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परिवार का समाजवाद

Published: Oct 23, 2016 10:31:00 pm

पांडवों और कौरवों के बीच चला महाभारत युद्ध 18 दिनों में समाप्त हो गया था लेकिन उत्तर प्रदेश में समाजवादी

Samajwadi Party

Samajwadi Party

पांडवों और कौरवों के बीच चला महाभारत युद्ध 18 दिनों में समाप्त हो गया था लेकिन उत्तर प्रदेश में समाजवादी परिवार की महाभारत है कि खत्म होने का नाम ही नहीं ले रही। बीते सवा महीने से देश के सबसे बड़े राज्य की राजधानी लखनऊ में चल रही इस राजनीतिक नाटकबाजी में सत्ता और संगठन पर कब्जे की लड़ाई का खेल सबको हैरान करने वाला है। राममनोहर लोहिया और जयप्रकाश के आदर्शों को मानने का दावा करने वाली समाजवादी पार्टी में न कहीं समाजवाद नजर आ रहा है और न लोहिया-जेपी के आदर्श। नजर आ रहा है तो बस बंटा हुआ कुनबा।

 झगड़ा भी सत्ता की बंदरबाट का। झगड़े में पिता-पुत्र से लेकर भाई-भाई , सास-बहु और चाचा-भतीजा आमने-सामने हैं। सवा महीने पहले राज्य के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के शिवपाल यादव समेत मुलायम के नजदीकियों पर शिकंजा कसने के साथ शुरू हुई कलह पार्टी के विभाजन तक जा पहुंची है। शह और मात के इस खेल में अखिलेश ने शिवपाल समेत 6 मंत्रियों को बर्खास्त किया तो पार्टी मुखिया मुलायम ने अखिलेश के नजदीकी और अपने चचेरे छोटे भाई रामगोपाल यादव को बाहर का रास्ता दिखा दिया। उत्तर प्रदेश में विधानसभा की रणभेरी बजने को है लेकिन समाजवादी पार्टी विरोधियों से दो-दो हाथ करने की बजाय आपसी कलह में उलझी हुई है। इस कलह में न कहीं सिद्धांतों की चर्चा है और न विचारधारा का संघर्ष।


संघर्ष है तो बस पार्टी पर कब्जा जमाने का। लड़ाई पार्टी वर्चस्व की है। मुलायम के बाद पार्टी पर किसका राज रहे? अखिलेश का या शिवपाल का। दोनों धड़े एक-दूसरे पर व्यक्तिगत हमले करने से भी बाज नहीं आ रहे। सत्ता के बंदरबाट की लड़ाई चल रही है। बीच-बचाव करने वाला भी कोई नजर नहीं आ रहा। बल्कि बसपा- भाजपा- कांग्रेस तो कटी पतंग लूटने की फिराक में हैं। इस लड़ाई का फायदा भले किसी को भी क्यों न हो लेकिन सबसे ज्यादा नुकसान प्रदेश की जनता को ही उठाना पड़ेगा।
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