जब भी भारत-पाकिस्तान के बीच हालात तनावपूर्ण होते हैं तो आपसी बातचीत बंद करनी की मांग तो पुरजोर ढंग से उठती ही है पर दोनों ओर से खेल और सांस्कृतिक, आर्थिक संबंधों पर भी तलवार लटक जाती हैं। उरी हमले के बाद भी बहस गर्म हुई है कि पाकिस्तानी कलाकारों की आवाजाही बंद होनी चाहिए। चूंकि राजनीति को यह मसला लुभाता रहा है तो वह भी जमकर हो रही है। आखिर कूटनीतिक संबंधों के साथ-साथ सभी तरह के संबंध तोडऩा कितना है जायज? इसी पर बड़ी बहस…
कलाकारों को इसकी सजा देना ठीक नहीं ( परीक्षित साहनी)
उरी में आतंकी हमले के बाद देश भर में पाकिस्तान को लेकर लोगों का गुस्सा उबाल पर है। पाक को गोली का जवाब गोली से देने की बात हो रही हैं। ऐसे माहौल में युद्ध हो भी सकता है। लेकिन मेरा मानना है कि युद्ध किसी समस्या का समाधान नहीं है। युद्ध के हालात में हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि दोनों देशों के पास परमाणु हथियार है। इससे पहले भी हमारी संसद पर हमला हुआ, मुम्बई धमाके हुए और बाद में पठानकोट और उरी में आतंकी हमला।
हमने जवाब में क्या कर लिया? अब यह मांग भी उठने लगी है कि पाकिस्तान से तमाम तरह के सम्बन्ध तोडऩे चाहिए। वहां के कलाकारों और क्रिकेटरों को हिन्दुस्तान में नहीं आने देना चाहिए।
सब जानते हैं कि पाकिस्तान आतंकियों को शह व पनाह दोनों देता है। दुनिया का कौनसा मुल्क है जिसमें पाक के पाले आतंकी मारामारी नहीं कर रहे? अमरीका तक पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद का शिकार हुआ है। पाकिस्तान का यह रवैया कोई आज से ऐसा नहीं है। पहले भी बांग्लादेश के रूप में खुद के टुकड़े करा चुका है और अब अपने है। मैं वहां के टीवी चैनल्स भी देखता हूं। जब भी भारत की चर्चा होती है इन चैनल्स में हमारे खिलाफ जहर उगला जाता है।
हिन्दुस्तान और हिन्दुओं को लेकर कड़वी बातें कही जाती है। पाकिस्तान किसी न किसी तरह से हमें नुकसान पहुंचाना चाहता है। एक तरह से हाथ धोकर पीछे पड़ा है। सीधे-सीधे दुश्मनी जैसा माहौल है। ऐसे में पाकिस्तान से सम्बन्ध तोडऩे की बात कहने वाले गलत नहीं हैं। लेकिन एक बात मैं कहना चाहूंगा कि भारत-पाकिस्तान के लोगों में दुश्मनी नहीं है। यह सियासी दुश्मनी है। आज भी चाहे कलाकार हो या फिर कोई और पाकिस्तान से हमारे यहां आता है तो लौटकर हिन्दुस्तान की मेहमाननवाजी की तारीफ ही करता है।
हमारे लोग भी वहां जाते हैं तो उनका सम्मान होता ही है। हमने तो पाक कलाकार अदनान सामी को भारत की नागरिकता तक दी है। हमने समय-समय पर यह बताया है कि हम सभ्य मुल्क के बाशिंदे हैं। लेकिन पाकिस्तान के बारे में क्या कहें? वहां तो ऐसा भी देखने- सुनने में आया है कि किसी पाकिस्तानी कलाकार ने वहां जाकर भारत की तारीफ की तो उसे लोगों के गुस्से का शिकार होना पड़ा।
