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महिला स्वाभिमान व संविधान की जीत (नूरजहां सफिया )

हाजी अली दरगाह में महिलाओं के प्रवेश को लेकर बॉम्बे हाईकोर्ट का फैसला
हमारे संविधान की जीत है जो महिलाओं से भेदभाव की इजाजत नहीं देता

Aug 26, 2016 / 10:46 pm

शंकर शर्मा

opinion news

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मुंबई स्थित हाजी अली दरगाह के दरवाजे अब महिलाओं के लिए खुलने जा रहे है। बॉम्बे हाई कोर्ट ने इस मामले में राज्य सरकार को आदेश दिए हैं कि दरगाह के भीतर मजार तक यानी जहां तक पुरुष जा सकते हैं, वहां तक महिलाओं के पहुंचने के लिए सुरक्षा मुहैया कराई जाए। उल्लेखनीय है कि सैयद पीर हाजी अली बुखारी साहब की दरगाह मुंबई में समुद्र के बीच स्थित है। उनका ताल्लुक उज्बेकिस्तान के बुखारा इलाके से था और वे दुनिया की सैर करते हुए भारत पहुंचे थे। वर्ष 1411 में निर्मित इस दरगाह तक समुद्र में पानी कम होने पर पुल के रास्ते से ही पहुंचा जा सकता है।

दरगाह स्थित बुखारी साहब की मजार केवल मुस्लिमों के लिए महत्व नहीं रखती बल्कि हिंदू भी यहां दूर-दूर से पहुंचते रहे हैं। यहां पर कभी भी स्त्रियों के साथ भेदभाव नहीं किया गया। लेकिन, हाजी अली दरगाह प्रशासन ने 2012 में अचानक स्त्रियों को मजार तक पहुंचने को लेकर रोक लगा दी।हमने दरगाह प्रशासन के इस फैसले को लेकर स्थानीय नेताओं बात की। महिला आयोग के सामने भी यह मुद्दा उठाया। फिर, राज्य सरकार से इस मामले में गुहार लगाई लेकिन कोई संतोषजनक जवाब कहीं से नहीं मिला।

जब लगा कि हमारे साथ सरकार भी नहीं है तो हमें मजबूर होकर न्यायालय का दरवाजा खटखटना पड़ा। और इस बात की खुशी है कि हमें इस मामले में न्यायालय ने निराश नहीं किया। यह बात नहीं है कि सिर्फ हाजी अली दरगाह में ही महिलाओं को इस भेदभाव का शिकार होना पड़ा है। अन्य समुदायों में भी आराधना स्थलों में महिलाओं के प्रवेश को लेकर ऐसे भेदभाव के प्रकरण सामने आते रहे हैं।

जब-जब ऐसे मामले सामने आए तो न्यायालय ने हस्तक्षेप कर ऐसे मामलों में महिलाओं का पक्ष लिया है। हम बॉम्बे उच्च न्यायालय के इस फैसले का स्वागत तो करते ही हैं यह भी मानते हैं कि न्यायालय ने महिलाओं के सम्मान की लड़ाई का पक्ष लिया है। सीधे तौर पर यह महिला स्वाभिमान और उसके अधिकारों की जीत है। इतना ही नहीं हम इसे मुस्लिम जीवन मूल्यों की और भारत के संविधान की जीत मानते हैं। न्यायालय के आदेश से हमें हमारा हक हासिल हो सका है।


दुख और ताज्जुब होता था यह देख-सुनकर कि हाजी अली में पुरुष ही मजार तक जा सकते थे महिलाओं को बहुत ही बेहूदा तर्क देकर रोका जाने लगा था। क्या आज के समय में तर्क दिया जा सकता है कि महिलाओं की खुद की सुरक्षा को कोई खतरा नहीं हो इसीलिए यह रोक है। रजस्वला नारी को भी वहां नहीं जाना चाहिए। इसी तरह एक अन्य तर्क यह भी था कि महिलाएं बहुत ही अजीब वस्त्र पहनकर आती हैं।

कई महिलाएं वहां आती हैं तो उनकी साड़ी का पल्लू गिर जाता है, इससे स्थितियां बिगड़ती हैं। इसीलिए महिलाओं को हाजी अली दरगाह में प्रवेश नहीं करने दिया जाना चाहिए। समझ में यह नहीं आता कि 2012 से पहले तक क्या ऐसी परिस्थितियां नहीं थीं? लेकिन, किसी ने भी इस तरह के तर्क पेश नहीं किए। हाजी अली ट्रस्ट के नए लोगों को अचानक महिलाओं का दरगाह के भीतर जाना नागवार गुजरने लगा और उन्होंने उस पर पाबंदी लगा दी। कोई मुझे यह समझाए कि महिलाओं की सुरक्षा को खतरे का सवाल क्या केवल दरगाह में ही है?

अन्य स्थानों पर क्या महिलाओं की सुरक्षा की बात क्यों नहीं होनी चाहिए? इतनी ही चिंता है तो अन्य स्थानों के लिए भी बोलना चाहिए। लेकिन, यह तो सिर्फ और सिर्फ बहाना ही है, महिलाओं को दरगाह के भीतर प्रवेश से रोकने का। यदि इस किस्म का तर्क दिया जाने लगे कि विशेष समय में महिलाएं गंदी होती हैं तो लगता है कि ऐसे में महिलाएं में नहीं बल्कि समूचे समाज की नजरों में गंदगी है। जरूरत इस बात की है कि समाज की गंदगी को दूर किया जाए न कि महिलाओं पर किसी किस्म की पाबंदी लगाई जाए। महिलाओं के परिधानों को लेकर तर्क भी बहुत ही अजीब हैं।

महिलाएं खुद समझदार हैं, उन्हें कब और क्या पहनना है, इस बात को क्या पुरुष समझाएंगे? परिधान के आधार पर किसी को गलत बताने वाले वे लोग कौन होते हैं? क्या महिलाओं के कपड़ों के आधार पर फब्तियां कसने वाले सही हैं? क्या ऐसे पुरुषों की निगाह ठीक है? यदि पुरुषों का महिलाओं के साथ यह व्यवहार गलत है तो फिर पाबंदी तो पुरुषों पर लगाई जानी चाहिए। पवित्र जगह पर जाकर भी पुरुषों पर की गंदी निगाहें नहीं बदलती हैं, और उनसे बचाने के लिए जरूरी कदम उठाया ही जाना है तो बेहतर यही होता कि पुरुषों के दरगाह तक पहुंचने पर रोक लगाई जाती, आधी आबादी पर रोक लगाने का कोई औचित्य नहीं है।

एक बार मैं फिर कहूंगी कि यह भारत के संविधान की जीत है जो महिलाओं से भेदभाव की इजाजत नहीं देता। यह भारत का ही संविधान है जो हाजी अली के ट्रस्टियों को यह हक भी देता है कि वे इस फैसले के विरुद्ध सर्वोच्च न्यायालय में अपील करें। वे ऐसा करने भी जा रहे हैं और यह उनका अधिकार है। लेकिन, हमें विश्वास है कि वे इस मामले को किसी भी स्तर तक ले जाएं लेकिन हर अदालत में हमारी ही जीत होगी।

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