रेल बजट का अब इंतजार खत्म। 92 साल से हर वर्ष 25-26 फरवरी को संसद में पेश होने वाला रेल बजट अब इतिहास में शामिल हो जाएगा। आम बजट में ही रेल मंत्रालय की मांगें व प्रावधान शामिल होंगे। केन्द्रीय मंत्रिमंडल ने रेल बजट समाप्त करने के साथ ही आम बजट को समय से पहले पेश करने और सभी वित्तीय और कराधान प्रक्रिया 1 अप्रेल से पूर्व करने का फैसला किया है। 28 फरवरी को पेश होने वाला आम बजट कितनी जल्दी आएगा, यह तय होना बाकी है।
अगले वर्ष की शुरुआत में उत्तर प्रदेश, पंजाब, उत्तराखंड समेत कई राज्यों में चुनाव होने हैं। इनकी तारीखें तय होने के बाद ही संभवत: बजट के लिए कोई दिन तय होगा। रेल बजट भले ही समाप्त होगा पर इसकी स्वायत्तता बरकरार रहेगी। इस निर्णय से रेलवे से प्राप्त होने वाला 4100 करोड़ का लाभांश केन्द्र को नहीं मिलेगा।
इसे आम बजट में समाहित किए जाने की संभावना है। रेलवे की आय एक आधारभूत कोष में आएगी और कमी से इसके खर्चे पूरे किए जाएंगे। बहुत दिनों से यह मांग चल रही थी जबकि कई ऐसे सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यम हैं जिनकी वार्षिक योजना रेलवे से कहीं ज्यादा होती है। सबसे पहले नीति आयोग के सदस्य बिबेक देबरॉय ने रेलवे को राजनीतिक दबाव से मुक्त करने और रेलवे को शामिल करते हुए एक राष्ट्रीय परिवहन नीति बनाने का सुझाव रखा था जो फलीभूत होने जा रहा है।
वैसे भी रेल बजट सिर्फ आंकड़ों का दस्तावेज भर रह गया था। इसमें किराया, भाड़ा, यात्री, सुविधाएं और बोझ की बातें कई सालों से नहीं देखी गई थीं। सरकार की मर्जी से वित्तीय वर्ष के बीच में ही किराए-भाड़े में बढ़ोतरी या कमी होने लगी थी। 1924 से हर वर्ष पेश होने वाले रेल बजट के बंद होने से जहां सरकार का आर्थिक बोझ कम होगा, वहीं संसद में इस पर होने वाली चर्चा-जवाब आदि का समय दूसरे मुद्दों को दिया जा सकेगा। बस सरकार यह ध्यान जरूर रखे कि रेलवे का विकास और यात्रियों की सुरक्षा, संरक्षा और समय का पालन नहीं डगमगा जाए।
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