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आमदनी अठन्नी, खर्चा रूपैया

Published: Oct 02, 2015 09:15:00 pm

ऑल इंडिया ट्रासपोर्ट मोटर
कांग्रेस के आह्वान पर देशभर में सड़क के जरिए माल की आवाजाही बंद है। ट्रांसपोर्टर
टोल वसूली केंद्रों को हटाने पर अड़े हैं लेकिन सरकार

toll plazas

toll plazas

ऑल इंडिया ट्रासपोर्ट मोटर कांग्रेस के आह्वान पर देशभर में सड़क के जरिए माल की आवाजाही बंद है। ट्रांसपोर्टर टोल वसूली केंद्रों को हटाने पर अड़े हैं लेकिन सरकार व्यवस्था को ठीक करने की बात कह रही है, वह वसूली केंद्रों को हटाने को तैयार नहीं है। टोल प्लाजा पर लंबी वाहनों की कतारें से राष्ट्र को कितनी आर्थिक हानि होती है? क्या सरकार इसके मुकाबले पर्याप्त कर वसूल पाती है? डीजल पर उपकरों की वसूली की बाद भी क्या टोल वसूली उचित है? इन्ही प्रश्नों पर विशेषज्ञों के जवाब जानिए आज के स्पॉटलाइट में…

राष्ट्रहित में नहीं टोल कर की वसूली

भीम वाधवा अध्यक्ष, एआईएमटीसी
हम लंबे समय से सरकार से कहते आ रहे हैं कि टोल कर वसूली व्यवस्था को समाप्त करे लेकिन सरकार इस व्यवस्था को समाप्त नहीं करने पर अड़ी है। हम दो दिन पहले भी बात कर चुके हैं लेकिन सरकार टस से मस नहीं हुई। मजबूर होकर हमें हड़ताल करनी पड़ी। पहली अक्टूबर से 87 लाख ट्रकों का चक्का जाम चल रहा है।

व्यवस्था से है परेशानी
सरकार ने कहा है कि उसे सालाना 14 हजार 157 करोड़ रूपए टोल टैक्स के जरिये प्राप्त होते हैं। इसके अलावा हम कह रहे हैं कि इस राशि को सरकार एडवांस में ले लीजिए। हम इसे देने को तैयार हैं। दूसरी ओर भूतल परिवहन मंत्री नितिन गडकरी का बयान है कि जो ट्रक टोल टैक्स नाके पर खड़े रहते हैं, उनसे करीब 88 हजार करोड़ रूपए का सालाना नुकसान भी होता है। समझ में नहीं आ रहा कि इस 14157 करोड़ रूपए की वसूली के लिए सरकार 88 हजार करोड़ रूपए का राष्ट्रीय नुकसान करने पर क्यों तुली हुई है?

इसके अलावा सरकार यह भी कहती है कि इन टोल टैक्स वसूली के नाकों के संचालन पर उसकी लागत वसूली गई राशि की करीब 25 फीसदी बैठती है। यदि सरकार एडवांस पैसा लेती है तो उसका ब्याज भी तो सरकार को ही मिलेगा! इसी धन से सरकार इंफ्रास्ट्रक्चर भी तैयार कर सकती है लेकिन ऎसा लगता है कि सरकार किसी ना किसी घपले को छिपाने के लिए टोल प्लाजा को समाप्त नहीं करना चाहती है। समस्या टोल प्लाजा के माध्यम से वसूली जाने वाली राशि से नहीं बल्कि इस व्यवस्था को लेकर है।

एक महत्वपूर्ण बात यह भी है कि सरकार पेट्रोल और डीजल पर भारी-भरकम उपकर भी वसूल करती है। इससे उसे 50 हजार करोड़ रूपए तक की आय होती है। लेकिन, इतनी बड़ी राशि सरकार के लिए सड़कों के विकास के लिए पर्याप्त साबित होती है। हम यह उपकर भी झेलते हैं और नुकसान भी टोल प्लाजा के माध्यम से हमें ही उठाना पड़ता है। सरकार को यह समझना चाहिए कि यह नुकसान किसी ट्रांसपोर्टर का नहीं बल्कि राष्ट्र का हो रहा है। आम आदमी को यह नुकसान उठाना पड़ रहा है। आम आदमी भी सीधे तौर पर यह उपकर सरकार को देता है। सरकार को चाहिए कि वह टोल के जरिए वसूली बंद करे।

नियमों से परे हैं टोल
यह बहुत अजीब बात है कि विदेशी नकल करके हमने सड़कें बनानी शुरू कीं। सड़कों को बनाने और उनके रखरखाव के लिए हम टोल पर पैसा भी देते हैं लेकिन दुनिया के अन्य देशों में तो टोल वसूलने वाली कंपनी, उसके ठेके की अवधि, दरें आदि लिखी होती हैं। परेशानी यह है कि हमारे देश में बड़ी संख्या ऎसे टोल टैक्स वसूली केंद्र हैं जहां पूरी जानकारियां लिखी ही नहीं होतीं। कभी-कभी तो अवधि समाप्त हो चुकी होती है और फिर भी ठेकेदार टोल की वसूली करता रहता है।

