व्यंग्य राही की कलम से क्या आप जानते हैं कि इस दुनिया का सबसे बड़ा ‘बेचारा’ और सबसे बड़ा ‘ताकतवर’ इंसान कौन है? जी, ये दो लोग नहीं बल्कि ‘एक’ ही है। ये एक ऐसा शख्स है जिसे आप जब चाहे गरिया सकते हैं, पीट सकते हैं। आप उसके हाथ-पैर तो तोड़ सकते हैं पर उसकी हिम्मत कभी नहीं तोड़ सकते। अब हम ज्यादा पहेलियां नहीं बुझाते। वह इंसान है- एक कलाकार। कलाकारों में साहित्यकार, कवि, लेखक, नाटककार, चित्रकार सब शामिल हैं।
साधारण-सा दिखने वाला कलाकार इतना शक्तिशाली क्यों होता है? स बेचारे के पास बंदूक-तमंचे, चाकू-छुरे यहां तक कि लाठी तक नहीं होती।उसके पास एक अद्भुत शक्ति होती है जिसे हम ‘विचार’ कहते हैं। बस ‘विचारों’ की ताकत से ही वह अच्छे-अच्छे तानाशाहों की भट्टी बुझा देता है।
कलम और कूची से ऐसे-ऐसे कारनामों को अंजाम तक पहुंचा देता है जिसे देख सुन कर बलशाली लोग दांतों तले अंगुलियां दबा लेते हैं। अकबर इलाहाबादी नाम के एक मस्ताने शायर ने पिछली शताब्दी में एक अद्भुत शेर कहा था- खींचों न कमानों को न हथियार निकालो, जब तोप मुकाबिल हो तो अखबार निकालो।
जनाब ये ‘अखबार’ चीज क्या है। क्षमा करें हम उन पत्रों की बात नहीं कर रहे जो कि सरकारी विज्ञापनों के लिए छापे जाते हैं जिनके होने या न होने का कोई मतलब नहीं। एक अखबार चंद छपे पन्नों का पुलिन्दा नहीं होता बल्कि उसके पीछे एक ‘विचार’ होता है। यह बात दूसरी है कि अब अधिकतर अखबारों ने ‘विचार’ से तौबा कर ली है। यही ‘विचार’ एक लेखक-कलाकार को शक्तिशाली बनाते हैं। अब देखिए, संस्कृति रक्षा का ठेका छुड़ाने वाले कुछ नैतिकता के ठेकेदारों को एक अद्भुत कृति में अश्लीलता नजर आई। क्योंकि उनका ‘विचारों’ से दूर-दूर तक कोई ताल्लुक ही नहीं है। हे प्रभु! इस समाज को ऐसे कूड़मगजों से बचा।