पाकिस्तानी आतंकी ठिकानों पर भारतीय सेनाओं का हमला देर से उठाया गया दुरुस्त कदम माना जा सकता है। यह एक ऐसा कदम है जिसका देशवासियों को सालों से इंतजार था। इसलिए नहीं कि भारत पाकिस्तान को नेस्तनाबूद करना चाहता है। बल्कि इसलिए क्योंकि पानी जब सिर से ऊपर बहने लग जाए तो उसका समाधान खोजना ही समझदारी मानी जाती है।
पाकिस्तानी सेना की शह पर आतंककारियों ने कभी भारतीय संसद को लहूलुहान किया तो कभी मुंबई, दिल्ली और जयपुर समेत दूसरे शहरों को दहलाया। सीमा पार से पाक सेना की आए दिन होने वाली गोलीबारी में भारत के हजारों जवान शहीद हो चुके हैं। फिर कभी पठानकोट तो कभी उरी जैसे हमले सवा सौ करोड़ देशवासियों के जख्मों पर नमक छिड़कने का काम ही करते रहे हैं। सवाल यह है कि ऐसे में धैर्य रखा जाए भी तो कैसे? भारतीय सेना ने पाकिस्तान को उसकी भाषा में जवाब देने के साथ ही दुनिया को भी बता दिया है कि वो चुप बैठने वाला नहीं।
भारत शांतिप्रिय देश है और शांति के साथ रहना चाहता है, इसका मतलब ये नहीं कि वह कमजोर है या युद्ध से डरता है। ये सही है कि युद्ध किसी समस्या का समाधान नहीं है। युद्ध बर्बादी के सिवाय कुछ देता है तो ऐसे जख्म जो सालों नहीं भरते। लेकिन भारत ने जो कदम उठाया वह उन आतंककारियों के खिलाफ था जिनका मानवता में कोई विश्वास नहीं।
वाकई में पाकिस्तान ईमानदारी से आतंकवाद समाप्त करना चाहता है तो वह भी भारत के कदम का समर्थन ही करेगा। यह भी सच है कि आतंककारियों का न कोई देश होता है और न कोई धर्म। भारत ने अपनी कार्रवाई के बारे में दुनिया को बता दिया है। दुनिया भारत के कदम का समर्थन ही करेगी क्योंकि आतंकवाद के खिलाफ संघर्ष आज की सबसे बड़ी जरूरत है।