scriptअनमोल रत्न को “भारत रत्न” | Atal Bihari Vajpayee to get Bharat Ratna today | Patrika News

अनमोल रत्न को “भारत रत्न”

Published: Mar 26, 2015 10:37:00 pm

अटल बिहारी वाजपेयी। एक ऎसा नाम और
व्यक्तित्व जिसे चंद शब्दों या पन्नों में नहीं समेटा जा सकता

अटल बिहारी वाजपेयी। एक ऎसा नाम और व्यक्तित्व जिसे चंद शब्दों या पन्नों में नहीं समेटा जा सकता। जिंदगी के हर मोड़ और अवस्था में जो किया बेजोड़ किया। न सिर्फ कीर्तिमान बनाए बल्कि नए मूल्य भी स्थापित किए। पढ़ाई के दौरान होनहार छात्र रहे। युवावय में राजनीति में आए और संसद पहुंचे तो उनके प्रधानमंत्री बनने की भविष्यवाणी हो गई। वाकपटुता और भाषण कला की मिसाल बने। ऎसे सह्वदय कवि, जब भी मंच पर होते तो अपनी भावनात्मक कविताओं से लोगों को अभिभूत कर देते। यानी ऎसा बहुआयामी व्यक्तित्व, जिसने दुनिया में अपने नाम को साकार किया। ऎसे रत्न को भारत रत्न मिलने पर यह स्पॉटलाइट…

पढ़ाई में थे अव्वल
अटल बिहारी वाजपेयी का जन्म 25 दिसंबर 1924 को ग्वालियर में हुआ था। इन्होंने विक्टोरिया कॉलेज (अब लक्ष्मी बाई कॉलेज) से स्नातक की उपाधि प्राप्त की। इसके बाद डीएवी कॉलेज से राजनीति विज्ञान में स्नात्कोत्तर प्रथम स्थान से उतीर्ण किया।

कवि के रूप में अटल
राजनीतिज्ञ होने के साथ-साथ वे एक कवि भी थे। “मेरी इक्यावन कविताएं” उनका प्रसिद्ध काव्यसंग्रह है। वाजपेयी जी को काव्य रचनाशीलता विरासत में मिली थी, उनके पिता कृष्ण बिहारी वाजपेयी ग्वालियर रियासत के जाने-माने कवि थे।

राजनीतिक सफर
1951 में गठित भारतीय जन संघ के संस्थापक सदस्यों में शामिल। 1957 में वे लोकसभा व 1962 में राज्यसभा सांसद चुने गऎ। 1996 में पहली बार (13 दिन) , 1998 में दूसरी बार (13 महीने) और 1999 में तीसरी बार (पूरे 5 सालों के लिए) प्रधानमंत्री चुने गए।

मतभेदों को सहमति में बदलने में माहिर
मुझे अटली की सबसे बड़ी विशेषता यह लगी कि सिर भले ही आसमां छूता हो, पैर हमेशा जमीन पर ही रहने चाहिए। उनकी ही कविता का एक अंश मुझे याद आता है, जो उन पर भी लागू होता है, “ये हमसे पूछोगे कि कौन बड़ा होता है तो मैं कहूंगा कि वही बड़ा होता है, जिसका मन बड़ा होता है।” मन का बड़प्पन सहमति की राजनीति और संवाद के लिए बहुत आवश्यक होता है, जो उनमें विद्यमान है। साख ही उनकी सबसे बड़ी पूंजी थी। जिस तरह से वे सबके साथ मानवता का व्यवहार करते थे, वह सब पार्टी के कार्यकर्ताओं को भी अनुभव होता रहा। भारत की राजनीति में मतभेदों को विश्वास के आधार पर संवाद और सहमति में बदलने की कला अटल जी में सबसे ज्यादा है। जो आज तो और ज्यादा जरूरी सी हो गई है, ऎसा मुझे लगता है।


अटल जी कवि ह्वदय तो हैं ही, उनकी भावनात्मक अभिव्यक्ति दूसरे व्यक्ति में एक भरोसा उपजा देती है। यह मैंने बहुत बार अनुभव किया। व्यक्ति से बड़ा दल और दल से बड़ा देश, यह बात उनके जीवन में मुखरित होती रही और अभी भी है। उनके मानवीय पहलू का एक दृष्टांत मुझे याद है। 1984 के दंगों के समय 6-रायसीना रोड के बाहर एक टैक्सी स्टैंड था। भीड़ उसको लक्ष्य बनाकर सिक्ख टैक्सी ड्राइवरों पर हमला करने वाली थी। पर अटलजी उन टैक्सी ड्राइवरों के बीच जाकर खड़े हो गए। एक राजनेता के लिए वोट की दृष्टि से यह नुकसानदेह था पर उन्होंने मानवीय मूल्यों को हमेशा प्राथमिक समझा।