यही नहीं कुछ टोल की अवधि तो सरकार ही बढ़ा देती है। कहीं पर 15 साल ठेका दिया तो उसे बढ़ाकर 20 वर्ष कर दिया। कहीं-कहीं पर तो सड़क पूरी बन भी नहीं पाती लेकिन टोल पर वसूली शुरू हो जाती है। कहीं हाल यह है कि ठेकेदार कंपनी सड़कों का रख-रखाव ठीक से नहीं करतीं। खराब सड़क वाहन का भी नुकसान करा देती है। यह हाल एक या दो राज्य में नहीं बल्कि पूरे भारत भर में है। फिर, टोल पर लंबी-लंबी कतारें, देर तक ट्रकों को खड़े रहना आर्थिक नुकसान को बढ़ा देता है। राष्ट्रहित में सोचते हुए सरकार को ऎसी परिस्थिति से छुटकारा दिलाना चाहिए।


भ्रष्टाचार का गढ़ हैं टोल प्लाजा
सुदर्शनम पk पूर्व निदेशक, सेंट्रल इंस्ट्ीटयूट ऑफ रोड ट्रांसपोर्ट
टोल प्लाजा निश्चित रूप से एक सिरदर्द बनते जा रहे हैं। इनकी बढ़ती संख्या निश्चित रूप से चिंता का विषय है। इनके कारण जगह-जगह वाहन चालकों को जाम से लेकर अनावश्यक देरी की समस्या का सामना करना पड़ता है। टोल के वहाने सरकारी कर्मियों द्वारा वाहन चालकों विशेषकर ट्रक ड्राइवरों का उत्पीड़न आम हो चुका है। ये टोल प्लाजा भ्रष्टाचार के भी बड़े अaे बन चुके हैं। इनके कारण सरकार को उतना राजस्व नहीं मिलता जितना कि उसे नुकसान उठाना पड़ता है। जनता को तो नुकसान होता ही है।

यह तो स्पष्ट है कि ट्रक ऑपरेटरों को टोल प्लाजा से यह समस्या नहीं है कि यहां पर उन्हे पैसे देना होता है। उनकी समस्या है कि उन्हें यहां पर घंटों इंतजार में समय बर्बाद करना पड़ता है। हर राज्य के स्तर पर सरकारी कर्मियों की मनमानी झेलनी होती है सो वो अलग है। इस समस्या का काफी कुछ निदान तो जीएसटी लागू होने पर हो जाएगा। दूसरी समस्या तो खुद सरकार के स्तर पर ही है। सरकार जानती है कि टोल प्लाजा फायदा का सौदा नहीं रह गए हैं, इसके बावजूद चूंकि इनसे सरकारी कर्मियों को जबर्दस्त आर्थिक लाभ होता है इसलिए वे सरकार को यही सलाह देते रहते हैं कि इनको हटाना ठीक नहीं है।

ई-टोल भी इस समस्या का समाधान नहीं हो सकता। ई-टोल के लिए बहुत एडवांस्ड तकनीक और प्रक्रिया चाहिए तथा यह ग्रामीण क्षेत्र में क्रियान्वित होना संभव नहीं है। जब तक टोल प्लाजा पर ट्रकों को रोका जाता रहेगा तब तक सरकारी कर्मियों द्वारा उत्पीड़न बंद नहीं होगा।

सड़क निर्माण के लिए अलग फंड बनें
आर एन माथुर वरिष्ठ अधिवक्ता, राजस्थान
टोल या अन्य किसी तरह से जनता की भागीदारी आवश्यक है, टोल नहीं लें तो एकमुश्त कर ले सकते हैं। यह राशि सड़क पर ही खर्च होनी चाहिए, इसके लिए सड़क निर्माण का अलग फंड बनाया जाए। यह बात सही है कि टोल के लिए रूकने पर ईंधन की बर्बादी होती है, इसलिए निर्बाध गाड़ी चलनी चाहिए। लोगों को रूकना नहीं पड़े। सवाल यह है कि ठेकेदार को कैसे मिले, उसे उचित राशि मिले और वह व्यय के हिसाब से ही हो। बीओटी मॉडल के बजाय केन्द्रीयकृत फंड से पैसा दिया जाए।

एकमुश्त वसूलें राशि
दूसरे देशों में भी टोल वसूला जाता है, लेकिन वहां बड़ी गाडियों का ज्यादा आवागमन नहीं होता है। टोल वसूली के लिए स्वचालित सिस्टम होना चाहिए। हर गाड़ी का टोल के लिए कार्ड बनना चाहिए, जिसमें स्वत: ही एन्ट्री हो जाए और राशि एकसाथ एक साल या छह महीने में वसूली जाए। जितना सड़क निर्माण के लिए जनता से राशि लेना जरूरी है, उतना ही जरूरी है कि सड़क की स्थिति ठीक रहनी चाहिए। खराब सड़क की मुख्य वजह है ओवरलोड वाहन। सड़कों के बारे में प्लान की कमी साफ दिखती है, एक बार चार लेन की सड़क बनाते हैं और फिर उसे छह लेन का करते हैं। इससे लगातार निर्माण कार्य चलता रहता है और लोगों को लगता है कि सड़क ठीक ही नहीं रहती। राजनीतिक कारणों से विवाद की वजह से भी सड़क की स्थिति बीच-बीच में खराब रहती है। सड़क के लिए स्थानीय या टुकड़ों के बजाय राष्ट्रीय स्तर पर प्लान बनना चाहिए, भूमि अवाप्ति पर भी विवाद नहीं होना चाहिए।

