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सपने…बड़े देखो

Published: Jul 29, 2015 12:01:00 am

आम आदमी के राष्ट्रपति। यह वो विशेषण है, जो एपीजे
अब्दुल कलाम को इस देश ने दिया है। इसकी वजह हैं वो सपने जो उन्होंने देश को दिए,
वो विचार जिनसे उन्होंने राष्ट्र

abdul kalam kalam

abdul kalam kalam

आम आदमी के राष्ट्रपति। यह वो विशेषण है, जो एपीजे अब्दुल कलाम को इस देश ने दिया है। इसकी वजह हैं वो सपने जो उन्होंने देश को दिए, वो विचार जिनसे उन्होंने राष्ट्र को सींचा और वो वैज्ञानिक उपलब्घियां जिन पर आज देश के हर नागरिक को गर्व है। वो जब तक हमारे बीच रहे हमेशा ज्ञान, सृजनशीलता, मेहनत, रचनात्मकता, शांति, विकास और भारतीयता के अग्रदूत बने रहे। उनका शरीर अब भले हमारे साथ न हो पर उनकी सोच और शब्द हमें हमेशा प्रेरित करते रहेंगे। आज के स्पॉटलाइट में हम साझा कर रहे हैं विभिन्न अवसरों पर दिए गए उनके ऎसे ही कुछ प्रेरक संबोधन :

सिस्टम को गाली मत दीजिए, सुधार का काम करें
भारत के लिए मेरे पास तीन विजन हैं। हमारे 3000 साल के इतिहास में, दुनियाभर से लोग आए और हम पर धावा बोला। हमारी जमीनें हड़पीं, हमारे दिमाग अपने अधीन कर लिए। पर ऎसा सलूक हमने कभी भी किसी दूसरे मुल्क के साथ नहीं किया। क्यों? क्योंकि हम दूसरों की आजादी का भी सम्मान करते हैं।

यही मेरा पहला विजन है – आजादी। भारत ने आजादी का पहला विजन पाया वष्ाü 1857 में। जब हमने आजादी के लिए लड़ाई की शुरूआत की। वह आजादी ही है, जिसकी हमें रक्षा करनी चाहिए, पोषण करना चाहिए और आगे बढ़ाना चाहिए। अगर हम आजाद नहीं हैं तो कोई हमारी कद्र नहीं करेगा।

मेरा दूसरा विजन है – विकास। बरसों से हम विकासशील देश हैं। अब वह वक्त है जब हम खुद को विकसित राष्ट्र की तरह देखें। आज दुनियाभर में हमारी उपलब्धियों ने जगह बनाई है। पर फिर भी खुद को एक विकसित, आत्मनिर्भर राष्ट्र के तौर पर देखने के लिए हमारे भीतर आत्मविश्वास की कमी है। क्या यह स्थिति गलत नहीं है?

मेरा तीसरा विजन है कि भारत दुनिया के समक्ष खड़ा हो। मेरा विश्वास है कि भारत जब तक दुनिया के सामने खड़ा नहीं होगा तब तक हमारी कोई इज्जत नहीं करेगा। दुुनिया में ताकत ही ताकत का सम्मान करती है। हमें न सिर्फ सैन्य शक्ति बनना है बल्कि एक आर्थिक शक्ति भी। दोनों साथ-साथ चलने चाहिए।… हमारे पास कई चकित करने वाली सफल कहानियां हैं लेकिन फिर भी हम उन्हें स्वीकार नहीं करते। आखिर क्यों? दुनिया में दूध उत्पादन में हम नम्बर एक हैं।

रिमोट सेंसिंग सैटेलाइट में हम पहले पायदान पर हैं। गेहूं और चावल के दूसरे बड़े उत्पादक हैं।… ऎसी लाखों उपलब्धियां हैं पर हमारा मीडिया केवल नकारात्मक, विफलता वाली खबरों के प्रति ही आसक्त रहता है। मैं एक बार तेलअवीव में था और एक इजरायली अखबार पढ़ रहा था। उस वक्त वहां हमले और बम धमाके हो रहे थे। लोग मारे गए थे। पर उस अखबार के मुख्य पृष्ठ पर एक यहूदी आदमी की तस्वीर थी, जिसने पांच साल में घनी रेतीली जगह को ऑर्किड और अन्नभंडार में तब्दील कर दिया था। यह एक प्रेरणादायी तस्वीर थी, जिससे लोग सुबह-सुबह रूबरू हुए।

