माओवादी मानते हैं कि देश को अभी पूरी आजादी नहीं मिली, इसलिए वे बस्तर के उन गांवों में तिरंगा नहीं
माओवादी मानते हैं कि देश को अभी पूरी आजादी नहीं मिली, इसलिए वे बस्तर के उन गांवों में तिरंगा नहीं फहराने देते जहां उनकी धमक है। दूसरी तरफ पुलिस है जो आदिवासी कार्यकर्ता सोनी सोरी को हार्डकोर माओवादी मानती है। सोनी सोरी इस स्वतंत्रता दिवस से ठीक पहले तिरंगा यात्रा छत्तीसगढ़ के उसी बस्तर इलाके में निकालने जा रही है जहां सरकार की भी अक्सर नहीं चलती। बस्तर में कौन देशभक्त है और कौन देशद्रोही इसे लेकर दो अतिवादी विचारों में बंटी एक बहस चल रही है। अब तक माओवादी पुलिस के शहीद जवानों की प्रतिमाओं पर प्रहार करते रहे हैं और पुलिस लाल सलाम वाले स्मारकों पर हथौड़ा चलाती रही है।
सोरी अपनी यात्रा के दौरान बाबा साहेब अंबेडकर और आदिवासी क्रांतिकारी बिरसा मुंडा की प्रतिमा भी स्थापित करने जा रही है। सोरी वही आदिवासी नेत्री हैं जिन पर माओवादी होने के आरोप में पुलिस ने छह प्रकरण दर्ज किए थे और जेल में शर्मनाक यातनाएं दी थी। इस पर देश-दुनिया में काफी हल्ला मचा था। पुलिस यह साबित नहीं कर पाई कि सोरी माओवादी है या माओवादी गतिविधियों में लिप्त है। अदालत ने सोरी को पांच मामलों में बरी कर दिया है।
एक पर फैसला आना शेष है। सोरी की नौ अगस्त से निकलने वाली यात्रा को बस्तर क्रांति का नाम दिया गया है। यात्रा दंतेवाड़ा से निकलेगी लेकिन 15 अगस्त को उस गोमपाड़ में तिरंगा फहराया जाएगा जहां पिछले दिनों सुरक्षाबलों ने मडकम हिड़मे नाम की एक आदिवासी युवती को माओवादी बताकर मार दिया था। बकौल सोरी ‘यह यात्रा इसलिए भी है क्योंकि गोमपाड़ और उसके आसपास के डेढ़ सौ गांवों के ग्रामीणों से पुलिस ने राशनकार्ड और अन्य बुनियादी अधिकार छीन लिए हैं। देश- दुनिया को यह तो मालूम होना ही चाहिए कि बस्तर में पुलिस, माओवाद के खात्मे के नाम पर कैसा गंदा खेल खेल रही है।