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तेरा क्या होगा ?

Published: May 27, 2015 10:57:00 pm

बकौल चाणक्य व्यक्ति का हित परिवार के आगे, परिवार का हित समाज के आगे और समाज का हित राष्ट्र हित के आगे गौण है

Agitators

Agitators

आज के जमाने में सबसे ज्यादा खराब दशा उस आदमी की है जो कानून से चलना चाहता है। जो शांति से जीनेे की सोचता है। जो बेवजह किसी से पंगा नहीं लेता और ईमानदारी के सहारे जीना चाहता है। छह-सात दिन हो गए। बेचारा आम आदमी बेहाल फंसा पड़ा है। आंदोलनकारी बीच पटरी पर बैठे हैं और सरकार ऎसे कुर्सी पर निढाल पड़ी है जैसे उसे सांप सूघ गया हो। आंदोलनकारियों ने पटरी की फिश प्लेटें निकाल कर पटक दी और मजे से फोटो सेशन करवा रहे हैं और सरकार ने ऎसे ढाई हजार लोगों के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया है जिन्हें कोई जानता ही नहीं। वाह री हुकूमत। लगता है उसका इकबाल ही नहीं रहा।

आंदोलनकारी जब सभाएं कर रहे थे तो क्या खुफिया पुलिस को नहीं सूझा कि अब ये क्या करेंगे? ये पटरियां एक बार नहीं दो बार रोकी जा चुकी है। सरकार को लग रहा होगा कि आंदोलनकारी बैठकें करेंगे, अपनी मांगें दोहराएंगे और घर जाकर सो जाएंगे सो वे भी अपने दड़बे में पड़े रहे। अब सरकार कहेगी कि लोकतंत्र में सभी को अपनी-अपनी तरह से आंदोलन का अधिकार है। चलो लेखक और कलाकार भी एक दिन इंजन के सामने खड़े हो जाएं और कहें कि जब तक सभी अकादमियों के अध्यक्ष नहीं बन जाते, हम भी रेल रोकेंगे। लेकिन होगा क्या? दो सिपाही हमारे पिछवाड़े एक आध डंडे जमाएंगे और टंगा टोली करके एक तरफ पटक देंगे।

ऎसा क्यों साब, हमारे लोकतांत्रिक अधिकार नहीं हैं क्या? जब हम अकेले धरना- प्रदर्शन करें तो सारे अधिकारों को भूल जाओ लेकिन जब जाति-बिरादरी को भेड़ा करके आठ-दस दिन तक रेलें रोक कर सारे तंत्र को अस्त-व्यस्त कर दो तो लोकतांत्रिक अधिकार हो गए। भुगत कौन रहा है आम आदमी। किसी नेता को दिल्ली से मुम्बई जाना है तो हवाई जहाज से चला जाएगा। रेल मार्ग बदल देगा लेकिन आम आदमी फंसा हुआ है तो पड़ा रहे।

उसकी चिन्ता सरकार क्यों करे? समझ नहीं आता कि कानून व्यवस्था की दुहाई देने वाली सरकार इतनी पंगु क्यों नजर आ रही है? क्या वोट के लोभ ने उसकी आंखों पर भी पट्टी बांध दी? ऎसे तो कर लिया राज। राज चलाने के लिए कलेजा चाहिए। पिछली सरकार ने भी आंदोलन के वक्त हाथ खड़े कर दिए और जनता ने उन्हें अच्छी तरह सलटा दिया। चाणक्य ने उस राजा को अंधा बताया है जो भविष्य की नहीं सोचता। वे कहते हैं कि एक व्यक्ति का हित परिवार के आगे, एक परिवार का हित समाज के आगे, एक समाज का हित राष्ट्र के हित के आगे गौण है।

अगर जात-पांत वाले ये आंदोलन यूं ही अपना रंग दिखाते रहे तो फिर दूसरी जाति के लोग कौन से कम पड़ते हैं। अभी तो एक ही जाति आंदोलन पर है, आने वाले दिनों में सवर्ण भी आरक्षण के लिए छटपटा रहे हैं। अगर वे भी आने-अपने घरों से निकल पड़े तो फिर तेरा क्या होगा कालिया! यही दो टूक सवाल तो गब्बर ने भी पूछा था।
राही


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