वहीं बमबारी, धमाकों और मौत की खबरें अखबार के अंदर वाले पृष्ठों पर थी। पर भारत में हमारे अखबारों के पन्ने नकारात्मक खबरों से ज्यादा रंगे रहते हैं। आखिर हम इतने नकारात्मक क्यों हैं? एक और सवाल। हम भारतीयों को विदेशी वस्तुओं के प्रति इतनी आसक्ति क्यों है? हमें विदेशी टेलीविजन, विदेशी कपड़े क्यों चाहिए? हमें विदेशी तकनीक चाहिए। क्या हमें यह अहसास नहीं होता कि आत्मसम्मान सिर्फ आत्मनिर्भरता से ही आता है।

एक 14 साल की बच्ची ने मुझसे ऑटोग्राफ मांगा। मैंने उससे पूछा कि तुम्हारा जीवन में क्या लक्ष्य है? उसने जवाब दिया- मैं एक विकसित भारत में रहना चाहती हूं। उसके लिए, आप और मुझे विकसित भारत बनाना होगा।…आप कहते हैं कि हमारी सरकार अक्षम है। आप कहते हैं कि हमारे कानून बहुत पुराने हैं। आप कहते हैं कि नगरपालिका कचरा नहीं उठाती।… रेलवे का मजाक उड़ाया जाता है, एयरलाइन दुनिया में सबसे खराब बताई जाती है। चिट्ठी-पत्री सही पते पर नहीं पहुंचती। आप कहते ही रहते हैं। पर आप इस बारे में करते क्या हैं?…

आप सिंगापुर जाते हैं तो वहां आप राह चलते सिगरेट पीकर नहीं फेंकते। किसी स्टोर में कुछ खा नहीं सकते।… दुबई में रमजान के दौरान आप सार्वजनिक तौर पर कुछ खाने की हिमाकत नहीं कर सकते।… वॉशिंगटन में आप 88 किमी. प्रति घंटे से ज्यादा गाड़ी दौड़ने की नहीं सोचेंगे।…टोक्यो जाते हैं तो वहां की सड़कों पर पान की पीक नहीं थूकतेे।… हम वही लोग हैं, जो विदेश जाकर तो नियम-कायदों की पूरी पालना करते हैं पर भारत में कूड़ा-करकट, सिगरेट सब सड़कों पर फेंकेंगे।… हम चुनाव में सरकार चुनते हैं और फिर सारी जिम्मेदारियोंसे निवृत्त होकर बैठ जाते हैं। हम सरकार से हरेक चीज करने की अपेक्षा रखते हैं। सोचते हैं कि सरकार सफाई कराए हम खुद नहीं करें। हर कोई सिस्टम को गाली देने में लगा रहता है सिर्फ पैसा कमाना ही हमारी प्राथमिकता रहता है। खुद से पूछिए कि हम भारत के लिए क्या कर सकते हैं। वह काम करिए जिससे भारत भी अमरीका और अन्य पश्चिमी देशों जैसा बन सके। (हैदराबाद में दिए एक भाषण के अंश)

बदलना होगा अपना चरित्र
आप किसी अन्य देश जाते हैं तो वहां उस देश के नियम-कायदों जैसा व्यवहार करते हैं लेकिन जैसे ही अपने यहां के हवाई अड्डे पर उतरे तो फिर आप वही हो जाते हैं जैसे कि आप वास्तव में हैं। यदि आप सिंगापुर जाएं तो वहां आप भारत की तरह कहीं भी सड़क पर सिगरेट के बचे हुए टुकड़े नहीं फेंक सकते। शॉपिंग मॉल या रेस्तरां में समय बिताने के बाद यदि आपने वहां निर्धारित समय से अधिक समय बिताया है तो आपको दोबारा से पंच करके पार्किग का अतिरिक्ति भुगतान करना पड़ता है। वहां इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि आप किस स्तर के व्यक्ति हैं और आपकी पहचान क्या है? दुबई में आप रमजान के दौरान सार्वजनिक स्थल पर खाने का दुस्साहस तक नहीं कर सकते।

जेद्दा में आप सिर को ढके बिना बाहर नहीं निकल सकते। आप वाशिंगटन में 55 मील प्रति घंटे की रफ्तार से अधिक वाहन नहीं चला सकते और पुलिस वाले के पकड़ने पर, “जानता है मैं कौन हूं? मैं फलां व्यक्ति का बेटा या फिर …हूं। ये ले नोट और चलो हटो.. मेरे रास्ते से।” नहीं कह सकते। आप ही बताइये कि आप टोकियो में पान की पीक सड़क पर क्यों नहीं थूकते? मुझे यह बात समझ में नहीं आती कि आप विदेश में होते हैं तो वहां का और वहां के नियमों का सम्मान करते हैं, लेकिन अपने ही देश में आपको क्या हो जाता है? अमरीका में यदि किसी कुत्ते ने गंदगी कर दी तो कुत्ते के मालिक को ही उसे साफ करना पड़ता है। जापान में भी ऎसा ही किया जाता है। क्या आप भारत में भी वैसा ही करेंगे?

