डिजिटल बंदर
Published: Oct 07, 2015 10:23:00 pm
अच्छा बताइएगा, क्या आपने ये तीन शब्द सुने हैं- मिजारू,
किकाजारू और इवाजारू।
अच्छा बताइएगा, क्या आपने ये तीन शब्द सुने हैं- मिजारू, किकाजारू और इवाजारू। नहीं सुने ना। ये जापानी भाष्ाा के लफ्ज हैं जिनका अर्थ है- आंख बंद वाला (मिजारू), कान बंद वाला (किकाजारू) और मुंह बंद वाला (इवाजारू)।
अब तो जान गए कि हम बापू के तीन बंदरों की बात कर रहे हैं जो हमें बुरा मत कहो, बुरा मत देखो, बुरा मत सुनो का एक छोटा लेकिन बहुमूल्य संदेश देते हैं लेकिन आज तस्वीर बिल्कुल अलग है।
पता है पिछले दिनों उत्तर प्रदेश की दादरी में क्या हुआ? एक अफवाह ने निहायत शरीफ शख्स को कत्ल करवा दिया। वहां के लोगों ने गलत सुना, गलत देखा, गलत कहा और गलत कर दिया। यह झमेला अब पूरे शबाब पर है। जमाने की रफ्तार के संग कदम से कदम मिलाने की ललक में हांफते-दौड़ते, खांसते-खंखारते हम भी फेसबुक, व्हाट्सऎप, इंटरनेट पर खटते रहते ह लेकिन वहां के नजारे देख कर लगता है कि यह माध्यम धीरे-धीरे नफरत फैलाने के बड़े स्रोत बनते जा रहे हैं।
औरों की तो छोड़ो यह लिखने-पढ़ने वाले अपने आपको बुद्धिजीवी कहने वाले भी एक दूजे पर लफ्जों के तीर उछालते नजर आते हैं। कुछ लोगों की भाष्ाा तो ऎसे है जो आपने मच्छी बाजार में भी नहीं सुनी होगी। और मजे की बात इस निहायत गंदी भाष्ाा को कथित संवेदनशील लोग साहसिक कहते नहीं अघाते।
मोदी ने अमरीका जाकर जुकरबर्ग से गलबहियां की पता नहीं उन्होंने उससे पूछा कि नहीं कि भाई जुकर यह जो तेरी “फेसबुक” पर रोजाना लाखों पोर्न तस्वीरें घाली जाती है इन्हें रोकने के कोई इंतजाम है या नहीं। आपकी जानकारी के लिए मोदी और राहुल सेना की सेवा में अर्ज कर दें कि अपने पड़ोसी चीन ने फेसबुक और गूगल पर रोक लगा रखी है।
फिर भी उसके विकास की दर में कोई लम्बा-चौड़ा फर्क नहीं पड़ा लेकिन हम अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता के नाम पर हर तरह की अश्लीलता को लपके जा रहे हैं। जहां तक डिजीटल दुनिया का सम्बन्ध है तो यह बड़ा सच है कि इन्टरनेट पर तीस फीसदी लोग अश्लील सामग्री ढूंढते हैं, छियालीस प्रतिशत महिलाएं अश्लील फब्तियां झेल चुकी हैं और तेईस फीसदी लोगों ने दूसरों को दुखी करने वाली टिप्पणियां की हैं।
यानी बेचारे बापू के तीनों बंदर साइबर दुनिया में शर्मिदगी झेल रहे हैं और हम उनके बुरा मत कहो, बुरा मत सुनो और बुरा मत देखो के उपदेशों की चाट बना कर चबा रहे हैं।
लगता है बापू के इन संदेशों पर हमारी सरकारें जरूर चलती नजर आ रही हैं जो बुरे कुकर्मो को न तो होते देख रही है न सुन रही है और न उनके बारे में बोल रही हैं। बेचारे बापू के बंदर। – राही