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अकल के अंधे

Published: Mar 25, 2015 11:56:00 pm

बिहार के लोग अपने-अपने
प्रियजनों को नकल कराने के लिए तीन-तीन मंजिल तक जा चढ़े।

लालू कसम। फोटू देखकर मजा आ गया। बिहार के लोग अपने-अपने प्रियजनों को नकल कराने के लिए तीन-तीन मंजिल तक जा चढ़े।

अद्भुत दृश्य था। मानो किसी कुशल चित्रकार ने “नकल कला” को अपनी कल्पना से साकार कर दिया। परीक्षाओं में नकल आज से नहीं अति प्राचीन काल से की और कराई जाती रही है।

हमारे युग में कई ऎसे मेधावी थे जो पूरे साल तो मौज करते और परीक्षा आते हीं सारी प्रतिभा छोटी-छोटी फर्रियां बनाने में झोंक देते। वे छोटी सी पर्ची पर चार-चार पेज की सामग्री उतार देते थे। ऎसा ही एक मित्र था रग्घू। वह पर्चियों पर बारीक-बारीक लिखने की प्रतिभा के दम पर दसवीं तो नहीं कर पाया पर इस हुनर में इतना उस्ताद हो गया कि बाद में चावल के एक दाने पर पूरी हनुमान चालीसा लिख डाली।


बाद में उसे इस लघु चित्रकारी पर राष्ट्रीय स्तर का पुरस्कार भी मिला। उस जमाने में लड़कियां जींस तो नहीं पहनती थीं लेकिन दुपट्टे में इस होशियारी से पर्चियां चिपका लाती कि अच्छे खासेे परिवीक्षक भी चकमा खा जाते।

एक विधायक की बेटी के लिए प्रिंसिपल ने अलग परीक्षा कक्ष का जुगाड़ किया था और विश्वविद्यालय को लिखा कि इस युवती को छूत की बीमारी के कारण “आइसोलेशन” में रखना जरूरी है। दूसरे दिन हम जैसे एक दो और परीक्षार्थियों ने भी प्राचार्य से कहा कि सर हमें भी छूत की बीमारी है।

हमें भी नेता पुत्री के साथ बिठाया जाए इतने में प्रिंसिपल साहब आग बबूला हो गए और हमें कॉलेज से निकालने की धमकी दे डाली। हम भी कम नहीं थे। अपने किलाण मामा के दोस्त डॉक्टर से छूत की बीमारी का सर्टिफिकेट बनवा पेश कर दिया।

हमने और विधायक पुत्री ने उसी कक्ष में परीक्षा दी। इस तरह उस सुन्दरी के संग हम भी मैट्रिक परीक्षा के भूत से मुक्त हुए। नकल बिन अकल का किस्सा किलाण मामा सुनाते हैं।

आजादी के आस-पास की बात है। स्कूल के हैडमास्टर ने फुटबाल टीम के लड़कों से कहा कि अगर राज्य स्तर की ट्रॉफी ले आओ तो परीक्षा में तुम्हारे बैठने का प्रबंध अलग कमरे में करवा दूंगा। टीम ने बहुत मेहनत की और जीत गए। परीक्षा में अलग कमरे में किताबों के संग बैठे लेकिन पूरी टीम में से सिर्फ मामा पास हुए क्योंकि बाकी लड़कों को पता ही नहीं था कि प्रश्नों के उत्तर किताबों में किस जगह लिखे हैं। लालू ने सही कहा- उनकी सरकार होती तो परीक्षा में किताब ही दे देते। लिखता तो वही जिसे उत्तर पता हो।

यानी अकल के बिना नकल भी फेल है। सच्ची-सच्ची बताना। क्या आपने कभी परीक्षा में नकल की है? – राही

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