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दोहरा चरित्र

Published: Mar 20, 2015 10:24:00 pm

यदि खानों की नीलामी से राज्य सरकार को पैसा मिलता है तो खानों के आवंटन को
रद्द करके फिर से नीलामी करने

सुनने में कितना अजीब लगता है कि एक ही मुद्दे पर एक ही राजनीतिक दल अलग-अलग राय कैसे रख सकते हैं अथवा उन्हें अलग-अलग राय क्यों रखनी चाहिए? हकीकत सबके सामने है और मामला है खनन घोटाले का। केन्द्र में मनमोहन सिंह सरकार के कार्यकाल में कोयला ब्लॉक्स आवंटन का मामला सुप्रीम कोर्ट में गया तो भाजपा ने धरती-आसमान एक कर दिया। यह कहते हुए कि कोयला ब्लॉक्स की नीलामी की बजाय आवंटन क्यों किया गया?

आवंटन के पीछे अपनों को लाभ पहुंचाने के गंभीर आरोप लगाते हुए उसने हंगामा खड़ा किया और संसद भी नहीं चलने दी। सुप्रीम कोर्ट का डंडा चला तो 218 में से 214 कॉल ब्लॉक्स रद्द हो गए और अब इनकी नीलामी चल रही है जिससे काफी मात्रा में राजस्व मिल रहा है। केन्द्र के इस घटनाक्रम को भाजपा भले अपनी जीत मान रही हो लेकिन असल में यह जीत देश की है। सुप्रीम कोर्ट की सक्रियता से ही सही देश लुटने से बच गया।

दूसरी तरफ राजस्थान में हुए खान आवंटन पर भी नजर डाल ली जाए तो भाजपा का दोहरा चरित्र सामने आ जाएगा। यूपीए राज में कॉल ब्लॉक्स के आवंटन की बजाय नीलामी की वकालत करने वाली भाजपा सरकार ने माइंस एण्ड मिनरल डवलपमेंट एण्ड रेगुलेशन अध्यादेश 2015 की अधिसूचना जारी होने से पहले राजस्थान में चार बड़ी सीमेंट कम्पनियों को खनन पट्टे जारी कर डाले।

विपक्ष का आरोप है कि राजस्थान में आवंटन की बजाय नीलामी के जरिए खानें आवंटित की जाती तो सरकार को दो हजार करोड़ का राजस्व मिलता। राजस्थान की भाजपा सरकार आवंटन को उचित ठहराते हुए तर्क दे रही है कि यह फैसला पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार का था। उसने तो केवल उसी प्रक्रिया को आगे बढ़ाया है। वह अगर मानती है कि आवंटन की बजाय नीलामी से फायदा होता तो उसने पूर्ववर्ती सरकार का फैसला क्यों लागू किया? उससे बदला क्यों नहीं? विपक्ष के इस कथन का सच भी जनता के सामने आना चाहिए कि उसने सत्ता में रहते आवंटन को रोका और नीलामी की पैरवी की।

क्या इस बात की जांच नहीं होनी चाहिए कि नीलामी की बजाय आवंटन की सलाह किसने और क्यों दी? मुद्दा कांग्रेस अथवा भाजपा सरकारों के फैसले का नहीं, राज्य के हितों का है। यदि खानों की नीलामी से राज्य सरकार को पैसा मिलता है तो खानों के आवंटन को रद्द करके फिर से नीलामी करने में क्या अड़चन है? ऎसा कैसे संभव है कि भाजपा केन्द्र में तो खानों की नीलामी को उचित माने और राज्य में आवंटन।

खानों की बंदरबाट का फैसला जिसने भी किया उसके खिलाफ कार्रवाई होनी ही चाहिए। साथ ही दिल्ली से लेकर तमाम राज्यों में ऎसी खनन नीति बननी चाहिए जो पारदर्शी हो तथा आमजन भी उसे आसानी से देख सके। इससे राजनीतिक दलों को आए दिन के आरोप-प्रत्यारोपों से भी छुटकारा मिल जाएगा और सरकारों को आर्थिक लाभ भी होगा जिसका फायदा आम जनता को ही मिलेगा।
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