यह सार्वकालिक मूल्य है और अटल जी इसे जीते हैं। विचारधारा से अलग-अलग होने के बावजूद क्षेत्रीय दलों के बीच अटल जी ने भरोसा जगाया। सहमित की राजनीति को नया आयाम दिया। वरिष्ठतम होने के बावजूद अपनी ही बातों का आग्रह उनमें नहीं रहा। मिलीजुली सरकार चलाने का शास्त्रज्ञान अटल जी में भरपूर दिखा। सहयोगी दल, जो कभी सत्ता में रहे हों और फिर छोड़कर किसी अन्य दल के साथ हाथ मिला लेते तो अटल जी ने इसे कभी प्रतिष्ठा का प्रश्न नहीं बनाया। उनका मानना रहा कि आज वो दूर गए हैं तो कोई बात नहीं, कल फिर साथ आ जाएंगे। ये आत्मविश्वास उनमें हमेशा रहा।


जब अमरीका ने इराक में हमारी सेना भेजने के लिए बहुत दबाव बनाया तो अटली सहमत नहीं हुए। वहीं “आउट ऑफ द वे” जाकर उन्होंने पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ से बात शुरू की। उनका विश्वास था कि पड़ोसियों के साथ सम्बंध अच्छे रहें तो दूर के रिश्ते बाद में भी ठीक हो जाएंगे। अटल जी ने अपने राजनीतिक जीवन में अनेक मूल्य स्थापित किए। एक देशभक्त संवदेनशील राजनेता के नाते खास पहचान उन्होंने बनाई, जो अमिट रहेगी। यह उन्हें बाकी राजनेताओं से अलग करती है।


उनकी आत्मीयता को भी मैंने करीब से देखा। यह अक्टूबर 1988 की बात है। जब मैं भारतीय जनता पार्टी में आया तो अटली जी ने अपने घर भोजन कराया और उन्होंने खुद अपने हाथों से परोसा।


वे भले ही कई विषयों पर मतभेद रखते थे पर उसे बहुत ही नरमी के साथ रखते थे। मसलन, रामजन्म भूमि आदोलन में सहभागिता की बात पर अटल जी उस कदर सहमत नहीं थे लेकिन उन्होंने इसे बहुत ही मुलायमियत के साथ व्यक्त किया। वही बात मैंने गुजरात दंगों के दौरान देखी। राजधर्म निभाने की बात उन्होंने कही जरूर थी। पर उसे लेकर कार्यसमिति में जो सामूहिक निर्णय बना उसे स्वीकार भी किया। आमसहमति तत्कालीन मुख्यमंत्री के इस्तीफा न देने पर थी, जिसे अटल जी ने मान लिया। वेे चाहते तो इस बात पर आग्रह कर सकते थे। पर ऎसे समय उनका लोकतांत्रिक दृष्टिकोण बखूबी झलकता है।

के एन गोविंदाचार्य, चिंतक


बहुत अच्छे श्रोता भी हैं…
मेरा सौभाग्य रहा कि मुझे अटलजी जैसे महान व्यक्तित्व एवं इंसान के साथ निकटता से काम करने का मौका मिला। सब लोगों की तरह मैं भी उनका प्रशंसक रहा। मैंने उनके साथ सार्वजनिक एवं निजी जीवन के बहुत-से व्यक्तिगत क्षण बिताए हैं। मुझ पर विश्वास करते हुए ही उन्होंने मुझे प्रधानमंत्री कार्यालय में अपने साथ मंत्री के रूप में काम करने का अवसर दिया।

समय नहीं मिला विवाह का
जब भारत के राष्ट्रपति डॉ. शंकरदयाल शर्मा ने उनको सरकार बनाने का न्यौता दिया था, वह दिन उनके लिए उत्साहित व अविस्मरणीय था। राष्ट्रपति भवन से जब वे घर आए, तब मैं उनके घर पर ही था और जिस दिन उनकी सरकार एक वोट से लोक सभा में गिर गई थी, वे उस दिन बहुत भावुक हो गए थे, तब भी मैं संसद में स्थित उनके कक्ष में था। जब मैंने उनसे पूछा कि जीवन में सबसे ज्यादा उनको किस चीज की कमी खली, तो उन्होंने बेबाक जवाब दिया “फक्कड़पन”की।

