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बुरे दिन

Published: May 26, 2015 10:48:00 pm

आम जनता को सस्ती दाल-रोटी, सस्ते प्याज-टमाटर, सर पर एक अदद
छत और नौकरी चाहिए। जुमलेबाजी से पेट नहीं भरता

Narendra Modi

Narendra Modi

पूरी महाभारत पढ़ लीजिए। पूरी रामायण पढ़ डालिए। इनमें जनता का जिक्र बहुत कम है। जहां है भी तो यूं ही चलताऊ। इतिहास भी पढ़ेंगे तो उसमें राजाओं का ही जिक्र ज्यादा मिलेगा।

कौन से राजा ने किस वंश की नींव डाली। किस ने किस को हराया। कई जगह तो यह जिक्र भी मिलता है कि फलां अपने बाप को मार कर गद्दी पर बैठा। इसकी खास वजह है। जनता की परवाह किसी सत्ता को नहीं होती। वह उसके लिए सिर्फ कुर्सी पाने का जरिया मात्र है।

अलबत्ता दादी-नानी की कहानियों, लोक कथाओं और हरफनमौला लेखकों की किताबों में “लोक” का जिक्र जरूर मिल जाएगा। ऎसे में हमें बाबा तुलसीदास की एक चौपाई बड़ी सुहाती है- “कोऊ नृप होय हमें का हानि”। चाय वाले मोदी को पीएम बने एक बरस बीत गया। क्या आपको लगता है कि ये वही मोदी हैं जिन्होंने जनसेवा के लिए अपना घर त्यागा था। अगर ऎसा समझते हैं तो यह आपकी भूल है।

 क्योंकि हमने आज तक किसी जन सेवक को फिल्मी तारिकाओं की तरह दिन में दर्जन बार कपड़े बदलते नहीं देखा। राहुल गांधी कड़ी धूप में सड़कों पर घूम रहे हैं। क्यों? क्या इसलिए कि उनके दिल में जनता की सेवा करने की भावना हिलोरे ले रही है? गलत। वे इसलिए छटपटा रहे हैं कि उनके हाथ से सत्ता छिन गई। केजरीवाल जो ड्रामा कर रहे हैं उसके पीछे भी अपने आपको महत्वपूर्ण सिद्ध करने का भाव है।

क्या कारण है कि एक साल गुजरते ही नरेन्द्र भाई “अच्छे दिन आने” का आलाप छोड़ “बुरे दिन जाने” की धुन गाने लगे। मुहावरा ही बदल गया। जनता ने वोट “अच्छे दिन आएंगे” की आशा में दिया था। इसलिए नहीं कि बुरे दिन चले जाएंगे। बुरे दिनों को तो देश की आम जनता ने भगाया है। वह कांग्रेस के घोटालों, भ्रष्टाचार, कुराज से इतनी तंग आ गई कि इस बार भाजपा मोदी की जगह सुषमा स्वराज के नेतृत्व में चुनाव लड़ती तो भी कांग्रेस का जाना तय था।

नमो को हमने इसलिए चुना था कि उन्होंने हमसे अच्छे दिनों का वादा किया था। आपने कहा था कि सौ दिन में काला धन वापस लाकर हरेक के खाते में पन्द्रह लाख रूपए जमा करा दूंगा। आम जनता को सस्ती दाल-रोटी, सस्ते प्याज-टमाटर, सर पर एक अदद छत और युवकों को नौकरी चाहिए। खामखां की जुमलेबाजी से पेट नहीं भरता।

सपने दिखाने, लोगों को लड़ाने और डराने में तो कांग्रेस आपसे इक्कीस ही बैठती है। भैयाजी अब ये हवा में उड़ना छोड़ो। जरा घर में बैठ कर मतलब का काम करो।

मुम्बई-अहमदाबाद के बीच बुलेट ट्रेन चलाने से पहले दिल्ली-मुम्बई का जाम ट्रैक खुलवाओ। करोड़ों लोग फुटपाथ पर जी रहे हैं हमारे साथ चल कर जरा उनके हाल पूछो और उन्हें छत दिलाओ। फेंको कम फूको ज्यादा। वैसे एक बात बता दे। राम की जगह चौदह बरस “खड़ाऊं” रख कर भरत ने राज चलाया, तब भी जनता को कोई फर्क नहीं पड़ा। जनता “नाम” से नहीं “काम” से खुश होती है।
राही
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