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अच्छे दिन का अहसास

Published: May 25, 2015 11:28:00 pm

बात महंगाई को
काबू में लाने की रही हो, विदेशों में जमा कालाधन वापस लाने की अथवा युवाओं को
रोजगार दिलाने की, सरकार को अभी लम्बा रास्ता तय करना है

Narendra Modi, government

Narendra Modi, government

भारी-भरकम बहुमत के साथ केन्द्र की सत्ता में आई नरेन्द्र मोदी सरकार को आज एक साल पूरा हो गया है। सरकार जहां उपलब्घियों के जश्न में डूबी है, वहीं विपक्ष सरकार को दस में से एक नंबर भी देने को तैयार नहीं। एक साल की कामयाबी को लेकर समाचार-पत्र और टीवी चैनलों की अलग-अलग राय है। लोकतंत्र की खासियत भी यही है कि सब अपनी-अपनी दृष्टि से देखें और कामकाज का आकलन करें। सरकार, विपक्ष और मीडिया की राय कुछ भी क्यों न हो लेकिन इतना तो मानना पड़ेगा कि दिल्ली में सरकार नजर आने लगी है। पिछले 365 दिनों में भले अच्छे दिन पूरी तरह नहीं आ पाए हों लेकिन भ्रष्टाचार का शब्द कहीं सुनाई नहीं पड़ा। इसी भ्रष्टाचार ने मनमोहन सिंह की सरकार को दस साल तक आरोपों के घेरे में जकड़ा रखा था और कांग्रेस की ऎतिहासिक हार का बड़ा कारण भी यही शब्द बना। विदेशों में भारत की प्रतिष्ठा बढ़ने की बात से भी शायद ही कोई इनकार करे। हर सरकारों की तरह मोदी सरकार ने भी कुछ जन कल्याण योजनाएं शुरू की हैं। इन योजनाओं को वह अपनी सबसे बड़ी उपलब्घि बताने से नहीं चूक रहे। इराक और यमन में फंसे भारतीयों को सरकार ने जिस सूझ बूझ के साथ बाहर निकाला वह प्रशंसनीय कार्य माना जाएगा। ये तो हुआ सिक्के का एक पहलू।

दूसरे और महत्वपूर्ण पहलू पर भी नजर डालने की जरूरत है। पिछले साल हुए लोकसभा चुनाव से पहले भारतीय जनता पार्टी और नरेन्द्र मोदी ने आम भारतीयों को अच्छे दिन लाने का जो सपना दिखाकर वोट बटोरे, क्या वह सपना हकीकत में बदलता नजर आ रहा है? बात महंगाई को काबू में लाने की रही हो, विदेशों में जमा कालाधन वापस लाने की अथवा युवाओं को रोजगार दिलाने की, सरकार को अभी लम्बा रास्ता तय करना है। गंगा और दूसरी नदियों की सफाई की योजना कागजों में भले बन गई हो लेकिन उसका जमीन पर नजर आना अभी बाकी है। सबको साथ लेकर चलने और सबका विकास करने की बात को यथार्थ में बदलते देखना भी अभी शेष्ा नजर आता है।

बदले की राजनीति के लग रहे आरोपों से भी सरकार को दामन छुड़ाकर दिखाना होगा। कश्मीर घाटी में फिर उठती अलगाववाद की लपटों को शांत करके दिखाना भी इस सरकार के लिए चुनौती होगा तो नक्सलवाद प्रभावित जिलों में हो रहे खून-खराबे को भी रोककर दिखाना होगा। पांच साल के लिए मिले जनादेश में एक साल के कामकाज से सरकार का संपूर्ण मूल्यांकन करना बेमानी माना जा सकता हो लेकिन आसमान छूती उम्मीदें पूरी होने की शुरूआत हुई या नहीं इस पर बहस की गुंजाइश बाकी है।

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