अटलजी लोक संगीत, गजल, भजन के बहुत शौकीन है। वे उपन्यास, कहानियां, कविताएं भी पढ़ना पसंद करते हैं। सूर्यकांत त्रिपाठी निराला, उर्दू में फैज अहमद फैज उनके प्रिय कवि थे। एक बार मेरे घर पर जब जयललिता और अटलजी का भोजन था, तब मैंने जयललिता से पूछा कि आपको खाना बनाना आता है, तो उन्होंने मना किया पर अटलजी ने कहा कि उन्हें खाना बनाने और खाने में आनंद आता है।

चांदनी चौक की बहुत-सी चीजें परांठे वाली गली के परांठे, जलेबी, मालपुआ उन्हें पसंद हैं। इसके अलावा खिचड़ी, पूड़ी-कचौड़ी भी उनके प्रिय व्यंजन हैं। यह पूछने पर कि आपने विवाह क्यों नहीं किया, उन्होंने हंसते हुए जवाब दिया, “समय नहीं मिला।” उनके लिए वह खुशी का दिन था, जब उन्होंने संयुक्त राष्ट्र की महासभा में हिन्दी में भाषण दिया।

लता की गायकी पसंद
बहुत कम लोग जानते हैं कि वे धोती-कुर्ता, पठानी सूट, जोधपुरी सूट, चूड़ीदार शेरवानी और चूड़ीदार पाजामा के अलावा कभी-कभी पैंट-कमीज भी पहनते थे। मनाली, माउंट आबू, अल्मोड़ा उन्हें घूमने के लिए पसंद हैं। उनके पसंदीदा गानों में एस.डी. बर्मन द्वारा गाए “ओ रे माझी, “सुन मेरे बंधु रे” के साथ-साथ मुकेश और लता का “कभी-कभी मेरे दिल में ख्याल..” है और फिल्मी कलाकारों में वे संजीव कुमार, दिलीप कुमार, सुचित्रा सेन, राखी और नूतन को पसंद करते हैं। उनकी पसंदीदा फिल्में देवदास, बंदिनी, तीसरी कसम, मौसम, ममता और आंधी हैं। हॉकी और फुटबॉल देखना उन्हें पसंद है।

देश में आज ऎसे राजनीतिज्ञ देखने को बहुत कम मिलेंगे, जिनको दलगत राजनीति से ऊपर उठकर हर पार्टी के लोग इतना आदर और सम्मान देते हों। संसद में उनका भाषण सुनने के लिए लोग अपनी दिनचर्या बदल लेते थे। वे बहुत अच्छे श्रोता भी थे। दूसरे नेताओं के साथ उनको जब मैं मीटिंग में देखता था, तब वे बहुत कम बोलते थे, परन्तु सामने वाला संतुष्ट होकर जाता था।

फिर भी नहीं हुए विचलित
संसद पर जब आतंकवादी हमला हुआ, तब मैं संसद में अपने कार्यालय के समीप था, जो उनके कार्यालय से सटा हुआ था। वे तब तक संसद में आए नहीं थे। मैंने उनको हमले की जानकारी दी। उसके बाद जब मैं उनके निवास पर गया, तो मैंने देखा कि वे इस हमले की घटना से बिल्कुल भी विचलित नहीं थे और परिस्थिति का कैसे सामना किया जा सकता है, इस पर उनकी नजर थी। सचमुच में वे “भारत रत्न” हैं, जिनको आज सरकार ने जन-जन की भावनाओं का सम्मान करते हुए “भारत रत्न” से अलंकृत करने का फैसला किया है।
विजय गोयल, राज्यसभा सांसद


सबके लिए स्वीकार्य चेहरा अटल जी
भारतीय जनता पार्टी में यदि कोई बड़ा उदारवादी चेहरा है तो वह है अटल बिहारी वाजपेयी का। देश भर में यदि भाजपा की स्वीकार्यता बनी तो उसके पीछे सबसे बड़ा कारण यही उदारवादी चेहरा रहा, जिसे लोग स्नेह से अटल जी कहकर बुलाते हैं। उनकी व्यापक स्वीकार्यता का ही परिणाम है कि भाजपा आज भी अपने प्रचार में उनके चेहरे का इस्तेमाल करती है, भले ही वे सक्रिय राजनीति में ना हों।