सकारात्मक सहयोग देना होगा
हम तो बस एक बार मतदान करते हैं और फिर अपनी जिम्मेदारियों से मुक्ति पा लेते हैं। हम चाहते हैं कि अब जो करे सो सरकार ही करे। हमारा सहयोग नकारात्मक ही रहता है। हम चाहते तो हैं कि सरकार साफ-सफाई रखे, लेकिन हम कचरे को इधर-उधर फेंकने से बाज नहीं आते। हम रास्ते में पड़ा एक टुकड़ा भी कचरा पात्र में डालने के कोशिश नहीं करते। हम चाहते तो हैं रेलवे हमें स्वच्छ बाथरूम उपलब्ध कराए लेकिन हम उसके उचित इस्तेमाल के बारे में सीखना तक नहीं चाहते। हम चाहते हैं कि इंडियन एयरलाइंस या एयर इंडिया में सर्वश्रेष्ठ भोजन और टॉयलेटरी (प्रसाधन) मिलें लेकिन हम कोई मौका नहीं चूकना चाहते उन्हें पार कर ले जाने का। यह बात इन सेवाओं के स्टाफ पर भी लागू होती है जिन्हें इसे पार नहीं होने देने के बारे में पता है।

गरिमा से खिलवाड़ क्यों?
यदि हम महिलाओं, कन्या शिशु, दहेज आदि जैसे सामाजिक मुद्दों की बात करें तो हम अपने घरों के ड्रॉइंग रूम में बैठकर खूब जोर-जोर से अपना विरोध प्रदर्शित करते हैं लेकिन जब बात खुद पर आती है तो हम पलट जाते हैं। वास्तविक सकारात्मक सहयोग नाम पर हम खुद को और अपने परिवार को सुरक्षित दायरे में बांध लेते हैं। और फिर, ऎसे देखते हैं कि देश के किसी दूर-दराज कोने से कोई मिस्टर क्लीन जादुई झाड़ू के साथ आएगा और अपने ही हाथों से उसे चमत्कारिक ढंग से स्वच्छ बनाएगा। यदि हम ऎसा नहीं करेंगे तो हम कायरों की भांति देश छोड़कर अमरीका चले जाएंगे। जब न्यूयॉर्क असुरक्षित हो जाएगा तो हम इंग्लैंड की ओर भागेंगे। जब इंग्लैंड में रोजगार नहीं मिलेगा तो हम खाड़ी देशों की ओर उड़ान भरेंगे। जब खाड़ी में युद्ध के हालात होंगे तो हम भारत सरकार से मांग करेंगे कि हमें सुरक्षित निकाल लो और घर वापस बुला लो। समझ नहीं आता कि देश को सभी गालियां देने में क्यों लगे हैं और गरिमा के साथ खिलवाड़ क्यों किया जा रहा है?

मैं हूं अग्नि
सन 1962 के कटु अनुभवों ने भारत को मिसाइल विकास की ओर बुनियादी कदम उठाने के लिए विवश किया। 20 अप्रेल, 1989 को अग्नि का प्रक्षेपण किया गया लेकिन एक उपकरण के सही काम नहीं करने के कारण कंप्यूटर से “होल्ड” के संकेत मिले। कुछ देर बाद कई स्टेशनों से यह संकेत मिलने लगे। हमें परीक्षण रद्द करना पड़ा। अग्नि की टीम में 500 से ज्यादा वैज्ञानिक थे। जो निराशा में चले गए। मैं अपनी टीम के लोगों से मिला, जो सदमें एवं दुख में थे। मैंने उनसे कहा आप लोगों की मिसाइल आपके सामने है, सही मायनों में आपने कुछ खोया नहीं है। बस कुछ हफ्ते इसपर फिर से काम करना होगा। इससे टीम के लोगों को अपना दुख भूलने में मदद मिली और वे वापस काम पर जुट गए।

