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क्या कोई राज्य अलग झंडा रख सकता है?

कर्नाटक में सत्तारूढ़ कांग्रेस सरकार ने राज्य के लिए अलग झंडे की
कवायद शुरू की है। लेकिन, इस प्रयास को देश की एकता के लिए खतरा बताया जा
रहा है। सवाल यह है कि राष्ट्रीय ध्वज के बावजूद क्या किसी राज्य को अलग
झंडा अपनाने का अधिकार है?

Jul 21, 2017 / 10:28 pm

शंकर शर्मा

opinion news

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कर्नाटक में सत्तारूढ़ कांग्रेस सरकार ने राज्य के लिए अलग झंडे की कवायद शुरू की है। लेकिन, इस प्रयास को देश की एकता के लिए खतरा बताया जा रहा है। सवाल यह है कि राष्ट्रीय ध्वज के बावजूद क्या किसी राज्य को अलग झंडा अपनाने का अधिकार है? जम्मू-कश्मीर में ऐसा हो सकता है तो किसी अन्य राज्य में क्यों नहीं? क्या राज्य का अलग झंडा होने से राष्ट्रीय गौरव के प्रतीक हमारे तिरंगे का अपमान नहीं होगा? क्या यह केवल चुनावी मुद्दा मात्र तो नहीं है? इसी पर आज की बड़ी बहस

यह राष्ट्रीय गौरव के प्रतीक का अपमान है (डॉ. सुभाष सी. कश्यप)
कर्नाटक सरकार की ओर से राष्ट्रीय ध्वज के साथ अलग से राजकीय ध्वज तैयार करने की कवायद शुरू की गई। पता नहीं किस सोच के चलते कर्नाटक सरकार ने इस तरह का कदम उठाने का फैसला लिया। यह बेहद शर्मनाक होगा कि हमारे राष्ट्रीय ध्वज के अतिरिक्त या उसके साथ में कोई अन्य ध्वज फहराया जाए। हमारे ध्वज के समान कोई और नहीं हो सकता। समझ में नहीं आता कि अपने देश में ही ऐसा करने के बारे में लोग सोच भी कैसे लेते हैं!

 सवाल यह बिल्कुल भी नहीं है कि पूर्व में किसी राज्य का कोई ध्वज था या नहीं? यदि किसी राज्य का कोई ध्वज रहा होगा लेकिन अब तो वह ध्वज हमारे तिरंगे की शान का मुकाबला नहीं कर सकता। सवाल यह भी नहीं कि राष्ट्रीय ध्वज सर्वोपरि रखते हुए, राजकीय ध्वज को कुछ नीचे रखकर फहराया जा सकता है या नहीं?

मेरा स्पष्ट मानना है कि संविधान ने हमारे तिरंगे को मान्यता दी है तो इसके ऊपर और नीचे तो क्या बराबर में भी (केवल झंडे तले होने वाली देशों की वार्ताओं और सम्मान समारोहों को छोड़ दें) अन्य कोई ध्वज नहीं फरहाया जा सकता। हमारे देश के राष्ट्रीय प्रतीक चिन्ह सम्मानीय हैं। इसमें न केवल राष्ट्रीय ध्वज तिरंगा बल्कि तीन शेरों वाला चिन्ह, राष्ट्रगान और संविधान भी आते हैं। यदि किसी भी प्रकार इन राष्ट्रीय गौरव के प्रतीकों का अपमान होता है तो ऐसा करने वालों के खिलाफ ‘दि प्रिवेंशन ऑफ इन्सल्ट्स टू नेशनल ऑनर एक्ट, 1971’ के तहत कार्रवाई की जा सकती है।

यह कोई राजकीय पक्षी, पशु और पुष्प घोषित करने जैसा मामला भी नहीं है। यह अक्षम्य अपराध की श्रेणी में शुमार किया जाता है। इसकी अनुमति किसी भी कीमत पर नहीं दी जा सकती है। जरा सोचिए कि देश की सेना के जवान किसके सम्मान के लिए लड़ते हैं। वे किसी राज्य की शान के लिए नहीं, तिरंगे की शान बरकरार रखने के लिए जीने-मरने की कसम खाते हैं और अंतिम दम तक इसके लिए संघर्ष करते हैं। वे किसी एक राज्य के नहीं देश के सिपाही होते हैं। इसी भावना की देश में जरूरत महसूस की जाती है। यह भी सोचना होगा कि यदि किसी एक राज्य को ऐसा करने की अनुमति दी जाती है तो अन्य राज्य भी ऐसा नहीं करेंगे, इस बात की क्या गारंटी है?

