व्यंग्य राही की कलम से
सारा प्रशासन दंग है। राज्य की सबसे बड़ी और शक्तिशाली सरकारी इमारत के परिसर में गांजा के पेड़ कैसे उग गए। ये पेड़ किसने लगाए। हो सकता है कि कल कोई सीबीआई जांच की मांग भी कर ले। संभव है कि सरकार जांच आयोग बिठा दें जिसका अध्यक्ष हाल ही सेवानिवृत्त हुआ कोई चहेता अधिकारी बना दिया जाए। रिटायर को रोजगार मिल जाएगा। लेकिन साहबानो। हम बगैर शुल्क लिये यह रहस्य उजागर कर देते हैं कि सैक्रेटिएट में गांजा क्यूं उगाया गया? पहले आप हमारी सच्ची कथा सुनिए। एक जमाने में हमारे मित्र गोजो गुरु सरकारी महकमे में मुलाजिम थे। अपने यहां प्राय: थाने-कोतवाली में हनुमान बाबा का और सरकारी दफ्तरों में एक शिवजी का मंदिर जरूर होता है।
असल में इन मंदिरों का उपयोग पूजा पाठ के लिए कम बल्कि साल में दो- चार गोठ करने और कुछ निकम्मों द्वारा दोपहरी में आराम करने के लिए ज्यादा होता था। गोजो गुरु हमें मंदिर में ले गए और बोले- इच्छा है तो चिलम लगा ले। हमने पूछा- यहां असला कहां मिलेगा। गोजो गुरु हमें मंदिर के पिछवाड़े ले गए और वहां उगे हरे सघन खूबसूरत पौधे दिखा कर- ये गांजे के पौधे हैं।
उन्होंने चार-पांच पत्तियां तोड़ी, उन्हें कुचली और मंदिर के मोखे में रखी सुल्फी निकाल कर उसे सुलगा ली। हमने हैरत से पूछा- गुरु सरेआम सुट्टा। गोजो गुरु ने कहा- यहां कौन पुलिस का डर है। एक तो सरकारी दफ्तर। दूसरा मंदिर का पिछवाड़ा। किसी का बाप भी नहीं सोच सकता यहां गांजा उगा है।
बस गांजे के दो- चार बीज लाकर यहां पटक दिए। अपने आप हरे हो गए। तो साहब सचिवालय में भी गांजा सुनियोजित रूप से उगाया गया है। काम का इतना बोझ होता है कि लोग दिन भर काम करते-करते थक कर अगर दो सुट्टे मार लें तो कुछ लेने-देने की हिम्मत भी बढ़ जाती है। हमारी तो गुजारिश है कि सरकार हर सरकारी महकमों में ऐसे पौधों को उगाने की परम्परा बनाए।
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