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ओपिनियन

बाबू के बोल

गौर और साक्षी
महाराज जैसे नेताओं को साफ-साफ कहें कि भैया काहे को ऎसे बोलों से पार्टी की धोती
खिंचवाने पर तुले हो

May 21, 2015 / 09:48 pm

शंकर शर्मा

babu lal gour

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नशा तो इकहरा ही खराब होता है और जिस आदमी पर दो-दो नशे सवार हो वह तो खुद को खुदा ही समझने लगता है। अब गौर से सुनिए अपने बाबूलाल गौर के बिंदास बोल। एक तो जनाब सत्ताधारी दल के पुराने खांट नेता हैं और दूसरे मध्यवर्ती प्रदेश के पुलिस महकमे के मंत्री। अपनी मर्दानगी का बखान उन्होंने वीर रस के जिन शब्दों में किया उसे सुन कर महिलाएं तो क्या पुरूष्ा भी शर्मा गए। हो सकता है कल बाबूलाल यह कह दे कि अरे भई अस्सी पार के बूढ़े-बडेरों की बातों को तो मजाक में लेना चाहिए। मेरा “वह” मतलब नहीं था जो समझा गया। मैं तो किसी कार्यक्रम में एक मजेदार किस्सा सुना कर वहां उपस्थित लोगों और लुगाइयों को हास्य योेग सिखा रहा था।

एक बात और सोलह आना सच है कि नशे में आदमी झूठ बिल्कुल नहीं बोलता। हमारे मित्र कुलश्रेष्ठ एक जोरदार बात कहते हैं- अगर कोई आदमी सामान्य हालत में आपको गाली दे तो उसे तत्काल माफ कर दो लेकिन नशे में गरियाए दे तो उसे कदापि माफ मत करो। क्योंकि नशे में वह अपने दिल की पूरी बात सही-सही उगल देता है। सत्ता के नशे में चूर नेता अक्सर सच बोल जाते हैं और उनके मुंह से चाहे बड़ाई के तौर पर ही सही उनकी जवानी के सारे कर्मकांड सामने आ जाते हैं।

नेताजी पुराने आदमी हैं। उन्होंने भरी जीवन में खूब उतार-चढ़ाव देखे होंगे। लेकिन लगातार सत्ता सुन्दरी का भोग करते-करते वे भूल जाते हैं कि यह जो पब्लिक है ना, यह सब समझती है। सब जानती है। एक पल में ही यह सिर पर पगड़ी बांध कर नेता को सातवें आसमान में बिठा देती है और दूसरे ही पल पगड़ी तो क्या, चौराहे पर धोती भी खोस कर उसकी असलियत को उजागर कर देती है। एक और बात समझ में नहीं आती। भगवा पार्टी के मंझे हुए नेता तो अपने को सदैव सुसंस्कृत, सभ्य और शालीन जाहिर करते हैं पर ये बार-बार ऎसे बोल क्यों बोल जाते हैं जो सार्वजनिक तौर पर तो क्या निजी महफिलों में भी बोलने-सुनने में शोभा नहीं देते।

बेहतर हो पार्टी सदर शाह साहब बाबूलाल गौर और साक्षी महाराज जैसे मुंहफट नेताओं को साफ-साफ ताकीद करें कि भैया काहे को अपने ऎसे पवित्र बोलों से पार्टी की धोती खिंचवाने पर तुले हो। ऎसा नहीं कि ऎसे “परम हंस” सॉरी, सफेदपोश बगुले भाजपा में ही हैं।

कांग्रेस में भी ऎसे उस्तादों की कमी नहीं। कांग्रेस के एक कद्दावर नेता तिवारी की रंगरेलियों पर तो बाकायदा श्रृंगार रस से ओत-प्रोत पूरा महाकाव्य लिखा जा सकता है। हो सकता है कि गौर साहब भविष्य में अपने भाषणों में कई और रोचक दास्तानों का जीवंत वर्णन करें जिन्हें सुनकर कुछ सिने निर्देशक उस पर वयस्क फिल्म बनाने को प्रेरित हों। हम तो माननीया से यही गुजारिश करें कि श्रीमान्! जरा प्रदेश की कानून व्यवस्था पर भी ध्यान दें जिससे आम जनता को लुच्चे, लफंगों औरबदमाशों से राहत मिले। आपके बुलंद बोलों से तो उन्हें नया करने का टॉनिक ही मिलेगा।

 राही

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