scriptदिया तले अंधेरा | Dia under the dark | Patrika News

दिया तले अंधेरा

Published: Apr 28, 2016 11:03:00 pm

लोग कहते हैं कि वर्षा होना कम हो गया। वर्षा तो उतनी ही हो रही है
जितनी कभी हुआ करती थी लेकिन पहले हम पानी सहेजते थे, अब पानी उड़ाते हैं

Opinion news

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पुराने मित्र जाजूजी बोले- चलो। एक काम करते हैं। आज आपके संग सरकारी इमारतों का चक्कर लगा आते हैं। हमने कहा- भाईजी! जब छत्तीसी ही भौंaटी हो जाए तब हम सरकारी दफ्तरों में जाना पसन्द करते हैं। हालांकि इस देश में रहने वाला जीवन भर चाहे मंदिर-मस्जिद में न घुसे पर सरकारी देहरी को ढोकना उसके लिए परमावश्यक होता है। लेकिन सरकारी दफ्तर में घुस कर काम कराना उतना ही कठिन है जितना द्रोणाचार्य के बनाए चक्रव्यूह से अभिमन्यु का निकलना।

हमारी बात सुन जाजूजी ठठा कर हंस पड़े और बोले- सरकारी बाबुओं से कैसे काम कराया जाए, इसकी विधियां तो मैं आपको समझा दूंगा लेकिन आज हम वहां पानी के टांके देखने के लिए चलना चाहते हैं। हम चौंके- पानी के टांके? क्या सरकारी इमारतों में पानी संग्रह करने की व्यवस्था है। जाजूजी ने कहा- जी हां। एक नहीं दर्जनों दफ्तरों में बरसात का पानी इक_ा करने की व्यवस्था है लेकिन वहां एक भी बूंद पानी इक_ा नहीं हो पाता।

हालांकि इस व्यवस्था में करोड़ों रुपए व्यय किए गए हैं। एक जमाने में शहरों के बीच बहुत से पोखर होते थे जिनमें बरसात का पानी इक_ा होता था। आज अफसरों, नेताओं और पूंजीपतियों ने फॉर्म हाउस बना लिए। नदियों में पानी लाने वाले नालों को रोक दिया गया। सब जानते हैं लेकिन सब आंखें मूंदे बैठे हैं।

आज पानी की हाय-हाय मची है तो पानी के नाम पर पैसा बहाया जा रहा है। पर पानी का पैसा पानी की तरह ही उड़ रहा है। चार नेता और छह अफसर मिलकर आधी तगारी मिट्टी उठाकर जल स्वावलम्बन कर रहे हैं। आधी तगारी मिट्टी उठाने से पोखर तालाब गहरे नहीं हो सकते। लोग कहते हैं कि वर्षा होना कम हो गया। वर्षा तो उतनी ही हो रही है जितनी कभी हुआ करती थी लेकिन पहले हम पानी सहेजते थे, अब पानी उड़ाते हैं।

अब घरों में ही देखो। मान लो हमारे घर तीन मेहमान आते हैं तो कांच के तीन गिलासों में पानी भर कर उनके सामने रखा जाता है। उनमें कोई आधा गिलास पीता है, कोई पूरा और कोई दो घूंट। बाकी बचा पानी बेकार। अब तीन गिलास धोने के लिए तीन गिलास पानी और चाहिए। कितना पानी व्यर्थ हो गया।

जाजूजी बोले- हमारे पुरखे पानी बचाते थे। पानी बर्बाद नहीं करते थे। पानी की कमी वाले क्षेत्रों में पानी नष्ट करना पाप है लेकिन पाप पुण्य की परवाह किसे हैं। कई महकमों में तो जश्न मन रहा है। पानी के लिए तगड़ा बजट आएगा जिसे नेता, अफसर, बाबू मिलकर भोगेंगे। बेचारा आम आदमी पानी को रोता फिर रहा है और पैसे वाले पांचसितारा होटल के तरणताल में ‘चुबकी’ लगा रहे हैं। वाह रे मेरे देश।
राही
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