हमारा देश अजीब है। दरअसल समाज स्वयं इतना भ्रष्ट हो चुका है अब ईमानदार और ईमानदारी उसकी आंखों में चुभने लगी है
लालू की गलबहियां केजरीवाल को भारी पड़ रही हैं। ये वही लालू हैं जिन्हें केजरीवाल पानी पी पीकर भ्रष्टाचारी बताते थे लेकिन एक जीत ने लालू के सारे पाप धो दिए। राजनीति में यही होता है। इंदिरा गांधी पर आपातकाल लगाने और लोकतंत्र को खूंटी पर टांगने के गंभीर आरोप थे लेकिन सत्ता के लिए जूतम पैजार होने और सन् अस्सी में हारते ही जनता पार्टी हाशिए पर चली गई और इंदिरा नई शक्ति बन कर देश पर छा गई।समकालीन राजनीति में केजी ईमानदार के रूप में उभरे। इसमें कोई शक नहीं कि वे भले ही घुटे हुए राजनीतिज्ञ न हों पर एक सादगी पसंद आदमी जरूर हैं।
अब केजी करें भी तो क्या करें। वे तो नीतीश के राज्यारोहण में गए थे वहां मंच पर लालू गले पड़ गए और वे लपक कर उनसे ऐसे लिपट गए जैसे केजी उनकी पुरानी प्रेमिका हो। उस मंच पर जिसके सामने सैकड़ों खबरनवीस हर नई बात को सूंघने और उसे कैमरे में कैद करने के लिए बेताब हों, केजरीवाल के गाल से गाल मिलाए लालू की फोटो उनके लिए विलक्षण क्षण बन गया। केजी की आंख का काजल उनके घुटनों के लिए भारी पड़ गया।
अब बेचारे सफाई देते घूम रहे हैं कि मैं नहीं लालू उनसे चिपके थे। इतनी सी बात के लिए केजरीवाल के विरोधी हाथ धोकर ही नहीं वरन् राशन पानी लेकर उनके पीछे पड़ गए। अब हमारा तो केजी बाबू से यही कहना है कि भैय्या काहे को बैकफुट पर जा रहे हैं। अगर कोई बेईमान किसी ईमानदार के आ चिपके तो फायदा बेईमान को ही होता है।
ईमानदार तो ईमानदार ही रहेगा। अलबत्ता बेईमान को उसके प्ुाण्यों का लाभ जरूर मिल जाएगा। इस गलबहियां कांड से लालू लाभ में चल रहे हैं पर क्या उनसे गले मिलते ही केजरीवाल घोटालेबाज हो गए? लेकिन साहब हमारा देश भी अजीब है। दरअसल अपना समाज स्वयं इतना भ्रष्ट हो चुका है अब ईमानदार और ईमानदारी उसकी आंखों में चुभने लगी है।
जैसे बरसों तक काजल की कोठरी में रहने वाले को स्वच्छता कतई नहीं सुहाती वैसा ही हाल हमारी मानसिकता का भी हो गया है। आजाद भारत के इतिहास में केजरीवाल पहले ऐसे मुख्यमंत्री हैं जिन्हें एकसंग तीन-तीन स्तर पर जूझना पड़ रहा है-पहला तो सर्वशक्तिमान केद्र सरकार से, दूसरा बेईमानों से और तीसरा अपने ही शातिर साथियों से। अब कोई बेईमान आकर जबर्दस्त आपके गले पड़ जाए तो इसमें आपका क्या दोष। लेकिन हमारी समझ में तो केजरीवाल को पाटलिपुत्र जाना ही नहीं चाहिए था। अरे जिस गली जाना नहीं उसका रास्ता ही क्यों पूछना? पड़ गया न खांमखां लालू का हार्दिक प्रेम भारी।
राही