व्यंग्य राही की कलम से
पता है अपने देश के धूर्त नेता अवाम के दिमाग पर कैसे काबू पाते हैं – उन्हें ‘खतरा’ दिखाकर। ‘खतरा’ यानी एक नितांत काल्पनिक भय। सब जानते हैं कि जब इंसान को खतरे का आभास होता है तो उसकी सारी इन्द्रियां उत्तेजित हो जाती हैं। मन ही मन एक अनचाहा भय समा जाता है।
ठीक ऐसे जैसे आप घुप अंधेरे में एक तुड़ी-मुड़ी पड़ी रस्सी के टुकड़े को जहरीला सांप समझ लें। लेकिन सच में खतरा इस देश की आवाम को नहीं है। खतरा तो जरदारों यानी काली कमाई करने वाले लोगों को है। खतरा तो उन खूंखारों को है जो कि शरीफ आदमियों को आतंकित करते रहते हैं। खतरा तो कुर्सी वालों को होता है क्योंकि उन्हें पिछवाड़े से कुर्सी सरकने का डर लगा रहता है।
खतरा तो उन रिश्वतखोर लोगों को रहता है जो हर बार सोचते हैं कि इस बार तो बच गए लेकिन अगली बार पकड़े न जाएं। खतरा चमचों और दरबारियों को होता है जिन्हें लगता है उनके ‘आका’ का सिंहासन चला न जाए। नेताओं के अलावा लालची डॉक्टर और झूठा भविष्य बांचने वाले भी खतरा दिखाते रहते हैं।
बहुराष्ट्रीय दवाई कंपनियों का कारोबार तो टिका ही खतरे पर है। हर दो-तीन बरस बाद अचानक एक अनजान बीमारी का हल्ला मच जाता है और करोड़ों लोग बेवजह अरबों-खरबों रुपए की दवाइयां खरीद लेते हैं क्योंकि मृत्यु से तो कौन नहीं डरता।
बर्रेसगीर यानी दक्षिण एशिया के दो प्रमुख देशों में तो सत्ताधारी अपनी अवाम को पड़ोसी देश से डराते रहते हैं। भारत में पाकिस्तान से और पाकिस्तान में भारत से खतरा होने का जोरदार प्रचार किया जाता है।
दोनों देशों की बहुसंख्य अवाम रोजी, रोटी और मकान की चिन्ता में पड़ी रहती है और नेतागण उन्हें डराकर कुर्सी हथिया लेते हैं। पता नहीं जनता क्यों नहीं समझती कि असली खतरनाक तो वे हैं जो खतरों की बातें करके खामखां डराते हैं। अपने बुजुर्गों ने साफ-साफ कहा है- डरना मना है।
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