कलाकारों को सजा देना ठीक नहींं, इतना जरूर कहूंगा कि उन पाक कलाकारों पर तो नजर रखनी ही होगी जिन पर खुफिया सूचनाएं लीक करने का संदेह है। पाक को सबक सिखाने का बड़ा उपाय वही है जो हमारे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी कहते हैं। यानी पाकिस्तान की करतूतों को दुनिया के सामने रखा जाए और उसको अलग-थलग कर दिया जाए। उसे यह अहसास दिलाया जाना जरूरी है कि हम नाराज हैं और उसकी हरकतों को बर्दाश्त करने वाले नहीं है।
संबंध तभी जब आतंक की खुली निंदा करें (प्रो. राकेश सिन्हा)
भारत की सामूहिक चेतना में युद्ध को कभी प्राथमिकता नहीं दी जाती। युद्ध हमारे लिए अंतिम रास्ता होता है। यह बात हम अपने धार्मिक साहित्य से सीखते आए हैं। पर पाकिस्तान एक राष्ट्र नहीं बल्कि वह एक विचार है, जिसके तीन आयाम है। पहला, भारत का विनाश और विखंडन, दूसरा हिंसा और जिहाद के रास्ते भारत पर आक्रमण और तीसरा पंथ निरपेक्षता और लोकतंत्र को नकारना। इन तीनों नकारात्मकता के कारण पाकिस्तान में आर्थिक विकास नहीं हो पाया। वहां मध्यम वर्ग नहीं उभर पाया इसलिए वहां कोई भी लोकतांत्रिक आावाज भी नहीं उभरती।
भारत-पाक में मित्रता की बातें करनेे वालों में कुछ अच्छे लोग भी हैं पर बड़ी तादाद में लोग इसे फैशन के तौर पर करते हैं। सांस्कृतिक, व्यापारिक संबंध की पैरवी करने वाले लोग जरा यह बताएं कि उरी हमले के बाद कितने पाकिस्तानी कलाकारों ने भारत-पाकिस्तान मित्रता के लिए कैंडल मार्च किया? वहां के कितने लेखकों और कलाकारों ने भारत के खिलाफ युद्ध न करने की बात कही? दरअसल, पाकिस्तान में अधिकांश लोग उनके सैन्य प्रमुख राहिल शरीफ की नजर से भारत को देखते हैं। वहां हिंदुओं के प्रति नफरत भरा दृष्टिकोण हावी रहता है।
पाकिस्तान में हिंदुओं के खिलाफ अत्चायार, उनके जबरन धर्म परिवर्तन पर शांति की अपील करने वाले कितने लोगों ने ङ्क्षचता जाहिर की? भारत में भी ऐसी बड़ी बिरादरी है जो पाकिस्तान को उस रूप में नहीं समझना चाहती, जिस रूप में पाकिस्तान है। पाकिस्तान अगर लोकतांत्रिक रास्ते पर चलता और सह-अस्तित्व पर टिका होता तो हम उसे खुले दिल से स्वीकार करते। लेकिन मोहम्मद अली जिन्ना से लेकर जुल्फिकार अली भुट्टो, याहया खान हों या परवे•ा मुशर्रफ या फिर राहिल शरीफ सबकी भारत के खिलाफ एक ही नीयत रही है।
भारत की ओर से शांति स्थापित करने की हरसंभव कोशिश हो चुकी है। दुनिया ने इस बात पर हमारा समर्थन किया है जिससे आज पाकिस्तान अलग-थलग पड़ गया है। अमरीका में डेमोक्रेटिक और रिपब्लिकन, दोनों दल पाकिस्तान को आतंककारी राज्य घोषित कराने के लिए विधेयक ले आए हैं। इतनी दयनीय हालत पाकिस्तान की कभी नहीं हुई। अब भारत को पाक से ममता और संवेदन के साथ काम करने की बजाय कठोरता और व्यावहारिक यथार्थ के साथ पेश आना होगा।
जो लोग भारत में उरी जैसी घटना के बावजूद सांस्कृतिक दोस्ती बढ़ाने की बात करते हैं, वे न तो यथार्थवादी हैं और न ही आदर्शवादी। वे भ्रमित बुद्धिजीवी हैं। आज पाकिस्तान के कलाकारों, साहित्यकारों से यह सवाल करने का समय आ गया है कि वे आतंकवाद के विपक्ष में हैं या पक्ष में है। अगर वे विपक्ष में हैं तो भारत पर हो रहे आतंकी हमलों की खुली निंदा क्यों नहीं करते?