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रिश्वत ही रिश्वत

Published: Jul 14, 2017 10:08:00 pm

हमारे प्रधानजी ने जब गद्दी संभाली थी तो उन्होंने सीना तान कर कहा था न
खाऊंगा, न खाने दूंगा। लेकिन तीन बरस बाद यह तो तय हो गया कि न खाने देना
उनके बस की बात नहीं। सरकारी तंत्र में रिश्वतखोरी बाकायदा बेहिसाब चल रही
है

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व्यंग्य राही की कलम से
अब अगर नैतिकतावादी नाक-भौं नहीं सिकोड़े तो हम दावे के साथ कह सकते हैं कि रिश्वत और देह व्यापार धरती के सबसे पुराने कारोबार रहे हैं। लगता है देश भर में रिश्वतखोरी अब एक जरूरी कार्यवाही बन चुकी है। प्रतिदिन समाचार-पत्रों में रिश्वतखोर को दबोचने की खबर मिल ही जाती है। दो दिन पहले तो छह रिश्वतखोर एक दिन में पकड़े गए। ये तो वे महानुभाव हैं जो पकड़े गए। ऐसे अनगिनत भ्रष्टाचारी हैं जो मजे उड़ा रहे हैं।

अपने गलत पैसे के दम पर समाज में मूंछों पर ताव देकर घूमते हैं। कानून के मुताबिक रिश्वत लेना और देना दोनों ही अपराध है परन्तु अपनी खुशी से कौन रिश्वत देगा। उस महिला अभियंता को ही लो, जिसे भ्रष्टाचार विभाग ने दबोचा। यह मोहतर्मा डेढ़ बरस से ठेकेदार की फाइल दबाये बैठी थी जिससे उसका भुगतान लम्बित होता जा रहा था। रिश्वती यही करते हैं। कागज दबा कर बैठ जाते हैं। ठेकेदार या उपभोक्ता को दस चक्कर कटवाते हैं।

उनकी इन्हीं नीच हरकतों से तंग आकर वह ले-देकर अपना काम निकलवाने की सोचता है। एक ठेकेदार भ्रष्टाचार निरोधक विभाग के पास तब गुहार लगाने जाता है जब रिश्वतखोर उसका टेटुआ दबा कर खूब माल पीना चाहता है। वरना हमारे उच्च प्रधानजी सहित विभाग के चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी और सरकारी परिसरों के कूकर तक जानते हैं कि दस से पन्द्रह टका कमीशन तो तय है। इसे तो कोई बेईमानी मानता ही नहीं।

यही कारण है कि प्रतियोगिता में फंसा ठेकेदार घटिया निर्माण सामग्री का प्रयोग करके माल कमाता है। हमारे प्रधानजी ने जब गद्दी संभाली थी तो उन्होंने सीना तान कर कहा था न खाऊंगा, न खाने दूंगा। लेकिन तीन बरस बाद यह तो तय हो गया कि न खाने देना उनके बस की बात नहीं। सरकारी तंत्र में रिश्वतखोरी बाकायदा बेहिसाब चल रही है। जब समाज ही रिश्वतखोरों के आगे झुका पड़ा है तो फिर कानून क्या करेगा।
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