सबके लिए स्वीकार्य
अटल बिहारी भाजपा का ऎसा चेहरा रहे हैं, जिन पर प्रतिस्पर्धी दल ही नहीं बल्कि सभी समुदायों के लोगों को भी भरोसा रहा है। वे पार्टी में ऎसे शख्स रहे, जिसने रामरथ यात्रा की घोषणा पर अपनी नाखुशी जाहिर भी की। मुंबई में कार्य के दौरान टैक्सी में सफर करते हुए जब यह समाचार आया कि लाल कृष्ण आडवाणी ने कहा है कि पार्टी की ओर से चुनाव में प्रधानमंत्री का चेहरा अटल बिहारी वाजपेयी होंगे।

ऎसे में टैक्सी चालक जो कि अल्पसंख्यक समुदाय से था, ने तपाक से कहा कि इस चेहरे में उसे और उसके समुदाय को कोई परेशानी नहीं होगी। जब भाजपा की ओर से यह स्लोगन आया कि अबकी बारी, अटल बिहारी तो करोड़ों लोग सिर्फ उनके लिए ही भाजपा से जुड़ गए। यह वाजपेयी की शख्सियत का ही नमूना था कि 1999 में भाजपा ने जोरदार सफलता अर्जित करते हुए उनके नेतृत्व में 182 सीटें हासिल की।

वाकपटुता, व्यापक नेतृत्व
भारत में जब भी किसी नेता के सारगर्भित भाषणों का जिक्र होगा, भाषण की भाषा और उसके अंदाज का जिक्र होगा तो अटल जी का नाम पहले नंबर पर ही होगा। वे कोई कविता सुनाएं या भाषण दें, तो शायद ही कोई होगा जो उसे छोड़कर जाना चाहे। उनके भाषण को लोग दूर-दूर से सुनने के लिए पहुंच जाया करते थे। साधारण जन ही नहीं, पत्रकार भी उनका कोई भाषण संसद के बाहर या भीतर छोड़ना नहीं चाहते थे। उनके भाषण, वाकपटुता और मधुर संबंधों के तो उनके विरोधी भी कायल रहे हैं।


एक बार अटल जी कहीं बाहर थे और देश की कमान लाल कृष्ण आडवाणी के हाथ में थी। उस दौरान प. बंगाल के बड़े नेता ज्योतिवसु से किसी बात पर गतिरोध हो गया। यह गतिरोध आडवाणी की भरसक कोशिशों के बाद भी समाप्त होने का नाम नहीं ले रहा था। लेकिन, जब वाजपेयी भारत वापस लौटे तो उन्होंने ज्योतिवसु से फोन पर वार्ता की और उनकी नाराजगी चंद घंटों में गायब हो गई।

भाजपा के कद्दावर नेता लालकृष्ण आडवाणी से उनकी प्रतिद्वंद्विता जगजाहिर रही है। दोनों ने ही भाजपा को खड़ा किया। दोनों के रिश्तों की मिसाल जवाहरलाल नेहरू और सरदार वल्लभ भाई पटेल के रिश्तों की तरह ही दी जाती है। वाजपेयी और आडवाणी के बीच राजनीतिक दृष्टिकोण के साथ रणनीतिक तौर पर भी मतभेद रहे लेकिन संगठन और सरकार के काम में कोई समझौता नहीं किया गया। प्रतिद्वंद्विता ने कभी सीमा का उल्लंघन नहीं किया। उन्होंने किसी मुद्दे पर नाखुशी भी जाहिर की लेकिन अडियल रवैया कभी नहीं अपनाया। उनकी इसी लोकतांत्रिक कार्यशैली के कारण पार्टी में ही नहीं पार्टी के बाहर के विरोधी उनके प्रशंसक हैं।

कुछ देर से मिला सम्मान
अटल बिहारी वाजपेयी के घर जाकर राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी उन्हें भारत रत्न से सम्मानित करेंगे। वास्तव में तो उन्हें सम्मानित नहीं किया जाएगा बल्कि उन्हें सम्मानित करके देश सम्मानित होगा। आज उनका स्वास्थ्य कुछ ऎसा है कि वे शायद समझ भी ना पाएं, उन्हें कितने बड़े अलंकरण से नवाजा जा रहा है लेकिन यही सम्मान उन्हें तब दिया जाता जबकि वे कुछ स्वस्थ्य होते, तो शायद भारत के चंद रत्नों में शुमार होने का गौरव पाकर उनके चेहरे पर जो मुस्कान आती, उसे देखकर उनके चाहने वाले और अधिक भी आल्हादित होते।

नीरजा चौधरी, वरिष्ठ पत्रकार
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