रिजर्व बैंक जिन भी बैंकों से पैसा लेता है, गिने हुए ही लेता है। पटेल का मानना है कि नोटबंदी के बाद 17.7 लाख करोड़ रुपए की तुलना में 15.4 लाख करोड़ रुपए बैंकों में आ चुके हैं। यानी 2.3 लाख करोड़ रुपए की राशि अब तक नहीं आई। नेपाल से नोट अभी आने हैं। सरकारी बैंकों और डाकघरों में जमा पुराने नोट भी रिजर्व बैंक तक आने हैं।
नेपाल और डाकघरों से पुराने नोट अभी तक क्यों नहीं आए? क्या इनके लिए कोई समय सीमा तय नहीं की गई थी? और अगर की गई तो अब तक नोट जमा क्यों नहीं हुए? नोटबंदी के फैसले को सरकार ऐतिहासिक करार दे रही है। ऐसा ऐतिहासिक फैसला लेने से पहले क्यों इन मुद्दों की तरफ ध्यान नहीं दिया गया था?
नोट गिनने की मशीनें पर्याप्त नहीं थीं तो उनकी व्यवस्था समय रहते क्यों नहीं की गई? सरकार के ऐतिहासिक फैसले से क्या नतीजा निकला, देश जानना चाहता है। यहां सवाल राजनीति का नहीं है। देश का विपक्ष, जनता या अर्थशास्त्री सरकार से जानना चाहते हैं कि कितना कालाधन सामने आया? उन्हें ये जानने का अधिकार है। जनता सरकार के हर अच्छे फैसले के साथ खड़ी है, लेकिन उसे पता भी तो लगना चाहिए कि फैसला अच्छा था या खराब? अच्छा था तो कैसे? लोकतंत्र की खूबसूरती भी इसी में है कि सरकार की हर नीति पूरी तरह पारदर्शी हो।