अंडरवर्ल्ड सरगना दाऊद इब्राहिम का जिन्न हमेशा की
तरह फिर बोतल से बाहर निकला है। उसके करीबी छोटा शकील की मानें तो 1993 में मुंबई
बम धमाकों के बाद वह भारत लौटना चाहता था लेकिन तत्कालीन सरकार ने उसके प्रस्ताव को
ठुकरा दिया। एनसीपी नेता और महाराष्ट्र के तत्कालीन मुख्यमंत्री शरद पवार का मानना
है कि आत्मसमर्पण के लिए दाऊद ने ऎसी शर्ते रखी जिन्हें मानना संभव नहीं था। वरिष्ठ
वकील रामजेठमलानी भी मानते हैं कि मुंबई धमाकों के बाद दाऊद लौटना चाहता था और लंदन
में उनकी उससे बात हुई थी। ढाई दशक में दाऊद को लेकर खबरें उड़ती रही हैं। कभी उसके
समर्पण को लेकर तो कभी पाकिस्तान में ठिकाना बनाने पर। भारत से भागने के बाद अफवाह
और चर्चाएं बहुत चलीं लेकिन सरकारी स्तर पर कभी कोई जानकारी सार्वजनिक नहीं की गई।
जो जानकारी सामने आती है उसे बताना चाहिए या नहीं, ये सरकार बेहतर जानती है। लेकिन
मोस्ट वांटेड सरगना को लेकर जनता भी तमाम तथ्य जानना चाहती है। क्या ये अच्छा नहीं
हो कि जो तथ्य मीडिया उपलब्ध करा रहा है वह सरकार की तरफ से मुहैया कराए जाएं।
जिन
तथ्यों को सरकार छुपाना चाहती है, उन्हें छोड़कर बाकी का तो खुलासा कर सकती
है।दरअसल दाऊद की बात करते ही मामला तूल पकड़ने लगता है। दाऊद देश का दुश्मन है,
लिहाजा उसे वोट बैंक की राजनीति से हटकर ही देखा जाना चाहिए।वह भारत लौटना चाहता था
लेकिन अज्ञात कारणों से नहीं लौटा, ये इतिहास की बात है। हमें और आगे देखना चाहिए।
समूचा देश जानता है कि पाकिस्तान कभी ये नहीं मानेगा कि दाऊद ने उसके यहां शरण ले
रखी है?दाऊद व उसके गुर्गे दुनिया में घूमते रहते हैं, धंधा कर रहे हैं लेकिन
खुफिया एजेंसियां क्या कर रही हैं?
क्या उन्हें दाऊद के आने-जाने की भनक नहीं लगती?
पाकिस्तान के अलावा दूसरे देशों पर दबाव बनाकर भी दाऊद पकड़ा जा सकता है। पिछली
बातों का ढिंढोरा पीटते रहने से कुछ हासिल होने वाला नहीं। सवा अरब की आबादी वाला
देश यदि अपने ही नागरिक एक अपराधी को इतने सालों में नहीं पकड़ सकता तो यही माना
जाएगा कि उसके पास इच्छाशक्ति ही नहीं है। सवाल यह नहीं कि दाऊद को लेकर कौन क्या
कहता- क्या छापता है? सवाल ये अहम हो जाता है कि हम वाकई कुछ करना चाहते हैं या
नहीं? यदि नहीं करना चाहते तो बातें बनाना छोड़ दें और वाकई कुछ करना चाहते हैं
तोतुरंत करके दिखाएं।