अपनी यूपी की राजनीति को भाई-भतीजावाद, परिवारवाद,
जातिवाद, पुत्र-बहूवाद, जूत्तम पैजारवाद, लटवाद, सम्प्रदायवाद इत्यादि-इत्यादि
प्रकार के वादों से विभूषिा करने वाले मनीषी बहुत निराश और हताश लगते हैं। राजनीतिक
रूप से कठोर लेकिन नाम से अति कोमल लोहिया के परम शिष्य भाई मुलायम सिंह यादव उर्फ
नेताजी ने अपने कार्यकर्ताओं को लताड़ते और गरियाते हुए सही फर्माया कि उन्होंने
अपने आलस्य से दिल्ली की गद्दी प्राप्त करने के उनके सपनों का सत्यानाश कर दिया।
कसम से हम मुलायम के ब्लाइंड फैन हैं।
भारतीय राजनीति को उन्होंने और मराठा भाई शरद
पवार ने इतने सारे आयाम दिए हैं कि इनके सामने गांधी-नेहरू परिवार भी फीका-फीका सा
दिखाई देता है। आज मुलायम के पास क्या नहीं है? सत्ता है। धन है। भाई हैं। भतीजे
हैं। बेटा मुख्यमंत्री है। बहुएं सांसद हैं। समधन-समधी पूर्व मुख्यमंत्री हैं।
गायें हैं, भैंसें हैं। लट हैं। मरने-मारने पर उतारू रहने वाले कार्यकर्ता हैं। आजम
खान हैं। जया बच्चन हैं। बस दो ही चीजें नहीं हैं एक तो मसखरी में अव्वल अमर सिंह
और दूसरी दिल्ली की कुर्सी। जिस पर बैठने की चाह हर उस नेता में होती है जो राजनीति
की काली कोठरी में घुसता है।
बेचारे मुलायम करें तो करें क्या? अगर यूपी में
चालीस-पचास सीटें भी जीत लेते तो उन्हें पूरी उम्मीद थी कि जोड़-तोड़ से सरकार बन
ही जाती। क्यों नहीं बनती सोनिया, जया, ममता, समता, वामपंथी, नरमपंथी, पोंगापंथी,
पवार, गंवार सब उनका आंख मूंदकर समर्थन कर देते।
भारतीय राजनीति में यूं नए युग की
शुरूआत होती। लेकिन कचूमर निकल गया सपनों का। अब बैठे हैं मुंह लटकाए। कुछ काम भी
नहीं। बीच-बीच में सूबे के खानदानी मुख्यमंत्री और उसके फिसड्डी मंत्रियों को हड़का
कर वक्त काट लेते हैं। बेटा कौन सी मटर की फली फोड़ रहा है। लेकिन इस डांट-फटकार से
जनता में यह मैसेज जाता है कि देखो नेताजी कितने खरे हैं। जनहित के लिए अपने लाड़ले
को लतियाकर नहीं तो बतियाकर ही समझा लेते हैं।
सत्यानाश हो उन नमक हराम वोटरों का
जो ऎन वक्त पर दगा दे गए और गुजराती भाई नरेन्द्र मोदी को तीर्थनगरी काशी से जिता
दिया। ऎसी विशाल जीत पर तो खुद मोदी भी हैरान रह गए होंगे। सपनों का सत्यानाश कैसे
होता है, यह बात मुलायम भाई से ज्यादा कौन जानता है। वैसे आजकल नेताजी सपने टूट
जाने के बाद अपने गुरू राममनोहर लोहिया के सपनों की ऎसी कम तैसी करने पर तुले हुए
हैं।
राही