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बाज आएं ‘बयानवीर’

नेताओं को लगता है कि वे जितने विवादित बयान देंगे, उनका कद उतना ही
बढ़ेगा। राजनीतिक  नेतृत्व भी इस प्रवृत्ति को बढ़ाने में कम दोषी नहींं

Aug 29, 2016 / 11:07 pm

शंकर शर्मा

opinion news

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बुलंदशहर गैंगरेप मामले में सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार और आजम खान को नोटिस जारी कर सही कदम उठाया है। केबिनेट मंत्री आजम ने गैंगरेप मामले को राजनीतिक षड्यंत्र करार देकर न सिर्फ पीडि़ताओं का मजाक उड़ाया बल्कि न्याय को प्रभावित करने का काम भी किया है। संवैधानिक पद पर बैठा व्यक्ति ऐसा बयान दे तो मामला गंभीर हो जाता है।

बेहतर होता कि उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव, आजम के खिलाफ कड़ा कदम उठाकर संदेश देते। वे चाहते तो आजम को पद से हटाकर ये दिखा सकते थे कि उनके लिए व्यक्ति से बड़ा कानून है। यह पहला मौका नहीं था जब आजम खान की जुबान फिसली हो। विवादित बयान देना उनकी आदत बन चुकी है।

मामला सांप्रदायिक हो अथवा अपराध का, आजम ऊल-जलूल बोलने से बाज नहीं आते। सुप्रीम कोर्ट ने आजम को जो नोटिस भेजा है, वह खानापूर्ति के मकडज़ाल में ही उलझकर नहीं रह जाए। कानून का मखौल उड़ाने की उन्हें कड़ी सजा दी जानी चाहिए। ये सजा उन लोगों के लिए कड़वी दवाई का काम कर सकती है जो वोटों के लिए सामाजिक ताना-बाना तोडऩे में लगे रहते हैं। सभी दलों में ऐसे नेताओं की भरमार है जिनका काम ही आग में घी डालना रह गया है।

ऐसे मामलों में अब तक का रिकॉर्ड अच्छा नहीं रहा है। ये अदालती नोटिसों की परवाह ही नहीं करते। उनको लगता है कि वे जितने विवादित बयान देंगे, उनका कद उतना ही बढ़ेगा। राजनीतिक दलों का नेतृत्व ऐसों को प्रोत्साहन देने के लिए कम दोषी नहीं हैं। तमाम मुद्दों पर सर्वदलीय बैठकें होती रहती हैं।

चाहें नतीजा निकले या नहीं। तो ऐसे मुद्दे पर सर्वदलीय बैठक क्यों नहीं हो सकती, जिसमें कोई रास्ता निकालने की पहल हो। राजनीति का स्तर सुधारने की जिम्मेदारी सबकी है। राजनेताओं के सुधरे बिना मजबूत लोकतंत्र की कल्पना करना बेमानी ही होगा।

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