scriptउलटी गंगा! | Down the Ganges! | Patrika News

उलटी गंगा!

Published: Oct 09, 2015 11:42:00 pm

विदेशों में जमा कालाधन वापस लाने के लम्बे-चौड़े वादे करने
वाले वित्त मंत्री अब क्या सफाई देंगे?

black money

black money

विदेशों में जमा कालाधन वापस लाने के लम्बे-चौड़े वादे करने वाले वित्त मंत्री अब क्या सफाई देंगे? कालाधन वापस आना तो दूर अब भी धड़ल्ले से देश के बाहर जा रहा है।



वह भी उनकी ही नाक के नीचे से। दिल्ली के एक सरकारी बैंक की अशोक विहार शाखा से 59 कंपनियों ने बैंकिंग नियमों को धता बताते हुए एक साल में दाल, चावल, मसाले और सूखे मेवे मंगाने के नाम पर छह हजार करोड़ रूपए विदेश भेजे। पैसे भेजे थे माल मंगाने के लिए लेकिन धेले का भी माल आया ही नहीं।


एक चैनल के मामले का खुलासा करने पर चौंकाने वाले तथ्य सामने आए हैं। आश्चर्य की बात है कि सरकारी बैंक की एक ही शाखा से एक ही दिन में अलग-अलग समय पर लाखों रूपए विदेशी कंपनियों के खाते में भेजे जाते रहे लेकिन किसी की नजर नहीं पड़ी।


इतनी बड़ी राशि विदेशी कंपनियों को भेजी जाती रही लेकिन इन कंपनियों के बारे में छोटी-मोटी जानकारी तक नहीं जुटाई गई। पैसा लेने वाली कंपनियों से लैटर ऑफ के्रडिट की भी मांग नहीं की गई।


यहां तक कि बैंक ने एग्रीमेंट ऑफ सेल परचेज सम्बंधी दस्तावेज लेना भी जरूरी नहीं समझा। यानी जैसे सब कुछ मिलीभगत से चल रहा हो। किसी को कानों-कान खबर तक नहीं हुई। सरकार कालेधन को स्वदेश लाने की लम्बी-चौड़ी बातें तो करती है लेकिन सच यह है कि लगातार बाहर जा रहे कालेधन को रोकने का जरा सा भी इंतजाम वह नहीं कर पा रही है।


कर रही होती तो ऎसा गोरखधंधा कैसे संभव होता? यह तो एक शहर के एक बैंक की कहानी है। देश के कितने शहरों के कितने बैंकों में इस तरह आंखों में धूल झोंकी जा रही होगी, अंदाजा ही लगाया जा सकता है। इसका अर्थ यही हुआ कि कालेधन को बाहर भेजने के सिलसिले को रोकने के लिए कोई तंत्र है ही नहीं।


सरकार में बैठे मंत्रियों के बयान देखें तो लगेगा मानो पूरी सरकार जी जान से जुटी है, लाखों करोड़ रूपए का कालाधन वापस लाने में लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही बयां कर रही है। चैनल के खुलासे के बाद सरकार ने मामले की जांच कराने की बात तो कही है लेकिन ये नहीं बताया कि जांच कौन करेगा, कितने दिन में करेगा और अब तक ऎसा हो कैसे रहा था? देश की जनता बड़े-बड़े वादों और दावों से ऊब चुकी है। अब वह परिणाम के सिवाय कुछ नहीं चाहती।


विदेशी बैंकों में जमा कालाधन लाना सरकार के वश में नहीं तो उसे सबसे पहले इससे जुड़े अपने चुनावी वादे के लिए देश से माफी मांगनी चाहिए।


साथ ही यह भी बताए कि वह ऎसा क्यों नहीं कर पा रही? और कम से कम बाहर जा रहे कालेधन को तो वह रोककर दिखाए। एक बैंक की एक शाखा के खेल से तो यही साबित होता है कि कालेधन के खिलाड़ी सरकार पर भारी पड़ रहे हैं और उसे बता रहे हैं कि “तू डाल-डाल तो मैं पात-पात।”

loksabha entry point

ट्रेंडिंग वीडियो