वाहन गति पर नियंत्रण

वाहन सड़क पर व्यवस्थित चलें, इसके लिए पेट्रोलिंग जरूरी है। वाहन सही लेन में चलें, इसके लिए पुलिस की व्यवस्था होनी चाहिए। अभी पुलिस कम है और वह सही तरीके से मॉनिटरिंग करने के बजाय खानापूर्ति कर रही है। मॉनिटरिंग के लिए कैमरे होने चाहिए। दक्षिण अफ्रीका के क्रूजर नेशनल पार्क में देखा कि लोग जंगल में भी 40-50 किमी प्रति घंटा की रफ्तार से ही गाड़ी चलाते हैं, उसकी वजह है वहां जगह-जगह झाडियों में भी कैमरे लगे हैं। वाहन की गति सही रहेगी तो दुर्घटना भी कम होंगी। असल सवाल यह है कि एक निश्चित सड़क का ठेका बीओटी पर दिया जाए, लाभ भी ठेकेदार को दिया जाता है। ऎसा नहीं होना चाहिए, पूरे देश की सड़क के लिए पैसा लिया जाए और उसमें से ही सड़क के लिए ठेकेदार को पैसा दिया जाए।

टोल से नुकसान बीस गुना ज्यादा

टीसीआई तथा आईआईएम, कोलकाता के संयुक्त अध्ययन के अनुसार केंद्र सरकार को राजमागोंü पर टोल प्लाजा से जितना कर राजस्व मिलता है, उससे बीस गुना ज्यादा इससे अर्थव्यवस्था को नुकसान होता है। अध्ययन के अनुसार वर्ष 2009-2010 में केंद्र सरकार को टोल चैक प्वाइंट पर 4364 करोड़ रूपये कर राजस्व के रूप में मिले। जबकि इससे अर्थव्यवस्था को 87000 करोड़ की क्षति हुई। इसमें 27000 करोड़ समय की बर्बादी तथा 60000 करोड़ ईधन बर्बादी के कारण नुकसान हुआ।

छोटे वाहनों से मात्र 15 % आय
यात्री वाहन तथा गैर-व्यावसायिक वाहनों से टोल राजस्व संग्रहण मात्र 15 प्रतिशत ही होता है, जबकि टोल ट्रेफिक में इनकी कुल हिस्सेदारी लगभग 50 प्रतिशत होती है। 2013 में टोल से कुल राजस्व संग्रहण 11400 करोड़ था जिसमें गैर व्यावसायिक वाहनों से मात्र 1600 करोड़ ही राजस्व आया था। केंद्रीय सड़क मंत्रालय खुद लंबे समय से छोटे वाहनों को टोल प्लाजा से बाहर रखने के बारे में विचार कर रहा है। इनसे होने वाली समस्याओं पर कोर्ट भी सरकारों को कई बार फटकार लगा चुका है।

ट्रकों का जीडीपी में 5 % योगदान
वर्ष 2009-10 के आंकड़ों के अनुसार भारतीय अर्थव्यवस्था में 4.5 से 5 प्रतिशत का योगदान करने वाला ट्रक सेक्टर कई समस्याओं से जूझ रहा है। अच्छी सड़कों की समस्या तो है ही, इनका धीमा विस्तार भी एक समस्या है। 1950 के बाद से जहां सड़कों की लंबाई मात्र 3.77 प्रतिशत प्रतिवर्ष बढ़ी है वहीं सड़क पर वाहनों की संख्या बढ़ने की दर 10.13 प्रतिशत रही है। इसमें भी राजमार्ग कुल सड़कों का मात्र 2 से 2.5 प्रतिशत ही हैं और इनसे 40 प्रतिशत आवागमन होता है।

हड़ताल का प्रभाव
अनुमान है कि वर्तमान ट्रक हड़ताल के कारण ट्रांसपोर्टरों को करीब 14 हजार करोड़ रूपए का नुकसान हो चुका है। यह नुकसान और बढ़ने वाला है। इसके अलावा ट्रांसपोर्टर कंपनियों से संबद्ध मजदूरों की नियमित आय का साधन भी थम गया है। इसके अलावा माल की आवाजाही खासतौर पर खाद्य वस्तुओं की आवाजाही पर सीधा प्रभाव पड़ रहा है। सरकार को इन सारी बातों को ध्यान में रखते हुए टोल प्लाजा को हटाने को लेकर फैसला करना चाहिए।
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