अजी आप लाइन हाजिर करने की बात
कर रहे हैं अल्लाह का शुक्रिया अदा करो कि सिपाही को तत्काल मुअत्तल नहीं किया।
मंत्रीजी के लाड़ले पर हाथ डालने की यह सजा कोई ज्यादा नहीं है। यह लोकतंत्र है और
मंत्री लोकतंत्र के राजा हैं। राजा का बेटा यानी राजकुमार। अब आप ही बताओ भला
राजकुमार को कानून तोड़ने के लिए कुछ सजा मिल सकती है? मंत्री, उनके चमचे,
रिश्तेदार, भाई-भतीजे ये सब कानून से ऊपर हैं। कानून इनकी मुटी में रहता है।
हमने
एक बार नहीं पचासों बार देखा है कि जब यातायात पुलिस का सिपाही किसी को ट्रैफिक
नियम तोड़ते पकड़ लेता है तो वह पहला फोन अपने किसी “आका” को करता है और अपने
मोबाइल से पुलिस के सिपाही की बात करा देता है। अब आप ही बताए जब कानून के आका ही
सिपाही को नियम तोड़ने वाले को छोड़ने का निर्देश देंगे तो बेचारा सिपाही करेगा
क्या? हाकिम की बात तो माननी ही पड़ेगी उसे। मंत्री के बेटे का चालान कटने का मतलब
है मंत्री की नाक कटना।
इलाके में हवा फैल जाती है कि जो मंत्री अपने बेटे को ही
पुलिस वाले से नहीं बचा सका वह दूसरों को क्या बचाएगा? अफसरों को भी देखिए किस
मासूमियत और लाचारी से नेताजी की जी हजूरी में जुते रहते हैं। अरे कानून तो सिर्फ
आम लोगों के लिए होता है। कानून उनके लिए होता है जो कानून को परी शिद्दत से मानते
हैं। जो कानून को ठेंगे पर रखते हैं उनके लिए काहे का कानून कौन सी व्यवस्था? सब से
मजे की बात यह कि एक छोटा सिपाही तो कानून मानता है पर जिन पर कानून को मनवाने की
महती जिम्मेदारी है वे नेताजी की जी हजूरी में लगे हुए हैं।
पता नहीं क्यों हमें
अपने पुराने प्रधानमंत्री लालबहादुर शास्त्री याद आ रहे हैं। जब वे प्रधानमंत्री
बने तो एक कम्पनी ने उनके पुत्र को दस हजार रूपए वेतन देकर अपनी कम्पनी का निदेशक
नियुक्त कर दिया। जैसे ही शास्त्री जी को पता चला उन्होंने तुरंत कम्पनी के मालिक
को बुला कर लताड़ा और पूछा कि किस कानून के तहत उन्होंने उनके बेटे को निदेशक
बनाया। यह तब की बातें हैं जब के दस हजार रूपए का अर्थ आज के दस लाख के बराबर होता
था।
आज के दबंग नेता तो उलटे यह पूछते हैं कि उन्होंने उनके नाकाबिल बेटे को
ऊंची तनखा पर नौकरी क्यों नहीं दी? सब जानते हैं कि एक कानून के रक्षक को पीठ
थपथपाने की बजाय निरूत्साहित ही किया गया है। इससे कानून के रक्षकों के समक्ष यह
संदेश जाएगा कि बेटा चालान करने को इतनी सारी जनता पड़ी है काहे को नेता पुत्तर पे
हाथ डाला। अरे वह अंगारों से नहीं खेलेगा तो क्या हमारा तुम्हारा बिटुवा खेलेगा।
राही