अगले दस दिन तक दिन-रात एक करके हमारे वैज्ञानिकों ने मिसाइल प्रक्षेपण के लिए 1 मई 1989 का दिन तय किया। लेकिन एक बार फिर स्वचालित कंप्यूटर जांच में टी-10 सेकंड पर “होल्ड” सिग्नल मिला। बड़े ही दुख के बाद एक बार फिर से प्रक्षेपण स्थगित करना पड़ा। हम जानते थे कि रॉकेट विज्ञान में ऎसा होते रहना आम बात है लेकिन उत्साही राष्ट्र हमारी बातों को समझना नहीं चाह रहा था। समाचार पत्रों में कार्टूनों के माध्यम से हमारा माखौल उड़ाया जाने लगा।

एक बार फिर तैयार हुए। प्रक्षेपण 22 मई 1989 को निर्धारित किया गया। प्रक्षेपण से पहले वाली रात मैं रक्षामंत्री के.सी. पंत के साथ घूम रहा था।, जो प्रक्षेपण देखने आए थे। अचानक रक्षामंत्री ने मुझसे पूछा “कलाम, कल अग्नि की सफलता पर तुम मुझसे क्या तोहफा लेना पसंद करोगे? सोच कर मैंने कहा “हमें आर.सी.आई. में एक लाख छोटे पौधे लगाने की जरूरत है।” उन्होंने पलटकर कहा “तुम अग्नि की सफलता के लिए धरती मां का आशीर्वाद ले रहे हो। हम कल जरूर सफल होंगे।”अगले दिन सुबह सात बजकर दस मिनट पर अग्नि को छोड़ा गया। यह पूरी तरह सफल प्रक्षेपण था। (पुस्तक “अग्नि की उड़ान” से लिए गए अंश)

बच्चों के कलाम

भारत के 11वे राष्ट्रपति बनने के बाद प्रथम बाल दिवस 14 नवंबर 2002 को दिए संबोधन के अंश: सफलता के लिए जिज्ञासा, चिंतन, ज्ञान, मेहनत और धैर्य जरूरी है। कठोर मेहनत से आज तक दुनिया में कोई नहीं मरा तथा चिंतन प्रगति की निशानी है, चिंतन बंद कर देना विनाश को निमंत्रण देना है…मनुष्य का दिमाग उसके लिए एक अनुपम भेट है, पर दुख की बात यह है कि आज हमारी शिक्षा प्रणाली ऎसी हो गई है जो सिर्फ काम का बोझ लादने का काम करती है, इसमें हमारे मस्तिष्क को उचित पोषण नहीं मिलता। शिक्षा प्रणाली ऎसी होना चाहिए जो किसी भी छात्र की दबी हुई प्रतिभा को उभार सके। …राष्ट्रपति बनने के बाद मैं अब तक लगभग 100000 छात्रों से मिल चुका हूं। जिन भी छात्रों से अब तक मैं मिला हूं, गरीब अथवा अमीर, उन सबका एक ही सपना था : वे एक शांतिपूर्ण, समृद्ध तथा सुरक्षित भारत में रहना चाहते थे।

…विज्ञान तो प्रश्नों की एक श्ृंखला का ही नाम है। प्रश्न पूछे बिना विज्ञान का विकास नहीं हो सकता। इसलिए छात्रों को सवाल जरूर पूछना चाहिए। हर चीज पर सवाल खड़े करना चाहिए।… “जब हम भारत में मिसाइल विकसित कर रहे थे तो आलोचकों का कहना था कि यह संभव नहीं है। पर हमने अपने धैर्य से यह संभव कर दिखाया।” इसलिए धैर्य का साथ नहीं छोड़ना चाहिए। इसके बाद कलाम ने बच्चों के साथ “युवा गान” का वाचन किया :-

कलाम का “युवा गान”

भारत के युवा नागरिक के रूप में
अपने देश के लिए प्यार तथा ज्ञान व प्रोद्योगिकी से सुसज्जित
मैं यह महसूस करता हूं कि छोटे सपने देखना है गुनाह
मैं महान स्वप्न के लिए काम करूंगा और बहाउंगा पसीना
यह स्वप्न है भारत का विकसित देश के रूप में रूपांतरण
जिसका ईधन होगा मूल्य पोषित आर्थिक शक्ति
…एक जागृत आत्मा किसी भी अन्य संसाधन की तुलना में
इस पृथ्वी पर कहीं बहुत अधिकशक्तिमान है
पृथ्वी के ऊपर भी और इसके नीचे भी
…मैं ज्ञान का दीपक हमेशा जागृत रखूंगा
विकसित भारत – का स्वप्न साकार करने के लिए
…मैं ईश्वर से प्रार्थना करता हूं कि :
मेरे देश के लोगों में सुंदरता के साथ दैवीय शंाति को प्रवेश करने दो
हमारे शरीर, मस्तिष्क और आत्मा में सुख-स्वास्थ्य को पल्लवित होने दो।
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