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बुजुर्ग बम

अब भगवा रणनीतिकार क्या कर रहे हैं? फिलहाल तो एक ही बुजुर्ग
बोला है, आने वाले दिनों में कई और नेता जुम्बिश लेंगे

Jul 26, 2015 / 10:47 pm

शंकर शर्मा

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आखिर बुजुर्ग बम फूट ही गया। सरकार और पार्टी को देखिए अस्सी बरस के एक नेता को जो जनसंघ से भी जुड़े रहे हैं, एक पल में कांग्रेस से प्रभावित करार दे दिया। इसे कहते हैं शुतुरमुर्गी स्वभाव। शुतुरमुर्ग खतरे का सामना करने की अपेक्षा मिट्टी में अपना सिर छिपा लेता है। क्या भाजपा यही नहीं कर रही? मोदी के हनुमान अमित शाह के मुताबिक भाजपा दुनिया की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी है। और वो सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी संकट को सामने देख अपना मुंह छिपा कर हल करना चाहती है।

मजे की बात देखिए कि यह संकट कांग्रेस या विपक्षी दलों ने नहीं स्वयं भाजपा वालों ने ही पैदा किया है। सुष्ामा स्वराज जानी पहचानी नेता हैं, स्वयं प्रधानमंत्री पद की उम्मीदवार रही हैं, उन्होंने ऎसी नादानी क्यों की? क्यों एक भगोड़े अपराधी की मदद की? माना कि वे “मानवीय मूल्यों” की आड़ लेकर अपनी बला टालना चाहती हैं पर मैडम! मानवीय मूल्यों के साथ-साथ “नैतिक मूल्यों” से आंखें क्यों बचा रही हैं। इसे कहते हैं “मीठा-मीठा गप और कड़वा-कड़वा थू”।

व्यापमं का घोटाला आजाद भारत के सबसे बड़े भर्ती घोटाले में बदलता जा रहा है। एक तो करोड़ों की हेराफेरी और दूजे एक के बाद एक तड़ातड़ 47 तक मौतें। हे रामजी! ये हो क्या रहा है। मौतें हो मध्य प्रदेश में रही हैं और वहां से सैकड़ों मील दूर बैठा हम जैसा डरपोक घबरा रहा है। पता नहीं क्यों लग रहा है कि भारतीय जनता पार्टी का नेतृत्व इन गंभीर मुद्दों से बच कर निकलने की फिराक में है।

मोदी के प्रधानमंत्री बनते ही उन्होंने संदेश दे दिया था कि अब पार्टी में युवाजन ही “राजनीतिक कबड्डी” खेलेंगे। उन्होंने बुजुर्गो को तो “कोच” तक बनाने से इनकार कर दिया। एकाध चुने हुए बूढ़ों को उन्होंने राजभवनों में बिठा दिया। बाकी सब ठाले बैठे हैं। मोदी-शाह एण्ड कम्पनी ने यह नहीं सोचा कि बरसों बाद तो “सत्ता रानी” का साथ मिला और जब बूढ़ों के मुस्कुराने के दिन आए तो उन्हें दरकिनार कर दिया। वे शायद यह भी भूल गए कि कोई बड़ी दिक्कत आने पर परिवार में बुजुगोंü का अनुभव ही काम आता है। शांता के पत्र बम में साफ-साफ लिखा है कि सरकार के एक साल पूरा होते ही यह बवाल खड़े हुए हैं।

अब पार्टी की तो पार्टी जाने लेकिन चुनाव पूर्व नैतिकता, सदाचार और ईमानदारी के उच्चतम आदर्श स्थापित करने का दावा करने वाली पार्टी को पहले ही झटके में मानो सांप सूंघ गया है। तभी तो संसद से बाहर पत्रकारों का झुंड एक के बाद एक सवाल पूछता रहा और मौनी नमो मंद-मंद मुस्कराते रहे।

अब भगवा रणनीतिकार क्या कर रहे हैं, यह तो पता नहीं लेकिन फिलहाल तो एक ही बुजुर्ग बोला है, आने वाले दिनों में कई और नेता जुम्बिश लेंगे। कोई खांस कर, कोई खंकार कर, कोई छींककर, कोई बोल कर, कोई लिख कर अपनी-अपनी भड़ास निकालेेंगे। क्या सभी “कांग्रेस इफैक्ट” के शिकार माने जाएंगे?
राही

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