इस मामले में किसी को भी अपने ध्वज की अनुमति नहीं दी जाती। राष्ट्रीय ध्वज और उसके गौरव के आगे किसी भी ध्वज की कोई अहमियत नहीं है और ऐसा न हो, इसीलिए अलग से अधिनियम बनाया गया है। इस मामले की कश्मीर से तुलना नहीं करनी चाहिए। कश्मीर के लिए अस्थायी रूप से अलग से व्यवस्था की गई है। उसके उदाहरण की आड़ लेकर अलग से कुछ करने का प्रयास करना अपराध की श्रेणी में ही माना जाएगा। इस तरह के प्रयास बंद कर देने चाहिए।

राज्य ध्वज से कोई खतरा नहीं राष्ट्र की एकता को (प्रो. संदीप शास्त्री )
किसी संप्रभु देश का कोई राज्य अगर अलग झंडे की मांग उठाता है तो इसे विघटनकारी तत्वों द्वारा देश को तोडऩे के प्रयास के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए। हर राज्य की अपनी संस्कृति होती है, अपना इतिहास होता है और उसकी अपनी पहचान होती है। राज्य का झंडा उस राज्य की पहचान को ही उजागर करता है जिस तरह राष्ट्र का झंडा देश की पहचान को प्रतिबिम्बित करता है। राष्ट्र के झंडे तले राज्य के झंडे का प्रयोग कई देशों में सफलतापूर्वक अस्तित्व में है।

विश्व के कई देशों जैसे अमरीका, जर्मनी, इथोपिया, नाइजीरिया और हाल ही में तानाशाही से मुक्त हुए और लोकतंत्र का आगाज करने वाले म्यांमार जैसे देश में भी राष्ट्रीय ध्वज के साथ-साथ हर राज्य का अपना अलग झंडा अस्तित्व में है। जहां तक बात कर्नाटक सरकार के अलग झंडे की मांग को लेकर है तो इसे देश की अखंडता से खिलवाड़ के रूप में नहीं देखा जा सकता। हमारे देश में आजादी से पूर्व भी राजशाही के दौर में प्रत्येक राज्य का अपना झंडा होता था।

अंग्रेजी शासन में प्रत्येक राजा और नवाब को अपने राज्य या रियासत के लिए अपना अलग ध्वज इस्तेमाल करने की छूट थी। हालांकि संविधान के अंतर्गत हमारे देश में विशेष परिस्थितियों में ही किसी राज्य को अलग झंडे की अनुमति दी जा सकती है। उदारहणस्वरूप जम्मू-कश्मीर में संविधान के अनुच्छेद 370 के तहत उसे अपना अलग ध्वज इस्तेमाल करने की इजाजत है।

आजादी के पश्चात ‘एक राष्ट्र एक ध्वज’ की अवधारणा पर चलते हुए सभी राज्य हमारे राष्ट्रध्वज तिरंगे को ही अपना मानते आए हैं। दक्षिण के राज्य कर्नाटक की इस मांग ने क्षेत्रीय अस्मिता की बहस को पुनर्जीवित कर दिया है। यह भी देखना होगा कि अगले वर्ष कर्नाटक में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। कहीं यह मांग विधानसभा चुनावों को ध्यान में रखते हुए तो नहीं उठाई गई।

क्योंकि पिछले चार सालों से कर्नाटक में सत्तारूढ़ कांग्रेस ने न तो ऐसा कोई प्रस्ताव दिया और न ही कोई ऐसी मांग केन्द्र के समक्ष रखी। कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व ने कर्नाटक इकाई की इस मांग से पल्ला झाड़ते हुए इसे स्थानीय निर्णय बताया है। क्षेत्रीय अस्मिता के सम्मान की इस मांग का आज राजनीतिकरण किया जा रहा है।

कुछ स्वार्थी तत्व इस मुद्दे को व्यर्थ की बहसों में उलझाकर भटकाने का प्रयास कर रहे हैं। हमारा देश अनेकता में एकता के लिए जाना जाता है। इससे भी इनकार नहीं किया जा सकता कि हर राज्य का अपना झण्डा होगा तो वह प्रत्येक राज्य की वैविध्यपूर्ण संस्कृति को ही प्रकट करेगा। कर्नाटक को अलग झंडा इस्तेमाल करने की मांग केन्द्र स्वीकार करता है तो यह कदम देश के राज्यों के गौरवपूर्ण इतिहास और विविध संस्कृति को पहचान दिलाने वाला ही होगा।

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