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देश! उनकी बला से

राजनेताओं से लेकर अधिकारी और जनता सब जानती है कि सरकारी विमान और
हैलीकॉप्टर आखिर आते किस काम हैं? सरकारी से अधिक निजी काम में जमकर इनका
उपयोग किया जाता है। लाखों रुपए का तेल जलता है तो जले

May 01, 2016 / 11:14 pm

शंकर शर्मा

Opinion news

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त्रिपुरा के मुख्यमंत्री मानिक सरकार और रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर सरीखे चंद नेताओं को छोड़ दिया जाए तो देश के अधिकांश राजनेता मानो सरकारी पैसे का दुरुपयोग करने में अपनी शान समझते हैं। बात बड़े बंगलों की हो या नौकर-चाकरों की अथवा सरकारी विमान-हैलीकॉप्टरों की, कोई राजनेता दूसरे से पीछे नहीं रहना चाहता।

गस्ता वेस्टलैंड हैलीकॉप्टर खरीद में घोटाले का मामला इटली की अदालत में क्या उछला, नई-नई परतें खुलने लगी हैं। ऐसी परतें जो जन कल्याण के नाम पर सत्ता में आने वाले नेताओं की ही पोल खोल रही हैं। ऐसा ही एक मामला देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश का भी सामने आया है। बात तब की है जब मायावती उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री थी।

उनके काल में 40 करोड़ की लागत से राज्य सरकार ने अगस्ता हैलीकॉप्टर खरीदा था। वो भी उस समय जब राज्य सरकार के पास पहले से ही पांच विमान और हैलीकॉप्टर मौजूद थे। उस समय अगस्ता का नाम सुर्खियों में था, सो उत्तर प्रदेश सरकार ने भी एक हैलीकॉप्टर खरीद लिया। जरूरत नहीं थी, फिर भी।

राजनेताओं से लेकर अधिकारी और जनता सब जानती है कि सरकारी विमान और हैलीकॉप्टर आखिर आते किस काम हैं? सरकारी काम से अधिक निजी काम में जमकर इनका उपयोग किया जाता है। हर महीने लाखों रुपए का तेल जलता है तो जले। कौन-सा नेताओं को अपनी जेब से डलाना पड़ता है।

सरकारी पैसे को यूं उडाने के खेल में सभी राजनीतिक दलों के नेता एकजुट नजर आते हैं। मानिक सरकार सरीखे नेता की चर्चा बाकी नेता करते तो हैं लेकिन उनका अनुसरण करने का साहस कोई नहीं जुटा पाता। सरकार पिछले 10 सालों से त्रिपुरा के मुख्यमंत्री हैं लेकिन सादगी से जीवन बिताते हैं। इतने लम्बे समय से त्रिपुरा के मुख्यमंत्री रहने के बावजूद सरकार के पास न तो अपना मकान है और न अपनी कार।

उनकी पत्नी घर का सामान खरीदने जाती हैं तो रिक्शा लेकर। सरकार अपना पूरा वेतन पार्टी कोष में दे देते हैं और घर खर्च चलाने के लिए पार्टी से पांच हजार रुपए महीना लेते हैं। दूसरी तरफ तमाम राजनीतिक दलों के नेताओं को देखा जा सकता है। एक बार विधायक या सांसद बनने वाले तमाम नेता पीढि़यों का जुगाड़ कर लेते हैं। दलितों के उत्थान की बात करने वाली मायावती हों या उन जैसे दूसरे नेता, अपने उत्थान की चिंता में ही डूबे रहते हैं। देश कहीं भी जाए, उन्हें अपने और अपने परिवार के अलावा कुछ सूझता ही नहीं।

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