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ओपिनियन

बजट से पहले बढ़ोतरी

लगता है मौसम की तरह सरकारों के काम करने का तरीका भी पल-पल बदलने लगा है। जब चाहा हो गया जारी

Feb 02, 2016 / 10:59 pm

मुकेश शर्मा

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लगता है मौसम की तरह सरकारों के काम करने का तरीका भी पल-पल बदलने लगा है। जब चाहा हो गया जारी फरमान। बिना सोचे-समझे कि ऐसे फरमानों का जनता पर असर क्या पड़ेगा? केन्द्र से लेकर तमाम राज्य सरकारें कभी गुड गवर्नेंस के नाम पर तो कभी जनता को राहत पहुंचाने के नाम पर नए-नए प्रयोग करने लगी हैं। ताजा उदाहरण राजस्थान का है। राज्य में बजट की तैयारियां शुरू हो चुकी हैं।


 औद्योगिक, व्यापारिक व अन्य संगठनों से सुझाव भी मांगे जा रहे हैं। बैठकों का दौर तेज हो गया है। इन सबके बीच राज्य सरकार ने सोमवार को वैट के दायरे में आने वाली वस्तुओं पर दर आधा प्रतिशत बढ़ा दी जो लोगों की समझ से बाहर है। अगले महीने राज्य का सालाना बजट आने वाला है। सरकार बजट में करों की दर घटा-बढ़ा सकती थी। बजट होता भी इसीलिए है। बात राजस्थान की ही नहीं, देश भर में पूरे साल करों की दरों में घट-बढ़ करना परिपाटी सी बनती जा रही है। ऐसा करने के पीछे राज्य सरकारों की मंशा कुछ भी रहती हो लेकिन इससे बजट सत्र का महत्व धीरे-धीरे कम होता जा रहा है।


बजट किसी भी सरकार के आय-व्यय का सालाना दर्पण होता है जिसमें सम्पूर्ण वित्तीय खाका जनता के सामने रखा जाता है ताकि जनता को आने वाले वित्तीय वर्ष का अंदाजा लग सके। उसकी अपनी पवित्रता होती है लेकिन ये कौन-सा तरीका हुआ कि आदमी सुबह उठकर अखबार पढ़े तो पता चले कि फलां वस्तुओं पर तत्काल प्रभाव से वैट बढ़ गया है।


आनन-फानन में ऐसे आदेश जारी करने के पीछे का तर्क शायद ही किसी के गले उतरे। वैट हो अथवा दूसरे अन्य कर, इनको लागू करने का एक तरीका होता है। किसी भी सरकार के लिए बजट का अपना महत्व होता है। बजट पेश होता है तो उस पर चर्चा होती है। पक्ष-विपक्ष की तरफ से अनेक सुझाव आते हैं। सुझावों के आधार पर बजट घोषणाओं में जरूरी संशोधन भी किए जाते हैं। लोकतंत्र में किसी भी सरकार के लिए यही पारदर्शी तरीका होता है। आए दिन करों में घट-बढ़ से सरकारी महकमे के अधिकारी-कर्मचारियों की मशक्कत तो बढ़ती ही है, व्यापारियों को भी परेशानियों का सामना करना पड़ता है।


सरकारें अपने कामकाज को सरल बनाने के लिए समय-समय पर नियमों में बदलाव करती हैं। सरकारों को एक बदलाव करों के निर्धारण के मुद्दे पर भी करना चाहिए। कर जितने बढ़ाने या घटाने हों, साल में एक बार आने वाले बजट में ही किए जाएं। इससे बजट का महत्व तो बरकरार रहेगा ही, सरकारी महकमों, आम जनता और व्यापारियों को होने वाली दिक्कतों का समाधान भी हो सकेगा।




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