदत बड़ी खराब है। लाडले जिद्दी बच्चे की तरह बात-बात पर ठुनकने लगता है। अब देखिए जेटली ने इनकमटैक्स में कोई रियायत नहीं दी “स्लैब” में भी उलट-फेर नहीं किया तो भूंभाटे मार कर रोने लगा। वैसे भाजपा ने पहले कहा था कि हमारी सरकार बनतेे ही अच्छे दिन आ जाएंगे। आ तो गएा।

पेट्रोल दस रूपए सस्ता कर दिया। अब धीरे-धीरे चार-पांच रूपए फिर चढ़ रहा है तो क्या? एक बार तो अच्छे दिन ला ही दिए ना! ये मध्य वर्ग ही था जिसने हुलस-हुलस कर मोदी को वोट दिया था। मोदी ने भी मध्यवर्ग को वादों का ऎसा लॉलीपॉप चटाया कि वह मस्त हो गया। चुनावों में कहा था कि पांच लाख तक कमाई पर टैक्स नहीं लगने देंगे। ये सब चुनावों की बातें थीं। जैसे पन्द्रह-पन्द्रह लाख खातों में जमा कराने की बात जुमला निकली वैसे ही इसे भी जुमला समझो।

मध्यवर्ग में “सेंस ऑफ ह्यूमर” रत्ती भर भी नहीं है। अरे भई सच और जुमलों में फर्क तो समझो। कब तक बच्चे बने रहोगे। कुछ तो मैच्योर हो जाओ। अगले साल तक सातवें वेतन आयोग की रिपोर्ट आनी है वह भी देना पड़ेगा।

वह रूपया हमारी जेब में ही तो आना है। थोड़ी थावस रखो जी। और भगवान के लिए ऎसा मत करना कि एक जनवरी आते ही नए वेतनमानों के लिए “हाय-हाय” करने लगो। दे देंगे। सोलह की जगह बीस-बाईस में मिल जाएगा। देने से मना थोड़ी कर रहे हैं। स्मार्ट गृहिणियां रो रही हैं- हायो रब्बा। अब होटल में खाना कैसे खाएंगे। ब्यूटी पार्लर कैसे जाएंगे।

सिनेमा देखने कैसे जाएंगे। पति सोच रहा है कि सिगरेट कैसे पिएंगे। सब महंगे हो गए हैं। अजी ऎसा नहीं है देवी जी। सस्ते भी हुए हैं- जूते। आपके साब को जूतों का बड़ा शौक है। हर महीने नया खरीदना, खूब पहनना। अजी आपके “वो” नए जूते पहन कर रेस्तरां जाने में “ना-ना” करें तो पहन कर घर की छत में और आस-पड़ोस में ही टहल लें। घूमेंगे उतनी देर तो कम से कम अच्छे दिनों का अहसास होगा। और जेटली नाराज क्यों न हों।

आपने कौन सा इन्हें वोट दिया था। ऎरे-गैरे नत्थू खैरे भी जीत गए पर ये हार गए। हराया किसने- मध्यवर्ग ने। अब खुन्नस तो निकालेंगे ही। यह तो भला हो मोदी का जो इतना भारी भरकम मंत्रालय दे दिया। दूसरी पार्टी में हार जाते तो घर बैठे मक्खियां उड़ा रहे होते।

शाबास जेटली। आप तो मजे से “कॉरपोरेट” की खुशियों का ध्यान रखो जी। क्यों इन “बाबुओं” के चक्कर में पड़ते हो। अजी पार्टी को फंड तो पूंजीपतियों से ही मिलेगा। मध्यवर्ग का क्या? यह तो अपनी घर ग्रहस्थी और बच्चों से ज्यादा सोचते ही नहीं। रोने दो कुछ दिन और।– राही

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