सरकारें बदल जाएं, वित्त मंत्री बदल जाएं,
क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड के पदाधिकारी अथवा टीमों के खिलाड़ी बदल जाएं लेकिन
सट्टेबाजी के नासूर पर लगाम लगाने वाला नजर नहीं आता
रह-रहकर काले धन को वापस लाने और सट्टेबाजी पर रोक
लगाने की खबरें आती हैं। शेयर बाजार के बिना किसी कारण लंबी छलांग लगाने और धड़ाम
गिरने के समाचार भी सुर्खियां बनते रहते हैं। वायदा कारोबार बाजार में भी जिंसों के
भाव चढ़ने-गिरने का सिलसिला लगातार चलता रहता है।
अगर कुछ होता नजर नहीं आता तो वह
है काले धन की वापसी, सट्टेबाजी का सफाया अथवा शेयर बाजार-वायदा बाजार में चंद
लोगों की मुनाफा कमाने की प्रवृत्ति पर रोक। अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए
हर सरकार अपने तरीके से काम करती नजर आती है लेकिन सट्टेबाजी रूकना तो दूर लगातार
जाल फैलाती जा रही है। क्रिकेट की सट्टेबाजी में नेताओं-अधिकारियों के पैसे लगे
होने की खबरों के बीच चंद सटोरिए धर-दबोचे भी जाते हैं लेकिन समस्या का समाधान होता
नजर नहीं आता। सवाल उठता है क्यों?
हर सरकार सट्टेबाजी को रोकना चाहती है तो
फिर ये लाइलाज बीमारी क्यों बनती जा रही है? क्रिकेट की “सेवा” कर रहे बीसीसीआई के
अनेक अधिकारियों का नाम सट्टेबाजी में उछलने के बावजूद यदि बड़ी मछलियां गिरफ्त में
नहीं आतीं तो इसके लिए दोष्ाी किसको माना जाए? मिलीभगत के खेल को अथवा बड़े लोगों
को बचाने के लिए तमाम बड़े लोगों के एक हो जाने को। आईपीएल प्रतियोगिता आठ साल से
चल रही है और हर बार खिलाडियों से लेकर अधिकारियों तक के नाम हवा में उछलते हैं।
प्रवर्तन निदेशालय से लेकर पुलिस, सब सक्रिय हो जाते हैं सटोरियों के मायाजाल को
ध्वस्त करने में। प्रतियोगिता खत्म हो जाती है, सट्टेबाजी की जांच भी धीमी पड़ जाती
है लेकिन नहीं रूकती तो सट्टेबाजी।
प्रवर्तन निदेशालय इन दिनों सटोरियों की धर
पकड़ में लगा है। तार जयपुर से लेकर मुंबई, अहमदाबाद, दुबई और सिंगापुर तक जुड़े
नजर आ रहे हैं। देश के अलग-अलग हिस्सों से आने वाली खबरों की गंभीरता से
जांच-पड़ताल की जाए तो पता चलता है कि सट्टेबाजी ने देश को, खासकर युवाओं को, अपने
जंजाल में बुरी तरह जकड़ लिया है। अनेक परिवार तबाह हो रहे हैं लेकिन पुलिस और
प्रवर्तन निदेशालय खानापूर्ति से आगे कभी बढ़ ही नहीं पा रहे अथवा बढ़ना भी नहीं
चाहते।
चिंता की बात यही है कि भले सरकारें बदल जाएं, वित्त मंत्री बदल जाएं,
क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड के पदाधिकारी अथवा टीमों के खिलाड़ी तक बदल जाएं लेकिन
सट्टेबाजी के नासूर पर लगाम लगाने वाला कोई नजर नहीं आता। ऎसे में ये मान लिया जाना
चाहिए कि सट्टेबाजों का गिरोह उन सरकारों से अधिक ताकतवर हो चला है जो इसे जड़ से
मिटाने का दावा करते नहीं थकते।
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